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जानिए, डीएम आशीष चौहान के ट्रांसफर के बाद उत्तरकाशी जनपदवासियों के चेहरे पर क्यों छाई मायूसी!

admin
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… और उत्तरकाशी वासियों को हमेशा याद आते रहेंगे डीएम आशीष चौहान

नीरज उत्तराखंडी

उत्तरकाशी जनपद में काफी लंबे समय तक टिककर जनहित के मुद्दों को लेकर एक डीएम के रूप में अनोखी छाप छोडऩे वाले आईएएस डा आशीष चौहान का तबादला अब देहरादून हो गया है। वे यूकाडा में अपर सचिव होंगे। उनकी जगह उधम सिंह नगर में सीडीओ रहे मयूर दीक्षित अब उत्तरकाशी के जिला अधिकारी होंगे। अपने कार्यकाल में आशीष चौहान ने जिस लक्ष्य और प्राथमिकता के साथ उत्तरकाशी जैसे सीमांत और दुरूह जनपद की समस्याओं को लेकर प्रयास किए, इसके लिए वह हमेशा उत्तरकाशी जनपदवासियों के दिलों में राज करते रहेंगे। यही कारण था कि ट्रांसफर के वक्त जनपदवासियों के चेहरे पर मायूसी थी और वे नहीं चाहते थे कि डीएम आशीष चौहान जैसे कर्मवीर उनके जिले से अन्यत्र जाएं।
बताते चलें कि वर्ष 2011 बैच के आईएएस डा. आशीष चौहान को उत्तरकाशी के 21वें जिलाधिकारी के रूप में अक्टूबर 2017 में तैनाती मिली थी। जनपद में आते ही उत्तरकाशी की भौगोलिक विषम परिस्थितियों का आकलन कर उन्होंने संकल्प ले लिया था कि वह यहां की जटिल समस्याओं को दूर करने का हरसंभव प्रयास करेंगे और इसमें वह सफल भी रहे।
डाक्टर आशीष चौहान के साथ जिले के सीमांत गांवों चाहे सर बडियार हो या ओसला पवाणी गंगाड ढाटमीर लिवाडी फिताडी में उनके क्षेत्र भ्रमण और बहुदेशीय शिविर के दौरान साथ जाने रहने और संवाद करने का मुझे भी अवसर मिला। वे ऐसे जिलाधिकारी रहे हैं, जिन्होंने सुविधाजनक स्थानों में न रहकर गांवों के सीमांत वाशिदों से सीधा संवाद स्थापित कर उनके जीवन की मुश्किलों को करीब से जानने समझने का धरातलीय प्रयास किया और सीमांत गांवों में शिविर लगाकर जनता की समस्याओं से रूबरू हुए और यथासंभव समस्याओं का समाधान भी किया।
आशीष चौहान एक संवेदनशील अधिकारी हैं। उन्होंने कई गरीब और असहाय बीमार बच्चों और मरीजों का इलाज भी कराया। प्रोटोकॉल का उल्लंघन कर राह चलते बुजुर्ग को अपनी गाड़ी में बैठाकर गंतव्य तक छोडऩा जैसी घटनाओं के हम प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं। आपदा के दौरान घटनास्थल यथा संभव पहुंचना और मय संस्थान फोर्स डटे रहना उनकी लोकप्रिय कार्यप्रणाली रही है।
पहाड़ का मूल निवासी न होने पर भी पहाड़ के वाशिदों के प्रति उनकी संजीदगी और उनकी पीड़ा को करीब से जानने समझने की उनकी ललक को हमेशा याद किया जायेगा। पहाड़ की चढ़ाई चढऩे में इतने माहिर कि ठेठ पहाड़ी भी उनकी चाल के आगे घुटने टेक दें।
हमें याद है कि जब हम तालुका से ओसला के लिए चले तो डाक्टर आशीष चौहान ने 14 किमी के ट्रेक रूट को मात्र तीन घंटे में तय किया, जबकि हमें चार घंटे लगे। इस दौरान जिले के कई ऐसे अन्य अधिकारियों को हमने ढांढस बंधा बंधा कर बड़ी मुश्किल से ओसला पहुंचाया। यही हाल फिताड़ी से लिवाड़ी गांव के पैदल मार्ग पर भी हुआ।

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बहरहाल, अधिकारी तो आयेंगे जायेंगे, लेकिन देश की आजादी के बाद सीमांत गांवों के निवासियों की सुध लेकर उनकी समस्याओं के समाधान के लिए उनके बीच जाकर शिविर लगाने और जिले में आराम फरमाने वाले अधिकारियों को उनके कर्तव्यों का भान करने तथा पहाड़ की चढ़ाई नपवाकर जनता के बीच जाने और काम करने की कार्य संस्कृति के लिए तथा आपदा के दौरान घटना स्थल यथासंभव पहुंचना और सहयता पहुंचाना और डटे रहना डाक्टर आशीष चौहान को हमेशा याद किया जाता रहेगा।
यही कारण है कि कुछ अधिकारी अपने कार्य व्यवहार और कार्यशैली से जनता के दिलों में हमेशा राज करते हैं। यूं ही किसी अधिकारी के ट्रांसफर पर जनपदवासियों के चेहरे पर मायूसी नहीं देखी जा सकती है। डाक्टर आशीष चौहान भी उन्हीं अधिकारियों में से एक है। उम्मीद है वह अपनी ऐसी ही कार्यशैली आगे भी बरकरार रखेंगे और अपने नए तैनाती स्थल पर भी लगातार इसी तरह सक्रिय रहकर प्रदेश के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होंगे।

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