पूर्व प्रधानमंत्री कम, किसान नेता ज्यादा थे चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh)
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
चौधरी चरण सिंह का जन्म मेरठ के हापुड़ में नूरपुर गांव में जाट परिवार में 23 दिसंबर 1902 को हुआ था। वैसे तो करियर के तौर शुरुआत उन्होंने वकालत से की लेकिन गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन में ही भाग लेते हुए वे राजनीति में प्रवेश कर गए थे।लेकिन उससे पहले ही वे गाजियाबाद से आर्य समाज में सक्रिय हो गए थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे दो बार भी गए थे। 1977 के आमचुनाव में बिखरा हुआ विपक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के खिलाफ एकजुट हो गया और जनता पार्टी के बैनर तले चुनाव भी जीतने में सफल हुआ। तब सांसदों ने जयप्रकाश नारायाण और आचार्य कृपलानी पर प्रधानमंत्री चुनने की जिम्मेदारी छोड़ दी थी जिसके बाद मोरारजी देसाई देश के चौथे प्रधानमंत्री बने जबकि देसाई ने चरण सिंह को नाम गृह मंत्री के लिए सुझाया। लेकिन चरण सिंह की जनता सरकार से ज्यादा समय तक नहीं बनी।
चरण सिंह की राजनीति में कोई दुराव या कोई कपट नहीं था, बल्कि जो उन्हें अच्छा लगता था, उसे वो ताल ठोक कर अच्छा कहते थे, और जो
उन्हें बुरा लगता था, उसे कहने में उन्होंने कोई गुरेज़ भी नहीं किया।वरिष्ठ पत्रकार जिन्होंने उनके व्यक्तित्व को बहुत नज़दीक से देखा है, बताते हैं, “उनका बहुत रौबीला व्यक्तित्व होता था, जिनके सामने लोगों की बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। उनके चेहरे पर हमेशा पुख़्तगी होती थी। हमेशा संजीदा गुफ़्तगू करते थे। बहुत कम मुस्कुराते थे।मैं समझता हूँ एकआध लोगों ने ही उन्हें कभी कहकहा लगाते हुए देखा होगा।वो उसूलों के पाबंद थे और बहुत साफ़-सुथरी राजनीति करते थे।” वो बताते हैं, “राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान वो महात्मा गाँधी और कांग्रेस की मिट्टी में तपे। 1937 से लेकर 1977 तक वो छपरौली – बागपत क्षेत्र से लगातार विधायक रहे।
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प्रधानमंत्री बनने के बावजूद मैंने कभी नहीं देखा कि उनके साथ किसी तरह का कोई लाव – लश्कर चलता हो।” वो मामूली सी एंबेसडर कार में चला करते थे। वो जहाज़ पर उड़ने के ख़िलाफ़ थे और प्रधानमंत्री होने के बावजूद लखनऊ ट्रेन से जाया करते थे। अगर घर में कोई अतिरिक्त बल्ब जला हुआ है तो वो डांटते थे कि इसे तुरंत बंद करो। मैं कहूंगा कि चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति के ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने न्यूनतम लिया और अधिकतम दिया। प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे चौधरी साहब का जीवन खुली किताब था, जिसपर कोई दाग नहीं लगा। स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी शासन की नाक में दम करने वाले चौधरी साहब ने हमेशा गांव गरीब एवं किसानों की आवाज को बुलंद किया। चौधरी साहब गाय को बेचने के खिलाफ थे। भारतीय राजनीति में मील का पत्थर साबित हुए चौधरी साहब के विरोधी भी उनकी ईमानदारी के कायल रहे। निधन के 36 साल बाद भी उनकी प्रासंगिकता की मिसाल यह है कि मंच किसी भी राजनीत दल का हो लेकिन चौधरी साहब का
नाम लिए बिना बात शुरू नहीं होती।
‘धरा पुत्र चौधरी चरण सिंह और उनकी विरासत’ पुस्तक के अनुसार,चौधरी साहब ने सितंबर 1970 में मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने की घोषणा की तब वह कानपुर में दौरे पर थे। वहीं से सरकारी गाड़ी वापस की तथा प्राइवेट वाहन से लखनऊ पहुंचे। चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की राजनीतिक सेवा की। उनकी ख्याति एक कड़क नेता के रूप में हो गई थी। प्रशासन में अक्षमता, भाई – भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को वे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे।उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था।
मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम खेती की जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था ,ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके।देश में कुछ-ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने लोगों के बीच रहकर सरलता से कार्य करते हुए इतनी लोकप्रियता हासिल की। एक समर्पित लोक कार्यकर्ता एवं सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले चौधरी चरण सिंह को लाखों किसानों के बीच रहकर प्राप्त आत्मविश्वास से काफी बल मिला। चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढऩे और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें लिखी जिनमें च्ज़मींदारी उन्मूलन, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीजऩ ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम, को – ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद् आदि प्रमुख हैं।
उनका रौबीला व्यक्तित्व था, जिसके सामने लोगों की बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। उनके चेहरे पर हमेशा परिपक्वता होती थी। वे हमेशा संजीदा बातचीत करते थे और बहुत कम मुस्कुराते थे। उन्हें कभी ठहाके मारकर हंसते हुए शायद ही किसी ने देखा हो।वह उसूलों के पाबंद थे
और बहुत साफ़-सुथरी राजनीति के पक्षधर थे।राष्ट्रीय आंदोलनो के दौरान वह महात्मा गाँधी और कांग्रेस की मिट्टी में तपे थे।सन१९३७ से लेकर सन 1977 तक वह छपरौली – बागपत क्षेत्र से लगातार विधायक रहे।
प्रधानमंत्री बनने के बावजूद उनके साथ किसी तरह का कोई लाव – लश्कर नहीं चलता था।बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि वह संत कबीर के बड़े अनुयायी थे। कबीर के कितने ही दोहे उन्हें याद थे। वे एचएमटी घड़ी बाँधते थे और पूर्णत: शाकाहारी थे। स्व. चौधरी चरण सिंह ने आगरा कॉलेज आगरा से एलएलबी किया था। वे आगरा कॉलेज के सप्रू हॉस्टल के रूम नंबर 27 में रहते थे। चौधरी चरण सिंह का रसोईया वाल्मीकि समाज से था। उनके साथ शिक्षारत विद्यार्थियों ने इस बात का विरोध किया, लेकिन चौधरी चरण सिंह उस रसोइये के समर्थन में रहे, उन्होंने कहा कोई उंचा नीचा नहीं होता। चौधरी चरण सिंह की इस सोच ने सबका दिल जीत लिया।वेआगरा के फतेहपुर सीकरी विधानसभा और किरावली ब्लॉक के गांव सरसा में मुख्यमंत्री बनने के बाद आये थे। गांव में आने का उद्देश्य महज औचक निरीक्षण करना था।
चौधरी चरण सिंह के साथ जिलाधिकारी भी थे।जब गांव में चौधरी चरण सिंह और जिलाधिकारी एक स्थान पर कुर्सी पर बैठे, तो वहां कुछ बुजुर्ग किसान उन्हें खड़े हुये दिखाई दिए। इस पर चौधरी चरण सिंह ने जिलाधिकारी को किसान के लिए कुर्सी छोडने को कहा। उन्होंने कहा कि इन किसानों को कुर्सी दो, क्योंकि अधिकारी जनता का सेवक होता है, मालिक नही।उनका यही गुण उन्हें साधारण किसान से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक लेकर गया। किसान नेता चौधरी चरण सिंह की यादे हमेशा जिंदा रहेगी क्योंकि उनकी यह सोच कि देश की तरक्की का रास्ता खेतो और खलियानों से होकर जाता है,आज भी सार्थक है।
आजादी के बाद भारत में सोवियत रूस की तर्ज पर आर्थिक नीतियां लगाई गईं, चौधरी साहब का कहना था कि इंडिया में ये चलेगा नहीं,इसको लेकर चौधरी साहब कहते थे कि किसानों को जमीन का मालिकाना हक देने से ही बात बनेगी। उस वक्त नेहरू का विरोध करना ही बड़ी बात थी लेकिन चौधरी साहब सहकारी खेती के रूसी माडल के सख्त खिलाफ थे राजनैतिक करियर पर असर पड़ा फिर भी चौधरी साहब ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी थी, तथा नागपुर अधिवेशन में सहकारी खेती का पुरजोर विरोध कर हिंदुस्तान में सहकारी खेती लागू होने से रोकने में अहम भूमिका अदा की।
वैसे कहा जाता है कि भारत गांवों में बसता है और इसे किसानों का देश भी कहा जाता है, किसानों से जुड़े मुद्दों पर अक्सर ही अवाज बुलंद होती रहती है, वहीं आज के दिन को किसान दिवस के तौर पर मनाने का मकसद पूरे देश को यह याद दिलाना है कि किसान देश का अन्नदाता है और यदि उसकी कोई परेशानी है या उसे कोई समस्या पेश आ रही है तो ये सारे देशवासियों का दायित्व है कि उसकी मदद के लिए आगे आएं। उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2024 के लिए अपना हॉलीडे कैलेंडर जारी किया है। इस कैलेंडर में पहली बार 23 दिसंबर को अवकाश का दिन यानि सरकारी छुट्टी का दिन घोषित किया गया है। 23 दिसंबर का दिन पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह का जन्मदिन (जयंती) होता है।
चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन की छुट्टी की इस व्यवस्था को इसी साल यानि 2023 से ही लागू करने का फैसला भी कर लिया गया है। यानि इसी महीने 23 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की जयंती पर उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश रहेगा। उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले का उत्तर प्रदेश की जनता ने व्यापक स्वागत किया है। गांव की आर्थिक प्रगति के लिए चरण सिंह लघु एवं विकेंद्रित उद्योगों के हिमायती थे। उनका मानना था कि कृषि मजदूरों एवं अन्य लाखों गरीब किसानों एवं ग्रामीण बेरोजगारों की आय बढ़ाने के लिए कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देना अति आवश्यक है।
लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )