मामचन्द शाह
द्वारीखाल। यूं तो यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र राज्य गठन से अब तक भाजपा का मजबूत गढ़(किला) माना जाता है, लेकिन आपको ये खबर पढ़कर और वीडियो देखने के बाद हैरानी होगी कि ब्लॉक मुख्यालय से महज दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित च्वरा ग्रामसभा के लोग इस कदर बीमार व्यक्ति को लेकर खड़ी चढ़ाई पर जाने को मजबूर हैं। यही नहीं शादी-समारोह हों या फिर गर्भवती महिलाओं की मजबूरी, हर किसी को इन्हीं खड़ी चढ़ाई से गुजरकर सड़क तक पहुंचना पड़ता है।
अब जो वीडियो देख रहे हैं, ये द्वारीखाल ब्लॉक के च्वरा ग्रामसभा, पोस्ट ऑफिस चैलूसैंण और पट्टी डबरालस्यूं के अंतर्गत है। ब्लॉक से महज दस किलोमीटर की दूरी पर बसा है यह गांव। सवाल यह है कि पिछले बीस सालों से इन गांवों की अनदेखी क्यों की गई? सवाल यह भी है कि जब ब्लॉक मुख्यालय से समीपवर्ती गांवों की ही ये दशा है, तो दूरदराज के गांवों की स्थिति महसूस किया जा सकता है।
वीडियो :
बात जब ऐसी विकट और ज्वलंत समस्याओं की हों तो यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र पर भी एक नजर डालनी आवश्यक हो जाती है। पाठकों को बताते चलें कि राज्य गठन के बाद प्रदेश में प्रथम विधानसभा चुनाव में भाजपा की विजय बड़थ्वाल यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनी थी। तब एनडी तिवारी के नेतृत्व में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनी थी।
तत्पश्चात 2007 के द्वितीय विधानसभा चुनाव में भी विजय बड़थ्वाल ही भारतीय जनता पार्टी की ओर से विधायक बनकर विधानसभा पहुंची और इस बार प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। जिसमें भुवनचंद्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल और फिर भुवनचंद्र खंडूड़ी क्रमश: प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान रहे।
इसके बाद वर्ष 2012 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। भाजपा के मजबूत किले की विश्वसनीयता बरकरार रखते हुए क्षेत्रवासियों ने लगातार तीसरी बार विजय बड़थ्वाल को अपना विधायक चुनाव और विधानसभा में इसलिए पहुंचाया, ताकि इस विधानसभा क्षेत्र की समस्याएं सुलझायी जा सके।
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि ऐसी समस्याओं के बावजूद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में यमकेश्वर विधानसभा के क्षेत्रवासियों ने भारतीय जनता पार्टी पर ही विश्वास जताया। हालांकि इस बार विजय बड़थ्वाल को टिकट नहीं मिल पाया और उनकी जगह जनरल भुवनचंद्र खंडूड़ी की पुत्री ऋतु खंडूड़ी क्षेत्र से विधायक बनकर पहली बार विधानसभा पहुंची।
वर्तमान सरकार का साढे तीन साल का कार्यकाल पूर्ण हो चुका है और अब मात्र डेढ़ वर्ष का कार्यकाल ही इस सरकार का शेष रह गया है। इसमें भी अगर यूं कहें कि अगले वर्ष इसी माह तक सरकार एक्टिव मोड में रहेगी और फिर चुनावी मोड में चली जाएगी, तो गलत नहीं होगा। प्रदेश में वर्ष 2022 के शुभारंभ में विधानसभा चुनाव होने हैं।
अब यह तो मुख्यधारा के जागरूक पाठकों पर ही छोड़ देना चाहिए कि यदि 20 सालों से एक ही दल के विधायकों को विधानसभा तक पहुंचने का मौका दिया गया तो इसके पीछे भोले-भाले ग्रामीणों का भोलापन ही रहा होगा, ताकि उनकी उम्मीदें रही होंगी कि उनकी समस्याएं इस बार तो जरूर हल होंगी। अब यदि ऐसी समस्याओं का निराकरण हुआ होता तो कंधे पर लादकर एक बुजुर्ग़ बीमार महिला को अस्पताल के लिए पहुंचाने वाला वीडियो शायद आज आप नहीं देख रहे होते!
उपरोक्त को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्षेत्रवासियों की किस तरह से वर्षों से अनदेखी होती रही। यह तो मात्र एक उदाहरण है, ऐसे न जाने कितने और ऐसे गांव होंगे, जहां सड़क, बिजली, पानी व स्वास्थ्य समस्याओं की भारी परेशानी हैं।
इस संबंध में जब ब्लॉक प्रमुख महेंद्र राणा से पूछा गया कि आपके ब्लॉक के निकटवर्ती गांवों में इस तरह की समस्याएं हैं तो उन्होंने इस पर हैरानी जताते हुए दु:ख जताया। साथ ही पिछले बीस वर्षों से ऐसी समस्याओं के निराकरण न होने पर सवाल उठाए। श्री राणा का कहना था कि उनका प्रयास है कि उनके क्षेत्र की मूलभूत समस्याओं का समाधान हो। उनके ब्लॉक प्रमुख बनने के बाद से ही कोरोनाकाल शुरू हो गया, लेकिन फिर भी उनसे जितना संभव हो सका, वे क्षेत्र हित के लिए लगातार काम कर रहे हैं। उनका कहना था कि उक्त ग्रामसभा के विकास में जो भी बाधाएं आ रही होंगी, वह उसे दूर करने का प्रयास करेंगे।