23 सालों में उत्तराखंड में कई सरकारें आई हैं
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तर प्रदेश से अलग होकर साल 2000 में एक पहाड़ी राज्य उत्तराखंड बना। उत्तराखंड अपनी भौगोलिक परिस्थितियों और सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है, लेकिन इसके बावजूद उत्तराखंड देश और दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुआ है। अब उत्तराखंड 24वें साल में प्रवेश कर गया है। इसके इतर कई मामलों में राज्य में कई काम होने बाकी हैं। देवभूमि में भ्रष्टाचार के दानवों पर कार्रवाई करने में मुख्यमंत्री सबसे आगे हैं? 23 साल में राज्य की बागडोर संभालने वाले 10 मुख्यमंत्रियों में धामी ने सिर्फ ढाई साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार पर सबसे तेज और बड़ी कार्रवाई का रिकॉर्ड बनाया है। खासकर गुजरते साल 2023 में सरकार ने भ्रष्टाचार में लिप्त 18 ट्रैप में 4अफसरों समेत 19 को जेल भेजा है। जबकि सिर्फ ढाई साल के कार्यकाल में धामी सरकार ने सबसे ज्यादा 38 ट्रैप कर 40 भ्रष्टाचारियों को सलाखों के भीतर डाला है।
यही नहीं धामी अकेले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने राज्य के इतिहास में पहली बार आईएएस, आईएफएस और पीसीएस अफसरों को भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने पर सीधे सलाखों के भीतर डाला है। सरकार की यह कार्रवाई सुशासन और भ्रष्टाचारमुक्त का संदेश देती है। गुजरते साल 2023 में उत्तराखंड की सरकार ने सुशासन को लेकर कई कड़ी कार्रवाई और बड़े निर्णय लिए हैं। खासकर भ्रष्टाचारमुक्त शासन को प्राथमिकता देते हुए मुख्यमंत्री धामी ने पहले कार्यकाल में शपथ लेते ही विवादों से घिरे तत्कालीन मुख्य सचिव को हटाते हुए बड़ा संदेश दिया था। इसके बाद धामी सरकार 02 में भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई। इसमें नकल माफियाओं का तंत्र ध्वस्त करने के साथ ही गैंग में शामिल आरोपियों की रिकॉर्ड 64 गिरफ्तारियां कर 24 के खिलाफ गैंगस्टर की कार्रवाई अमल में लाई गई। इन सभी की 17 करोड़ से ज्यादा की अवैध संपत्ति जब्त की गई। जबकि 12 से अधिक आरोपियों के खिलाफ संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई जारी है।
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राज्य के इतिहास में भ्रष्टाचार की गहरी जड़ जमाए विवादित आईएएस और आईएफएस को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप में गिरफ्तार कर सरकार ने जेल भेजकर अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई की है। विजिलेंस की कार्रवाई के बाद दोनों अफसरों के खिलाफ अब केंद्रीय जांच एंजेसी ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने भी आय से अधिक संपत्ति के मामले में कार्रवाई की हैं। उत्तराखंड के इतिहास में यह कार्रवाई अब तक की
सबसे बड़ी है। इससे सरकार ने एक बार फिर सुशासन और ईमानदारी का संदेश दिया है।इसका नतीजा रहा कि 2023 में जनवरी से दिसम्बर तक विजिलेंस ने भ्रष्टाचारियों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रिकॉर्ड बनाते हुए 18 ट्रैप कर 4 अफसरों और 15 कार्मिकों को जेल डाला गया। धामी सरकार में ढाई साल में ही भ्रष्टाचार में लिप्त 38 आरोपियों को ट्रैप कर सलाखों के भीतर डाले गए। इसके अलावा 2022 में 14 ट्रैप में 14 गिरफ्तारी तो 2021 में 6 ट्रैप में 7 को जेल भेजा गया। कुल मिलाकर भ्रष्टाचारमुक्त सरकार के पैमाने पर उत्तराखंड में सरकार खरी उतर रही है।
सरकार ने हाल ही में हरिद्वार में करोड़ों की शत्रु संपत्ति कब्जाने और इसमें मिलीभगत करने वालों की जांच विजिलेंस को दी थी। विजिलेंस ने इस मामले में पीसीएस अफसर समेत 10 से ज्यादा सरकार कर्मचारियों और जमीन कब्जाने वालों पर मुकदमा दर्ज कराया है। इससे गलत तरीके से जमीनों की खुर्द बुर्द करने वालों में हड़कंप मचा हुआ है। देवभूमि में भ्रष्टाचार के दानवों की कोई जगह नहीं है। हमारी सरकार ने भ्रष्टाचारी कितना भी बड़ा क्यों न रहा हो निष्पक्षता के साथ कड़ी कार्रवाई की गई। सुशासन और भ्रष्टाचारमुक्त शासन हमारी प्राथमिकता में है। इसमें किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं होगी। भ्रष्टाचार से जुड़े हर मामले में पुलिस और जांच एजेंसियों को भी निष्पक्ष जांच के निर्देश दिए हैं। राज्य बनने के बाद भी आज यह प्रदेश जमीनों की लूट-खसोट, लगातार हो रहे पलायन,अनेक भर्ती घोटालों, बेरोजगारों के दमन,स्त्रियों द्वारा सडक पर किये जा रहे प्रसव, हर घर को शराब का बार बना देने की कोशिश, समाज को साम्प्रदायिक विद्वेष की आग में झोंक देने के षड़यंत्र और शासकों के रनिवास के खनन के पट्टे बेचने की दुकान बन जाने जैसी बातों के लिये प्रसिद्ध हो रहा है।
मीडिया के पूरी तरह सत्ता के शरणागत हो जाने के कारण अब खबरें भी उस तरह नहीं फैलतीं कि जनता का व्यापक असंतोष एक संगठित प्रतिरोध में बदल सके। यह स्थिति तब तक जारी रहनी ही है, जब तक 2024 में केन्द्र सरकार के बदलने पर यह सरकार डबल इंजन के बदले सिंगल इंजन की नहीं हो जाती। राज्य बनने के साथ ही उत्तराखंड में भ्रष्टाचार की गंगा बहनी शुरू हुई तो ऐसे ही राजनीतिक लोग इसके लिए
जिम्मेदार हैं। क्या ऐसे लोगों को बेनकाब नहीं किया जाना चाहिए? भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं को क्या सजा मिलनी चाहिए, इस पर कोई क्यों नहीं बोलता ? यह लेखक के निजी विचार हैं।
( दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )