…इस बस में हो रहा टिकट का खेल (bus ticket game)!
त्यूनी, मोरी/नीरज उत्तराखंडी
बिना टिकट यात्रा करना, जहां बना नियति दस्तूर!
सरकार को राजस्व का चूना, लगाने को परिचालक आतुर!!
सरकारी बसों में बिना टिकट यात्रा करना कानूनन अपराध है। बस की खिड़की से ऊपरी दीवार पर कलात्मक तरीके से ‘बिना टिकट यात्रा करना कानूनन अपराध है और पकड़े जाने पर यात्री से 10 गुना अधिक किराया वसूल किया जायेगा या 6 माह की सजा भी हो सकती है’ यह चेतावनी संदेश स्पष्ट अक्षरों में लिखे होते हैं, लेकिन यह चेतावनी संदेश महज औपचारिकता बन रह जाते हैं जब बस परिचालक ऊपरी कमाई करने के लोभ में यात्रियों द्वारा मांगे जाने के बाद भी उन्हें टिकट नहीं दिया जाता है और वे बिना टिकट के जोखिम पूर्ण यात्रा करने को मजबूर होकर रह जाते हैं।
17 मई बुधवार को त्यूनी से मोरी नैटवाड़ बस संख्या HP-03 B 6225 समय 12 दोपहर को त्यूनी से रोहडू-नैटवाड़ बस में सफर करने का अवसर मिला। बस में काफी भीड़ थी, सो आधा सफर खड़े होकर तय करना पड़।
परिचालक टिकट बनाने मेरे समीप आये तो मैंने उन्हें 100 रुपये का नोट दिया। कंडक्टर ने पूछा कहां जाना है? मैंने कहा, मोरी। उसने कहा, दस रुपये खुले हैं। मैंने दस रुपये का एक और नोट थमा दिया। कंडक्टर ने टिकट बनाये बगैर 50 रुपए मुझे वापस किए। इस मैंने टिकट मांगा तो कंडक्टर बोला- टिकट का क्या करोगे? मैंने कहा, यात्रा भत्ता हेतु यात्रा प्रमाण पत्र, यानि टिकट चाहिए।
कंडक्टर- आप को टिकट मिल जायेगा। उन्होंने सबसे पीछे सीट पर बैठे एक बुजुर्ग यात्री की ओर संकेत करते हुए कहा- आप इससे मोरी का टिकट ले लेना। यानि कंडक्टर बड़ी चतुराई से मोरी के एक टिकट पर दो लोगों की यात्रा करवाकर सरकारी खजाने पर चूना लगा गए। हालांकि इस संवाददाता ने यात्रा के दौरान अपनी पहचान छुपा कर रखी और बस में होने वाली राजस्व के नुकसान की अवैधानिक गतिविधियों को करीब से देखा और अब उसे अपनी कलम के माध्यम से उजागर भी किया।
बताते चलें कि त्यूनी से मोरी तक का किराया 68 रुपये प्रति सवारी है, लेकिन कंडक्टर की मनमानी और कुछ सवारियों की सहमति के चलते त्यूनी से मोरी जाने वाली सवारियों को टिकट न देकर 50 रुपये लिए जाते हैं। यात्री भी 18 रुपये बचाने के लालच में टिकट न लेकर जोखिम पूर्ण यात्रा कर खुद को धन्य समझते हैं। वहीं कंडक्टर 50 रुपये अपनी जेब में रखकर हिमाचल प्रदेश सरकार को राजस्व का चूना लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहते।
लोक सवारी जैसे मैन्द्रथ, दाडमीगाड़, हनोल, चातरा, खूनीगाड़, मोरा, सांद्रा की सवारी तो टिकट की उम्मीद ही छोड़ देनी चाहिए।
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सूत्र तो यह भी बताते हैं कि रोहडू से नैटवाड़ जाने वाली बस मोरी तक ही जाती है। हालांकि यह अलग बात है कि वह कागजों में नैटवाड़ तक दौड़ती है। मोरी से नैटवाड़ 11 किमी. की दूरी में खर्च होने वाले तेल को मोरी में बेच दिए जाने की चर्चाएं भी हैं।
बताते हैं कि मोरी में बस से तेल बेचने का खेल काफी लम्बे चल रहा है। हालांकि मामले की सच्चाई जानने के लिए हिमाचल परिवहन निगम के अधिकारियों को संज्ञान लेकर तहकीकात करनी होगी। ताकि सरकार के राजस्व का नुकसान करने वाले जिम्मेदार चालक-परिचालकों पर कार्रवाई की जा सके।
बस कंडक्टर के इस छोटे से लालच के कारण जहां आपकी यात्रा अधिक जोखिमपूर्ण हो सकती है, वहीं दुर्घटना होने की स्थिति में यात्रियों को कई बार अपने जीवन से भी हाथ धोना पड़ सकता है। ऐसे में बस में सफर के दौरान यात्रा का प्रमाण ‘टिकट’ जरूर लें।
बहरहाल, उपरोक्त वाकये को पढ़कर उम्मीद की जानी चाहिए कि परिचालक व सवारी सबक लेकर भविष्य में ऐसा जोखिम व अपराध नहीं करेंगे।