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भारत को पहला विश्व कप जिताने वाले कपिल देव (kapil dev)

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भारत को पहला विश्व कप जिताने वाले कपिल देव (kapil dev)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

जब भारत के क्रिकेट का जिक्र हो या फिर विश्व क्रिकेट का जिक्र हो कपिल देव का नाम बड़े ही गर्व के साथ लिया जाता है।कपिल देव ने बल्ले, गेंद और क्षेत्ररक्षण हर क्षेत्र में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया है। कपिल देव ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे एक ऐसी टीम को भी चैंपियन बना सकते हैं जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगा। कपिल देव के नेतृत्व में भारतीय टीम साल 1983 के विश्वकप विजेता टीम के सदस्य थे। और इस टीम को लेकर यह कहा जा रहा था कि यह टीम विश्व कप तो बाद में यह कोई मेगा इवेंट तक नहीं जीत सकती है लेकिन कपिल देव ने अपने खिलाड़ियों में वह जोश भरा जो सीधा विश्वकप के फाइनल तक का दरवाजा खोल दिया। इस महान खिलाड़ी का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता रामलाल इमारती लकड़ी के कॉन्ट्रैक्टर का काम करते थे।

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आपको जानकर हैरानी होगी कि कपिल देव का परिवार आजादी से पहले पाकिस्तान के रावलपिंडी में रहता था लेकिन आजादी के बाद यह परिवार भारत आ गया और शुरुआती समय इन्होंने हरियाणा में गुजारा उसके बाद ये चंडीगढ़ चले गए। कपिल देव की शुरुआती पढ़ाई DAV में हुई उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे शिमला चले गए जहां उन्होंने सेंट एडवर्ड स्कूल में दाखिला करवाया। कपिल देव को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था। जब वे स्कूल और कॉलेज में गए तो यहां उन्होंने जमकर क्रिकेट खेला। भारतीय टीम एक समय क्रिकेट के खेल में काफी पीछे थी। 1983 में भारतीय टीम ने कपिल देव की कप्तानी में वनडे विश्व कप जीता। भारतीय टीम के लिए उस समय वनडे विश्व कप जीतना बिल्कुल भी आसान नहीं था। लेकिन कपिल देव ने हार नहीं मानी और उन्होंने भारत को विश्व कप जिताया। उस समय कपिल देव
ने अपनी टीम के खिलाड़ियों को हौसला दिया।

आज कपिल देव की गिनती सबसे बड़े मोटीवेटर खिलाड़ियों में की जातीभारत के वर्ल्ड कप जीतने के बाद से ही भारतीय क्रिकेट की दिशा और दशा ही बदल गई। आज भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजों की भरमार है। लेकिन एक समय स्पिनर गेंदबाजों की काफी भूमिका होती थी।उन्हीं में से एक कपिल देव थे, जो की बेहतरीन तेज गेंदबाजी ऑलराउंडर बनकर उभरें। कपिल देव ने अपने क्रिकेट करियर में एक से बढ़कर एक कारनामे किए। आज भी कपिल देव के कई ऐसे रिकॉर्ड को तोड़ पाना बहुत ही मुश्किल है। क्रिकेट से रिटायर होने के बाद उन्होंने 90 के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम को कोचिंग दी। अब वो कमेंटेटर के रूप में नजर आते हैं। उन्होंने फिल्मी दुनिया में भी हाथ आजमाया।

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कपिल देव के ऊपर एक बायोपिक फिल्म भी बन चुकी है। कपिल देव को अर्जुन पुरस्कार, पदम श्री, क्रिकेटर ऑफ द ईयर, पदम भूषण जैसे कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। कपिल देव ने 1994 में अन्तर-राष्ट्रीय क्रिकेट को अल्विदा कह दिया। फिर 1999 में कपिल देव को इंडियन क्रिकेट टीम को कोच बनाया गया। कोच के रूप में कपिल देव सफल नहीं रहे उन्होंने टीम को केवल एक टैस्ट मैच में ही जीत दिलाई। इसी दौरान वह कुछ विवादों से जुड़ गए उन पर मैच फिक्सिंग करने का आरोप लगाया था। जिसके चलते अगस्त 2000 में कपिल देव को इंडिया के कोच के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उन्होंने 2005 में खुशी नामक एक राष्ट्रीय सरकारी संगठन की स्थाप्ना करी और उस संगठन के अध्यक्ष बने। यह संगठन दिल्ली में कम विशेषाधिकृत बच्चो के लिये तीन विद्यालय चला रही है। 24 सितम्बर 2008 को उन्होंने भार्तीय प्रादेशिक सेना में भाग लिया और उन्हे लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में चुना गया। और 1982 मे पदमश्री, 1991 मे पदम् भूषण, 2002 मे विस्डन इंडियन क्रिकेट ऑफ द सेंचुरी और 2010 मे ICC cricket Hall of fame भी दिया गया था।

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भारत के इस पहले वर्ल्ड कप पर एक फिल्म भी बनाई गई है जिसका नाम ’83’ रखा गया। इस फिल्म में कपिल देव की भूमिका में रणवीर सिंह नजर आए हैं जबकि उनकी पहली रोमी भाटिया का किरदार दीपिका पादुकोण ने निभाया है।फिल्म को दर्शकों का काफी प्यरा भी मिला। क्रिकेट में मिलने वाली महान उपलब्धियों के बाद सन 2008 में उन्हें ‘भारतीय क्षेत्रीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल’ का पद दिया गया था।यह पद उन्हें अपने क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए मिला था।भारत के तीसरी बार क्रिकेट विश्वकप का खिताब जीतने के लिए देशभर में प्रार्थनाएं हो रही थी। लेकिन कपिल देव थोड़े नाराज हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया था, इसलिए वह अहमदाबाद नरेंद्र मोदी स्टेडियम नहीं गए। वह आज दोपहर न्यूज चैनल के स्टूडियो में बैठे हुए थे। सोशल मीडिया पर लोग कपिल के बयान की काफी चर्चा कर रहे हैं।

दिग्गज खिलाड़ी ने उन्होंने कैमरे के सामने कहा, मैं तो चाहता था कि मेरी पूरी ८३ की टीम को भी बुलाते तो और भी बेहतर होता। लेकिन इतना काम चल रहा है। इतने लोग हैं। इतनी जिम्मेदारी है। कभी-कभी लोग भूल जाते हैं। मैच के दौरान अब तक के सभी विश्व कप विजेता कप्तान शामिल हुए। लेकिन इसमें कपिल देव शामिल नहीं थे, 25 जून, 1983 को कपिल देव की अगुवाई वाली भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज को हराकर पहली बार विश्व विजेता बनी थी। ये मुकाबला ऐतिहासिक लॉर्ड्स के मैदान में खेला गया था। इस मैच में भारतीय टीम ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया था। भारतीय बल्लेबाजों ने बेहतरीन शुरुआत की लेकिन कैरेबियाई गेंदबाजों ने भारत को 183 रन पर रोक दिया। 184 रनो के टारगेट का पीछा करने के लिए वेस्टइंडीज की टीम उतरी लेकिन संघर्ष करते हुए 43 रन पहले ही ऑल आउट हो गई थी।

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भारत ने इस मुकाबले में शानदार जीत दर्ज की थी। पहली बार भारत विश्व कप जीता था। 2002 में विजडन द्वारा कपिल देव को सदी के भारतीय क्रिकेटर के रूप में नामित किया गया था, जो भारतीय क्रिकेट पर उनके स्थायी प्रभाव का एक प्रमाण है। कपिल देव की उल्लेखनीय क्रिकेट यात्रा, अनगिनत रिकॉर्ड और खेल पर उनके द्वारा छोड़े गए गहरे प्रभाव ने उन्हें न केवल भारत में बल्कि वैश्विक मंच पर भी एक क्रिकेट किंवदंती के रूप में मजबूती से स्थापित किया है। क्रिकेट के प्रति उनका समर्पण, कौशल और जुनून दुनिया भर में महत्वाकांक्षी क्रिकेटरों और खेल प्रेमियों को प्रेरित करता रहता है। 1983 विश्व कप में भारत ने शानदार प्रदर्शन के दम पर ताकतवर टीम वेस्टइंडीज का दबदबा खत्म कर दिया. कपिल देव भारत के लिए विश्व कप जीतने वाले पहले कप्तान बने। कपिल देव के बाद महेंद्र सिंह धोनी भारत को वनडे वर्ल्ड कप जिताने वाले दूसरे भारतीय कप्तान हैं। कपिल ने कहा कि वह अपने साथी खिलाड़ियों के साथ मैच के लिए जाना चाहते थे।

पूर्व क्रिकेटर के बयान का यह मामला तूल पकड़ सकता है, क्योंकि उनके ही नेतृत्व में भारत पहली बार वर्ल्ड कप की ट्रॉफी जीता था। उस वक्त 60 ओवर का मैच हुआ करता था और उस मैच में वेस्ट इंडीज की मजबूत टीम फाइनल मुकाबले में भारत के सामने मोर्चा लेने उतरी थी। इस बार टीम इंडिया को विश्व कप के फाइनल मुकाबले में पहले बैटिंग करने का मौका मिला था। भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 241रनों का ही टारगेट दिया था। इस बार के मुकाबले में टीम इंडिया के बल्लेबाज कोई कमाल नहीं दिखा पाए। इसके बाद पूरे देश की उम्मीद बॉलिंग और फील्डिंग पर टिकी थी। लेकिन सारे उम्मीद पर पानी फिर गया।

ये लेखक के अपने विचार हैं लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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