मामचन्द शाह
देहरादून। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत के उस बयान के बाद भाजपा के कम सक्रिय विधायकों में हलचल शुरू हो गई है। यही नहीं गत दिवस प्रदेश अध्यक्ष के उस बयान को सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी सही ठहराया है। ऐसे में भाजपा विधायकों को आने वाले समय में अपने रिपोर्ट कार्ड दुरुस्त करना जरूरी हो गया है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने एक बयान में कहा था कि,-”मैं सोचता हूं कि पहले एक सर्वे करके स्थिति का जायजा करेंगे। उसके बाद अलर्ट कर देंगे कि भई तुम्हारे लिए ऐसा हो रहा है, तुम संभलना चाहो तो संभल लो।”
उसके बाद गत दिवस मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी उस बयान को सही ठहराया और कहा कि,-”बंशीधर भगत जी हमारे प्रदेश के पार्टी के मुखिया हैं और उन्होंने जो कुछ बोला है वो उन्होंने बहुत सोच-समझकर ही बोला होगा। ये बात ठीक है कि जो परफार्म नहीं कर पाते तो उनको क्यों विधानसभा में रहना चाहिए। ये निर्णय अंतत: जनता को लेना होता है। फिर भी अगर माना कहीं पर कोई इस तरह के सवाल आते हैं तो इसी बात को लेकर के शायद भगत जी ने ये बात कही। लगातार प्रदेश के भ्रमण में है उनके सामने कुछ विषय आए होंगे, तब उन्होंने ये बात कही।”
जाहिर है कि प्रदेश भाजपा के मुखिया बंशीधर भगत और सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयानों से स्पष्ट होता है कि भाजपा आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों में किसी भी कीमत पर ऐसे निष्क्रय विधायकों को एक और मौका नहीं देना चाहती है, जो बीते पांच वर्षों में अपनी विधानसभा क्षेत्र में नई छवि स्थापित करने में फ्लॉप रहे हों।
दरअसल इसमें भी कोई संदेह नहीं कि भाजपा के कई विधायक अपनी सक्रियता और तेजतर्रार कार्यशैली के लिए पार्टी और जनता के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं। बावजूद इसके कई ऐसे विधायक भी हैं, जिनकी मोदी लहर में नैय्या पार तो लग गई, लेकिन उसके बाद का उनका परफॉर्मेंस पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला साबित हुआ। जैसे-तैसे ऐसे विधायकों का साढ़े तीन साल का सफर कट चुका है। अब चूंकि विधानसभा चुनाव के लिए करीब डेढ़ वर्ष का समय शेष है, ऐसे में इसी वर्ष पार्टी की कमान संभालने वाले प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत के लिए भी नई चुनौती खड़ी है। ऐसे में पार्टी को 2022 में एक बार पुन: सत्ता में लाने के संकल्पों के साथ वह प्रदेशभर के लगातार दौरे कर रहे हैं और बारीकी से विभिन्न क्षेत्रों की नब्ज भी टटोल रहे हैं।
उनके बयान से प्रतीत होता है कि उन्होंने निष्क्रिय विधायकों से होने जा रहे संभावित नुकसान को अपनी राजनीतिक दृष्टि से भांप लिया है, ऐसे में आने वाले समय में पार्टी को इसका खामियाजा न भुगतना पड़े, इसके लिए वे अभी से ही तैयारियों में जुट गए हैं। यही कारण है कि समय रहते सर्वे के बाद रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ऐसे विधायकों को संभलने की चेतावनी दी जाने की बात की जा रही है।
अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने भी सौ फीसदी सही कहा है कि जो विधायक परफार्म नहीं कर पाते हैं तो उनको विधानसभा में क्यों रहना चाहिए? ऐसे में वे विधायक ज्यादा चिंतित नजर आ रहे हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल के साढे तीन वर्षों में अपने क्षेत्र के लिए कुछ खास नहीं किया।
जाहिर है कि जिन विधायकों को अब तक अपने-अपने क्षेत्रों से कोई खास सरोकार नहीं रहा, वे स्वयं को बेहतर ढंग से भली-भांति जानते होंगे। ऐसे में आने वाले समय में ऐसे विधायकों को अपना बढिय़ा रिपोर्ट कार्ड बनाने का चैलेंज भी कोरोनाकाल में खड़ा हो गया है।
सर्वविदित है कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तराखंड में अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए 70 में से 57 सीटों पर फतह हासिल की थी। हालांकि मोदी लहर में कई ऐसे चेहरे भी पास हुए, जो राजनीति के लिहाज से काफी नए थे। लोकसभा चुनाव पर भी विधायकों के परफॉर्मेंस पर सभी की नजर थी, लेकिन इस चुनाव में भी मोदी लहर में भाजपा ने उत्तराखंड में क्लीन स्वीप कर दिया था। ऐसे में प्रदेश भाजपा लक्ष्य निर्धारित करते हुए आगामी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए अभी से कमर कसनी शुरू कर दी है।
बहरहाल, 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अभी समय शेष है। विधायकों का जैसा परफॉरमेंस होगा, उसी आधार पर भाजपा कोर कमेटी तय करती है कि दोबारा टिकट पाने के लिए कौन सा चेहरा उपर्युक्त होगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि गुड रिपोर्ट कार्ड बनाने के बहाने भाजपा विधायक किस तरह की कार्यशैली को अपनाते हैं।