चकराता: यहां जरूरतमंद ॠण लेने वालों को बैंक में खाता (Bank Account) खुलवाने को कई चक्कर काटने को विवश होना पड़ रहा
नीरज उत्तराखंडी/चकराता
चकराता जिला सहकारी बैंक के शाखा प्रवन्धक एवं सचिव की मनमानी एवं गैरजिम्मेदार रवैये के चलते किसानों एवं जरूरतमंद लोगों के लिए सुलभ व ब्याज मुक्त कृषि ॠण दूर की कौडी साबित हो रहा है।
ऐसे में सरकार का सपना सबका साथ, विकास, विश्वास और प्रयास का ड्रीम प्रोजेक्ट कैसे पूरा होगा, जब सरकारी योजनाएं अंतिम पंक्ति पर खड़े लाभार्थी तक पहुंचाने में जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी कोताही लापरवाही व मनमानी करने पर उतारू हो।
मनमानी का आलम यह है कि पहुंचहीन जरूरतमंद ॠण आवेदन कर्ताधर्ताओं को बैंक में खाता खुलवाने को कई चक्कर काटने को विवश होना पड़ रहा है। लेकिन कम्बखत खाता खुलने का नाम नहीं लेता।
ऋण लाभार्थी का पहले खाता खुलवाने का फार्म भरकर रख दिया जाता है और उसे यह आश्वासन देकर विदा किया जाता है कि जब खाता खुल जायेगा तो आप के मोबाइल नंबर पर एक मैसेज आयेगा और आप बैंक आ जाना ॠण की फाइल एकदम तैयार है।
लोन आवेदन कर्ता सचिव के इस सौम्य व्यवहार से गदगद हो जाता है और खुशी-खुशी घर लौट आता है, यह समझकर की उसका लोन जल्दी स्वीकृत हो जायेगा और उसकी जरूरतें पूरी होगी, लेकिन यह क्या तीन माह बीत जाने के बाद भी कोई मैसेज नहीं आता,तो लाभार्थी सचिव से संपर्क साधता है। फिर उसे आश्वासन की मीठी गोली दी जाती है खाता खुलने में समय लगता है थोड़ा और धैर्य धरो।
मैनेजर से संपर्क करने पर कहा जाता है कि ॠण के खाते खोलने के लिए सचिव की संस्तुति अनिवार्य होती है अतः सचिव से संपर्क करे। सचिव कहता है कि उन्होंने तो आवेदन की तिथि को ही संस्तुति कर दी थी। इस प्रकार एक दूसरे के पाले में गेंद डालकर ॠण लेने वाले आवेदन कर्ता को मूर्ख बनाकर चक्कर घिन्नी की तरह घुमाया जाता है। कभी व्यस्तता का बहाना बनाया जाता है तो कभी नियम कायदे कानून की पट्टी पढ़ाई जाती है।
वहीं दूसरी ओर बताया जा रहा है कि उंची पहुंच, पहचान व सगे-संबंधियों का खास ध्यान रखा जाता है, उनके एक ही दिन में खाते खुल जाया करते हैं और लोन का भुगतान भी उसी दिन कर दिया जाता है, लेकिन सच्चाई को जानने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम का उपयोग करना सार्थक लगता है और मामले में उच्च अधिकारियों को से संज्ञान में लाना उचित लगता है। सरकारी योजनाएं केवल उंची पहुंच के लोगों की रखैल बनकर रह गई है। संबंधित अधिकरी व्यवस्थतता का हवाला देकर ऋणी आवेदन कर्ताओं व उपभोक्ताओं के फोन उठा उचित नहीं समझते हैं।
एक भुगतभोगी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वे मामले की सीएम व पीएम पोर्टल पर शिकायत करेंगे?
बहरहाल चकराता जिला सहकारी बैंक मैनेजर एवं सचिव की मनमानी एवं गैरजिम्मेदार रवैये के चलते किसानों एवं जरूरतमंद लोगों के लिए सुलभ व व्याज मुक्त कृषि ॠण दूर की कौडी साबित हो रहा है। कई पहुंचहीन आवेदन कर्ताओं की लोन आवेदन की फाइलें बैंक में धूल फांक रही है? आखिर मनमानी के इस आलम को कौन तोड़ेगा? जो जानकार व सजग है उन्हें संतुष्ट किया जाता है प्राथमिकता के आधार पर उनका काम करके।
जिला सहकारी बैंक उपभोक्ताओं का कहना है कि सचिव साहब उनका फोन नहीं उठाते है अगर कभी फोन उठ भी जाया करता है तो व्यवस्थतता का हवाला देकर बेवकूफ बनाया जाता है। बैंक से केसीसी नवीनीकरण व लोन लेने के लिए उपभोक्ताओं को कई चक्कर काटने पड़ते है उनके लोन आवेदन की लाइले बैंक में धूल फांक रही होती है।
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वहीं त्यूनी तहसील क्षेत्र से आये लोगों को चकराता में डेरा डालना पड़ता है जिसे और आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। बैंक द्वारा कोई संदेश व सूचनाओं के आदान प्रदान न करने से कई किसान समय पर कृषि ॠण का भुगतान नहीं कर पाते, जिसके कारण उन्हें व्याज मुक्त कृषि ॠण पर भी ब्याज चुकाना पड़ता है।
वही दूसरी ओर किसानों के मौसम आधारित फसली बीमा की किस्तें उनके खाते से तो काटी जाती है लेकिन बीमा क्लेम नहीं दिया जाता।
बैंक मैनेजर व सचिव की अव्यवस्था मनमानी और गैरजिम्मेदार रवैये के चलते किसानों को सरकार द्वारा संचालित ब्याज मुक्त ऋण का सपना साकार नहीं हो पा रहा है?
सूत्र बतातें हैं की लोन बांटने में रिश्तों व संगें संवधियों सम्पन्न सक्षम लोगों पर मेहरबानी जारी है। एक ही दिन में खाता खोल कर भुगतान भी कर लिया जाता है? आरोपों में कितनी सच्चाई है यह जांच का विषय है ।
इस संबंध में मैनेजर से उनके व्हटसएप पर उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया लेकिन उन्होंने कोई जबाव नहीं दिया । प्रतिक्रिया आने के बाद उनका पक्ष अपडेट किया जायेगा ।
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वही दूसरी ओर सचिव से उनके मोबाइल नंबर संपर्क किया लेकिन संपर्क नहीं हो सका। बात होने पर उनका पक्ष अपडेट किया जायेगा । बहरहाल तो यही कहा जा सकता है।
भूख मिटने के बाद भोजन के स्वाद व सुख का महत्व, प्यास से मूर्छित होने के उपरांत पानी और सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होने के बाद सम्मान और दिवालिया निकलने के बाद आर्थिक मदद करने व सक्षम व सम्पन्न होने के उपरांत जरूरतमंदों की सरकारी सहायता करने का कोई महत्व नहीं रह जाता है। अपने पद प्रतिष्ठा और मद की ताकत का दुरूपयोग के उपरांत बेहतर राजकीय सेवक कहलाना निरर्थक है । यह पहले थप्पड़ मारो और फिर गाल सहलाओ और आग लगाने के बाद पानी की तलाश में भागने जैसा ही होगा ?
बतातें चलें कि सहकारिता विभाग में दो तरह का लोन है। एक अल्पकालीन, दूसरा दीर्घकालीन अल्पकालीन में 6 माह के अंदर जो केसीसी की तरह है। उसे रिन्यू किया जाता है और दीर्घकालिक लोन जो व्यवसायिक है तथा उसमें ब्याज भी अधिक है, जबकि लोन की समय सीमा 3 साल की है तथा ब्याज मुक्त ऋण है, लेकिन सहकारिता विभाग ऋणी को स्पष्ट रूप से नहीं समझाता है कि अगर समय पर ऋण अदा नहीं किया जाएगा तो उसमें कितना ब्याज लगेगा। 1 दिन की लेटलतीफी पर भी पूरे साल का ब्याज वसूला जाता है यह बानगी है सहकारिता विभाग की।
सहकारिता विभाग की त्यूनी निमगा जौनसार बावर में कई जगह पर उप शाखाएं खुली है, लेकिन कार्य चकराता में ही होते हैं। जिला स्तर के अधिकारी गंभीर मामलों में ही निरीक्षण करने आते हैं, नियुक्ति तो सचिवों की क्षेत्रीय स्थलों में है कामकाज ब्लॉक स्तर पर करते हैं, शिकायत करने वालों की खैर नहीं ।
कॉपरेटिव सचिव महीना तो दूर 1 वर्ष में एक माह भी सहकारिता विभाग क्षेत्रीय कार्यालय में नहीं बैठते। जब आते हैं क्षेत्र में बिना सूचना के आते हैं, जब पता चलता है तब तक चले जाते हैं।
सहकारिता विभाग में इससे पहले भी कई घोटाले हो चुके हैं- जैसे नियुक्तियों के संबंध में या अन्य, लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं। सहकारिता विभाग की वास्तविकता यह है कि खाद बीज से लेकर स्थानीय लोगों के साथ समन्वयता के साथ चाहे कृषि से संबंधित कोई कोई जानकारी हो, खाद बीज से लेकर कोई परेशानी हो, डबल इंजन सरकार कि कोई किसानों से संबंधित आय दोगुनी से संबंधित शिकायत हो, उसका समन्वय बनाकर निराकरण करना प्राथमिकता है, लेकिन यह सब दावे हवाई व बौने साबित हो रहे हैं।