नया साल अपने समक्ष चुनौतियों का समाधान निकालने में फिर सफल होगा भारत (India)!
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
आज आवश्यकता है भारत खोजो यात्रा की। उस भारत को जहां हमारी ज्ञान-परंपरा है नए वर्ष में अनेक संभावनाएं हैं तो तमाम चुनौतियां भीं। इसी साल के इसी महीने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का सैंकड़ों वर्ष पुराना स्वप्न साकार हो रहा है। संप्रति सभी मार्ग अयोध्या की ओर मुड़ गए है। इसी उमंग में 2024 की संभावनाओं और चुनौतियों पर विचार-विमर्श स्वाभाविक हैं। बीते साल की तमाम उपलब्धियां हैं। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। भारत ने जी-20 का नेतृत्व किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जी-20 का एजेंडा भी जारी हुआ। रूस- यूक्रेन और इजरायल – हमास युद्ध में भारतीय नीति की प्रशंसा हुई है। इसी वर्ष भारत के मन और प्रज्ञा अंतरिक्ष की सतह तक पहुंच गए। चंद्रयान की सफलता अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय रही है।
भारत आत्मनिर्भर हो गया है। राष्ट्र का आत्मविश्वास बढ़ा है। इतिहास के विरूपण का विषय पूरे वर्ष चर्चा में रहा है। इतिहास लेखन का पक्षपात स्पष्ट हो गया है। इस विषय पर राष्ट्रीय विमर्श 2024 में निर्णायक मोड़ ले सकता है। श्रीराम और श्रीकृष्ण को काव्यकल्पना बताने वाले कथित लिबरल सेक्युलर इतिहासकार लज्जित हैं। भारत के प्राचीन निवासी मूल अभिजन आर्य हैं। इन्हें विदेशी हमलावर बताया जा रहा है। 2024 में इस झूठ के पर्दाफाश के आसार हैं। नई शिक्षा नीति में प्राचीन ज्ञान परंपरा को विशेष महत्व मिला है। 2023 में भारत को नया एवं भव्य संसद भवन प्राप्त हुआ है। यह उमंग का विषय है, लेकिन संसदीय कार्यवाही में गतिरोध राष्ट्रीय चिंता और चुनौती के विषय हैं। संसदीय बहसों में कटुता बढ़ी है। राजनीतिक विमर्श में अभद्र शब्द प्रयोग बढ़ा है। राष्ट्र आहत है। संसदीय संस्थाओं में हुल्लड़ एवं असंसदीय भाषा चुनौती बनकर उभरी है।
उम्मीद है कि 2024 में विधायी सदनों की भाषा प्रेमपूर्ण होगी। बहस की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। भारत विश्व का प्राचीनतम जनतंत्र है। यहां वैदिक काल में भी सभा और समिति जैसी संस्थाएं रही हैं। उनकी कार्यवाही शालीन होती थी। भारतीय संसद में 1980- 85 तक ऐसी अराजक स्थिति नहीं थी। संसदीय जनतंत्र संवैधानिक संस्थाओं से चलता है। संवैधानिक संस्थाओं का आदर प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है, लेकिन संसद और चुनाव आयोग स तमाम संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान घट रहा है। विश्वास है कि 2024 में इस चुनौती पर सकारात्मक विचार होगा। 2023 में उत्तर – दक्षिण की विभाजक चर्चा भी हुई। उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम भारत के ही अविभाज्य अंग हैं।राजनीतिक कारणों से देश के मानस को अलगाववादी बनाना घोर आपत्तिजनक है। जनसंख्या वृद्धि के कारण अनेक समस्याएं जन्म लेती हैं। संसाधन घटते जाते हैं।
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2023 में जनसंख्या वृद्धि की राष्ट्रीय चुनौती पर विशेष चर्चा नहीं हुई। समय के साथ प्रदूषण की समस्या विकराल होती जा रही है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तो सांस लेना कठिन है। इसने तमाम बीमारियों को जन्म दिया है। सरकार ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काफी कुछ किया है, लेकिन इसे लेकर जनजागरण की आवश्यकता है। सनातन धर्म भी सेक्युलर हमले का निशाना रहा है। सनातन का सीधा अर्थ है, जो सदा से है, जो सदा रहता है और जो भविष्य में भी रहेगा, वह सनातन है। सनातन अस्तित्व का नियम है और ब्रह्मांडीय अनुशासन है, लेकिन तमिलनाडु के एक मंत्री ने सनातन को डेंगू और मलेरिया आदि बताया था। यह राजनीति घटिया है।
विश्वास है कि 2024 में सांस्कृतिक अपमानजनक टिप्पणियों पर रोक लगेगी। संविधान में संस्कृति का संवर्धन राष्ट्रीय कर्तव्य है। अपनी संस्कृति को ही अपमानित करने वाले लोग 2024 में जन उपेक्षा का विषय बन सकते हैं। भारतीय संस्कृति को मैक्समूलर आदि यूरोपीय विद्वानों ने भी श्रेष्ठ बताया है। उम्मीद है कि 2024 में मथुरा, काशी सहित सभी सांस्कृतिक प्रतीकों की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता राष्ट्र निर्माताओं का स्वप्न रही है। संविधान निर्माताओं ने इस अपेक्षा को राज्य के नीति निदेशक तत्वों संहिताबद्ध किया था। नागरिक संहिता 2023 में भी विमर्श का विषय रही है। इस विषय पर पहले ही देर हो गई है। विश्वास है 2024 में इसे सामान्य लोक स्वीकृति मिलेगी और तद्नुसार विधायन होगा। नए साल की चुनौतियां बड़ी हैं। इसी साल आम चुनाव हैं।
संसदीय जनतंत्र में चुनाव महत्वपूर्ण उत्सव होते हैं, लेकिन चुनावी विमर्श में शब्द अराजकता बढ़ी है। व्यक्तिगत आरोप एवं आक्षेप बढ़े हैं। इस कारण विमर्श के महत्वपूर्ण मुद्दे पृष्ठभूमि में चले जाते हैं। दलीय घोषणा पत्रों पर बहस नहीं होती। चुनावी आचार संहिता तार – तार होती है। चुनाव आयोग से लेकर चुनाव कराने वाला प्रशासनिक तंत्र भी विषम चुनौतियों का सामना करता है। कभी-कभी चुनाव आयोग पर भी राजनीतिक दलों द्वारा आरोप लगाए जाते हैं।आयोग स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में ऐसे आरोप अंतरराष्ट्रीय अपयश बनते हैं। विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी बहुधा दुरूपयोग होता है। छिटपुट हिंसा भी होती है। कायदे से दलीय नीतियों पर बहस होनी चाहिए । प्रत्येक दल को अपनी नीति एवं कार्यक्रम के आधार पर लोकमत बनाना चाहिए, लेकिन प्रायः ऐसा नहीं होता। 2024 में आदर्श चुनाव
राष्ट्रीय अभिलाषा हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से अपने संबोधन में देशवासियों से पांच प्रण लेने का आह्वान किया था। उस संबोधन में 2022 से 2047 तक के समय को अमृतकाल कहा गया। इन संकल्पों में विकसित भारत,’गुलामी के सोच से मुक्ति’, ‘विरासत पर गर्व’,’एकता एवं एकजुटता’ और ‘नागरिकों द्वारा कर्तव्य पालन’ पांच प्रण हैं। इनमें 2047 तक भारत को विकसित बनाने का ध्येय महत्वपूर्ण है। प्रण सांस्कृतिक हैं। उनके लक्ष्य आर्थिक हैं। राष्ट्रीय एकता महत्वपूर्ण लक्ष्य है। विश्वास है कि पांचों प्रण/संकल्प भारत के राष्ट्रजीवन में गुणात्मक परिवर्तन लाएंगे। 2024 में ऐसे सभी राष्ट्रीय प्रश्नों एवं चुनौतियों पर गहन विमर्श की संभावनाएं हैं।
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उम्मीद है कि राष्ट्रजीवन के भिन्न- भिन्न क्षेत्रों में सक्रिय महानुभाव गहन विमर्श के लिए आगे आएंगे। साझा विचार और समवेत संकल्प 2024 को मंगलमय बनाएंगे। राजनीतिक पार्टियां और नेता हवा का रुख भांप रहे हैं। वो नई-नई रणनीतियां बनाने में जुटे हैं। किन मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगी बड़ी पार्टियां और किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा चुनाव आयोग को। इसके सिवा देश-विदेश के मोर्चे पर कई तरह की चुनौतियां होंगी तो बहुत से अवसरों को लपकने का मौका भी होगा। यह देखना होगा कि सरकार और सुरक्षा बल इन चुनौतियों का कैसे सामना करते हैं और आने वाले साल में भारत की रक्षा और विदेश नीति को किस मोड़ देते हैं।
2023 का वर्ष भारत के लिए कई मायनों में बहुत अच्छा बीता, हालांकि कुछ चुनौतियां भी देखने को मिलीं। यह तो सामान्य नियम है कि सिर्फ अच्छा-अच्छा तो हो नहीं सकता। अर्थव्यवस्था में पर्याप्त कार्यबल का प्रवेश, डिजिटल क्षमताओं से लैस आबादी और एक संपन्न नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का विकास सामूहिक रूप से एक व्यापक प्रतिभा पूल के निर्माण में योगदान देता है। निवेश के क्षेत्र में, भारत की अपील
कायम है,जो वैश्विक कंपनियों को पर्याप्त पैमाने, कुशल प्रतिभा और अत्याधुनिक तकनीक प्रदान करती है। सूक्ष्म,लघु या मध्यम उद्यम उपभोग , विनिर्माण और बुनियादी ढांचे के निवेश में निरंतर वृद्धि के लिए नौकरियों, आय, क्षमताओं और पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण बने रहेंगे। 2024 में भारत में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने वाले प्रमुख उद्योगों में स्वास्थ्य सेवा और बीमा, फिनटेक, नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु तकनीक, इलेक्ट्रिक वाहन और ऑटोमोबाइल, आईटी और सेवाएं, रियल एस्टेट और बुनियादी ढांचा, तकनीकी नवाचार शामिल हैं।
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भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था निवेशकों को आकर्षित करती रहेगी क्योंकि लोगों के जीवन, शासन और उद्यम संचालन में बदलाव के लिए प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान मांगे जा रहे हैं। ऑनलाइन उत्पादों और सेवाओं की मांग में तेजी से वृद्धि भारत के गैर-महानगरीय (टियर-2 और टियर-3) शहरों की बढ़ती खर्च करने की शक्ति का भी प्रतिबिंब है। 2014 में कुल सकल घरेलू उत्पाद में डिजिटल अर्थव्यवस्था का
हिस्सा 4-4.5 प्रतिशत था और वर्तमान में यह 11प्रतिशत है। सरकार का अनुमान है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था 2026 तक भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का 20 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी। भारतीय आईटी उद्योग लगातार आगे बढ़ रहा है, क्योंकि इसकी विशेषज्ञता सभी क्षेत्रों पर लागू होती है,और 2030 तक 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व उत्पन्न होने का अनुमान है; यह वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत का योगदान देता है।
2024 में निवेश-आधारित विकास के लिए तैयार उभरते उद्योग हैं बैटरी ऊर्जा भंडारण समाधान , हरित हाइड्रोजन , जैव प्रौद्योगिकी, एवीजीसी (एनीमेशन, दृश्य प्रभाव, गेमिंग, कॉमिक्स), और सेमीकंडक्टर चिप निर्माण, असेंबली और डिजाइन। भारतीय बाजार पर नजर रखने वाली विदेशी कंपनियां फायदे में हैं क्योंकि राज्य सरकारें लचीली हैं और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को आकर्षित करने और बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने के लिए प्रतिस्पर्धी छूट की पेशकश करती हैं। नौकरियों की बदलती प्रकृति और इसके बड़े युवा जनसांख्यिकीय समूह को देखते हुए, शिक्षा सुधार और कौशल नीति निर्माताओं के लिए बड़े फोकस क्षेत्र हैं। भारतीय शिक्षा बाजार में करीब 1.5 मिलियन स्कूल और लगभग 265 मिलियन छात्र हैं।
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विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत का शिक्षा क्षेत्र वित्त वर्ष 2029-30 तक 313 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा। इस तरह सन 2024 भारत में नई सामाजिक राजनैतिक आर्थिक क्रांति की नई सुबह लेकर आ रहा है। चुनौतियों की भले ही भरमार लग रही हो, लेकिन उम्मीदें और संभावनाएं भी कम नहीं हैं। जिम्मेदारी को समझते हुए, सजग रहते हुए नये साल में संभल-संभल कर पग धरेंगे तो निश्चित रूप से नये फलक पर विचरण के लिए कल्पनाओं को पंख लगेंगे और हर नयी डगर हकीकत के धरातल पर सकुशल आगे बढ़ेगी। अपने हिस्से की जिम्मेदारी को समझते हुए हर कोई कर्तव्य और अधिकार का संतुलन बनाए रखे तो यह परिवार, समाज के साथ देशहित में होगा।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )