असम सरकार के दो दिन में दो बड़े फैसले, शादी-ब्याह में काजियों का रोल किया खत्म, जुम्मा पर भी नमाज के लिए ब्रेक पर लगाई रोक
(असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के दो दिन के अंदर दिए गए दो बड़े फैसलों को लेकर देश भर में चर्चा में है। पहला- मुस्लिम बिल विधानसभा में पारित किया। दूसरा- असम विधानसभा में हर शुक्रवार को जुमे को लेकर मिलने वाला दो घंटे का ब्रेक भी खत्म किया। 29 अगस्त को असम विधानसभा ने ‘असम मुस्लिम मैरिज बिल’ पारित कर दिया। ये कानून बनते ही असम में मुस्लिमों को मौलवी के पास शादी का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी नहीं होगा। साथ ही नाबालिग से शादी पर 6 महीने की जेल भी हो सकती है। इसी के साथ राज्य में मुस्लिम शादियों पर 9 दशक पुराना कानून हट गया। वहीं इस कानून पर नाराजगी खत्म भी नहीं हुई थी कि असम सरकार ने शुक्रवार, 30 अगस्त को एक और फैसला सुनाते हुए जुम्मा की नमाज के लिए ब्रेक पर रोक लगा दी। खुद सीएम ने एक्स पर इसकी जानकारी दी । असम सरकार के इन दोनों फैसलों पर मुस्लिम समुदाय के साथ विपक्ष भी विरोध करने में लगा हुआ है। )
मुख्यधारा डेस्क
पूर्वोत्तर के राज्य असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के दो दिन के अंदर दिए गए दो बड़े फैसलों को लेकर देश भर में चर्चा में है। असम सरकार के इन दोनों फैसलों पर मुस्लिम समुदाय के साथ विपक्ष भी विरोध करने में लगा हुआ है।
असम सरकार ने 29 और 30 अगस्त, साल 2024 को दो फैसलों पर मुहर लगाई। पहला- मुस्लिम बिल विधानसभा में पारित किया। दूसरा- असम विधानसभा में हर शुक्रवार को जुमे को लेकर मिलने वाला दो घंटे का ब्रेक भी खत्म किया। इसके बाद तमाम मुस्लिम संगठनों ने इन फैसलों पर कड़ी नाराजगी जताते हुए विरोध किया है। इस बिल के मुताबिक दो मुस्लिमों के बीच होने वाली शादी यानी “निकाह” को मुस्लिम पर्सनल लॉ और इस्लामी रीति-रिवाजों के अनुसार पति-पत्नी माना जाएगा। आइए जानते हैं इन दोनों फसलों के बारे में। गुरुवार, 29 अगस्त को असम विधानसभा ने ‘असम मुस्लिम मैरिज बिल’ पारित कर दिया। ये कानून बनते ही असम में मुस्लिमों को मौलवी के पास शादी का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी नहीं होगा। साथ ही नाबालिग से शादी पर 6 महीने की जेल भी हो सकती है। इसी के साथ राज्य में मुस्लिम शादियों पर 9 दशक पुराना कानून हट गया। इसकी जगह आए नए लॉ के साथ ही कई नियमों में बदलाव होगा। खासकर इससे चाइल्ड मैरिज पर रोक लग जाएगी। साथ ही शादी-ब्याह में काजियों का रोल भी खत्म हो जाएगा।
विपक्ष का कहना है कि ये मुस्लिमों के लिए भेदभावपूर्ण है। वहीं मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने विरोधियों का जवाब देते हुए कहा कि हमारा मकसद बहुविवाह पर रोक लगाना और नए लॉ का इरादा काजी की भूमिका को खत्म करना भी था। पिछले साल असम में चार हजार से ज्यादा लोगों पर कानूनी कार्रवाई हुई, जिन्होंने माइनर्स से शादी की थी। ये शादियां काजियों की देखरेख में हुई थीं। उन्होंने तर्क दिया कि स्टेट शादियों को रजिस्टर कराने के लिए काजियों पर भरोसा नहीं कर सकता। वे निजी संस्थाएं हैं, जिनकी अपनी सोच है। पुराने कानून को हटाते हुए असम सरकार ने तर्क दिया कि 1935 एक्ट की वजह से माइनर्स की शादियों को भी मान्यता मिल रही थी। सीएम सरमा ने कहा कि वह ‘मिया’ मुसलमानों को राज्य पर “कब्जा” नहीं करने देंगे। असम की 3.12 करोड़ आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 34% है।
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बता दें कि पुराने लॉ का सेक्शन 8 इसकी इजाजत देता था। अब उम्मीद की जा रही है कि बाल विवाह काफी हद तक कम हो सकेगा। अब शादी के रजिस्ट्रेशन में काजी का कोई रोल नहीं होगा। सरकार के मैरिज एंड डिवोर्स रजिस्ट्रार को इसका अधिकार रहेगा। शादी पंजीकृत होने के लिए सात शर्तें पूरी होनी चाहिए। इन शर्तों में अहम हैं- शादी से पहले महिला की उम्र 18 और पुरुष की 21 साल होनी चाहिए। शादी में दोनों पक्षों की रजामंदी हो, और कम से कम एक पक्ष शादी और तलाक रजिस्ट्रेशन वाले जिले का निवासी हो। शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए 30 दिन पहले नोटिस देना होगा, साथ ही सारे दस्तावेज भी साथ लगे हों। शादी पर आपत्ति जताने के लिए 30 दिन का पीरियड होगा, जिसमें ये चेक किया जाएगा कि क्या शादी सारी शर्तें पूरी कर रही है। अगर रजिस्ट्रार इससे मना कर दे तो डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार और रजिस्ट्रार जनरल ऑफ मैरिज के पास अपील की जा सकती है। पंजीकरण करने वाला अधिकारी जांच करता है कि दोनों पार्टियों में कोई माइनर तो नहीं। ऐसा पाए जाने कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अगर अधिकारी किसी शर्त को पूरा न करने पर भी शादी के रजिस्ट्रेशन को मंजूरी दे तो उस पर सालभर की कैद और 50 हजार का जुर्माना हो सकता है। विपक्षी दलों ने इस फैसले की निंदा करते हुए इसे मुस्लिमों के साथ भेदभाव वाला और चुनावी साल में मतदाताओं के ध्रुवीकरण वाला बताया।
कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य से मुलाकात की और सरमा को उनके कथित भड़काऊ बयानों के कारण सीएम पद से हटाने की मांग की, जो राज्य में शांति और सद्भाव को बिगाड़ सकते हैं। वहीं इस कानून पर नाराजगी खत्म भी नहीं हुई थी कि असम सरकार ने एक और फैसला सुनाते हुए जुम्मा की नमाज के लिए ब्रेक पर रोक लगा दी। खुद सीएम ने एक्स पर इसकी जानकारी दी। हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने जुमे की नमाज के लिए मिलने वाले दो घंटे के ब्रेक को खत्म कर दिया है। असम विधानसभा में हर शुक्रवार दोपहर 12 से 2 बजे तक मुस्लिम विधायकों को नमाज के लिए दो घंटे का ब्रेक मिलता रहा, जो अंग्रेजी राज के समय से चला आ रहा है। अब इस पर रोक लग चुकी है ।
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