सवाल: आजादी के बाद से आज भी प्यासे हैं यहां! - Mukhyadhara

सवाल: आजादी के बाद से आज भी प्यासे हैं यहां!

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सवाल: आजादी के बाद से आज भी प्यासे हैं यहां!

Harishchandra Andola

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं और उत्तराखण्ड को अलग राज्य बने भी 22 वर्षों से ज्यादा समय हो चुका है। परंतु राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है  गौलापार स्थित विजयपुर गांव के लोग आजादी के बाद से मांग कर रहे हैं कि सूखी नदी के संकट को दूर करने के लिए काजवे यानी पुलनुमा सड़क का निर्माण हो ताकि नीचे बड़े पाइपों के जरिये नदी का पानी निकल जाए। दूसरी तरफ ऊंची सड़क पर वाहनों का आवागमन हो सके। लेकिन
मामला केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में फंसा पड़ा है। खास यह कि कागजों में भविष्य के इस पुल की लंबाई दो बार घट चुकी है। लेकिन बरसात का दौर शुरू होते ही ग्रामीणों का संकट घटने का नाम नहीं ले रहा। गौलापार में सूखी नदी के पार टापूनुमा विजयपुर गांव में 80 परिवारों में करीब 600 लोग रहते हैं। पूरा साल गांव का माहौल सामान्य रहता है लेकिन मानसून सीजन शुरू होते ही संकट की स्थिति खड़ी हो जाती है। गांव और गौलापार के बीच में सूखी नदी पड़ती है जो कि पहाड़ पर बरसात होते ही उफान मारने लगती है। उस समय नदी पार कर गौलापार या हल्द्वानी पहुंचना सबसे बड़ी चुनौती बन जाता है। ग्रामीणों की मांग थी कि 2000 मीटर सूखी पार करने को रास्ता बने। लेकिन दो सर्वे में लंबाई घटकर 1300 मीटर हो गई। मगर वनभूमि हस्तांतरण नहीं होने के कारण लोनिवि काम आज तक शुरू नहीं कर सका। इस मानसून भी ग्रामीणों की समस्या खत्म नहीं होगी। कुछ माह पूर्व गांव की एक महिला ने शहर के अस्पताल में पेट से जुड़ी दिक्कत को लेकर आपरेशन करवाया था। उसके बाद मजबूरी में एक माह तक हल्द्वानी में किराया का कमरा लेकर रहना पड़ा। स्वजन भी देखभाल को यहां जुटे थे। गांव की पथरीली सड़क पर चोट के फिर उभरने का डर था।सूखी उफान पर आए तो क्या होता है  बच्चों को स्कूल जाने में खतरा, इसलिए पढ़ाई ठप हो जाती है। हल्द्वानी में नौकरी या काम के लिए आने वाले लोग परेशान।बीमार व गर्भवती को अस्पताल लेकर जाना मुश्किल हो जाता है। घंटों दोनों छोर पर खड़े होकर लोग पानी रुकने का इंतजार करते हैं।इसलिए अटका है

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मामला पहले 2000 मीटर लंबाई के काजवे की मांग थी। जो कि दो सर्वे में घटकर 1300 मीटर हो गई। ग्रामीणों ने पहले विरोध कर कहा कि लंबाई नहीं घटाई जाए। इस विवाद में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति ही नहीं मिल पाई। ऐसे में ग्रामीण भी राजी हो गए। लेकिन केंद्रीय मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाणपत्र अभी तक नहीं मिला। वहीं, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति को तलाशी गई जमीन पर एक बार आपत्ति लग गई। हल्द्वानी को कुमाऊं का प्रवेश द्वार के साथ आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)

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