चिपको आंदोलन के सिपाही मुरारी लाल
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
आचार्य विनोबा भावे महात्मा गांधी के अनुयायी थे। वह एक धर्मगुरु के साथ-साथ एक समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। वह गांधीजी की तरह ही अहिंसा के पुजारी थे। उन्होंने अहिंसा और समानता के सिद्धांत पर हमेशा पालन किया। उन्होंने अपना जीवन गरीबों और दबे-कुचले वर्ग के लिए लड़ने को समर्पित किया। वह उन लोगों के अधिकारों के लिए खड़े हुए। उनको भूदान आंदोलन के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली। मुरारी लाल का जन्म गोपेश्वर मुख्यालय के निकटस्थ गांव पपड़ियाणा में 10 अक्टूबर 1933 को पिता यशकयी छोटियालाल, माता सदरी देवी के घर में हुआ था। वे अपने पीछे पुत्र नरेंद्र भारती, बिहारीलाल, पुत्री गौरादेवी को छोड़ गए। उन्होंने 1970 की बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में पौधरोपण करवाया, जनपद चमोली में मद्यनिषेधका प्रचार प्रसार का कार्य किया। 1975-76 में भूमि आवंटन, भूमिहीनों को पट्टा दिलवाने 1995 से 99 तक ग्राम्य विकास अभिकरण चमोली में मनोन्नित सदस्य रहे।
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वर्ष 1975 में पपड़ियाणा गांव में श्रमदान से विद्यालय का निर्माण करवाया, अपने गांव पपड़ियांना में महिलाओं के सहयोग से बांज के पेड़ों का सुंदर जंगल विकसित किया। 1970-71 के भू आंदोलन में बढ़चढ़ कर प्रतिभाग किया। आप ने जंगल जमीन ही नहीं नशा मुक्त समाज निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अब वे हमारे बीच नहीं रहे लेकिन आप के किए गए कार्य समाज के मन पटल पर अस्मरणीय बने रहेंगे। प्रसिद्ध पर्यावरणविद सर्वोदयी नेता, चिपको आंदोलन में अग्रणीय भूमिका अदा करने वाले समाज के स्तंभ, वंचित शोषित पीड़ित की निरंतर सेवा करने वाले समाज सेवी मुरारीलाल अब हमारे बीच नहीं रहे। शुक्रवार की तड़के ऋषिकेश एम्स में उनका निधन हो गया। चिपको स्वर्णजयंती समारोह मंडल और चिपको आंदोलन की मातृ संस्था दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल ने चिपको आंदोलन के 50 वर्ष पूरा होने पर कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें मंडल घाटी के गांव गांव से आये लोगों ने शिरकरत की।
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इस दौरान 24 अप्रैल 1973 को चिपको की पहले एक्शन मंडल घाटी मे चले चिपको आंदोलन मे सक्रिय भूमिका निभाने वाले आंदोलनकारियों दयाल सिंह , ज्ञानसिंह तथा मुरारीलाल को सम्मानित भी किया गया। उन्हें अपने गांव में वृक्षविहीन बंजर भूमि को हरा-भरा बनाने और गांव के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और उपयोग के अभिनव माडल तैयार करने के लिए पूरे देश में जाना जाता है। उनके कार्यों के लिए उत्तराखंड
सरकार एवं देश के नामी गिरामी संगठनों ने उन्हें सम्मानित किया था । 1970 में भूदान आंदोलन में भी भाग लिया वे एक अच्छे वक्ता के साथ एक अच्छे कवि भी थे चिपको के हर गीत उनको याद थे उनके जीवन में कहीं महत्वपूर्ण घटनाएं घटी किंतु समाज परिवर्तन का काम नहीं छोड़ा मुरारी लाल जी को वर्ष 2009-10 में जनपद चमोली से इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार के लिए भी प्रस्ताव भेजा गया किंतु यह पुरस्कार उन्हें नहीं मिल पाया इसके अलावा उन्हें गौरा देवी पर्यावरण पुरस्कार उर्गम घाटी की तरफ से दिया गया और देश-विदेश में भी मुरारी लाल का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।
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सर्वोदय नेता मुरारी लाल की निधन पर कई समाजसेवी संगठनों ने दुख व्यक्त किया। ईश्वर से पुण्यात्मा को श्रीचरणों में स्थान एवं शोक संतप्त परिजनों व प्रशंसकों को यह असीम कष्ट सहन करने की शक्ति प्रदान करने हेतु प्रार्थना करता हूं। इसकी वजह काफी हद तक नई वन नीतियां भी हैं। इसके लिए सरकार और राजनेताओं को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )