बेशकीमती कीड़ा जड़ी (wormwood) दोहन नहीं कर पाए
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उच्च हिमालय वाले इलाकों में एक बेसकीमती जड़ी मिलती है। मौजूदा समय में इस जड़ी की कीमत सोने के भाव जैसा है। इस जड़ी को यारसागंबू यानि कीड़ा जड़ी कहते हैं। यौन शक्ति बढ़ाने में यह जड़ी काफी असरदार है। यही वजह है कि इसे हिमालयी वियाग्रा के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन पिछले कई सालों से इस जड़ी का अत्यधिक दोहन हो रहा है। इसको लेने के लिए बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण बुग्यालों व हिमालय की तलहटी में पहुंच जाते हैं, हालांकि ग्रामीणों को वन विभाग की ओर से इसे निकालने की अनुमति दी जाती है, लोग भी कीड़ा जड़ी की खोज में उच्च हिमालय क्षेत्रों में पहुंच रहे हैँ। बकायदा बुग्यालों में टेंट कॉलोनी बनाई जा रही है। हिमालय क्षेत्र में बढ़ता मानवीय हस्तक्षेप दैवी आपदाओं का जन्म दे रहा है। यही वजह है कि हिमस्खलन, अतिवृष्टि और भूस्खलन की घटनाओं में इजाफा हो रहा है।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद बताते हैं किबुग्यालों में लोग नंगे पांव जाते थे। हिमालय क्षेत्र इतना सेंस्टिव है कि यहां ऊंची आवाज में भी बात नहीं की
जाती थी, लेकिन आज कीड़ा जड़ी के दोहन के लिए उच्च हिमालय क्षेत्र में लोगों की आवाजाही बढ़ गई है। यह पर्यावरण के लिए घातक है उच्च हिमालयी क्षेत्रों में लगातार हो रही बर्फबारी के चलते कीड़ाजड़ी दोहन के लिए गए ग्रामीण काफी परेशान हैं। अब बरसात और आपदा काल होने से उच्च हिमालयी क्षेत्रों के बुग्यालों में गए ग्रामीणों को मायूस हो लौटना पड़ेगा। ग्रामीण कीड़ाजड़ी दोहन के लिए नाग्निधुरा के साथ ही अन्य बुग्यालों में जाते हैं। मई प्रथम सप्ताह में ये लोग खाद्यान्न सामग्री उचित स्थान पर पहुंचाते हैं। दूसरे हफ्ते में अधिकांश लोग मय परिवार कीड़ाजड़ी दोहन के लिए जाते हैं।इस बार उच्च हिमालयी क्षेत्रों में लगातार बारिश और बर्फबारी के चलते ग्रामीण कीड़ाजड़ी दोहन नहीं कर पाए हैं। अब बरसात का सीजन शुरू हो गया है ऐसे में इनको बैरंग लौटने को मजबूर होना पड़ेगा। इससे इनकी आजीविका भी प्रभावित होने की आशंका है। पारंपरिक चिकित्स्क कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल किडनी, नपुंसकता जैसी बिमारियों का इलाज करने के लिए करते हैं।
15 वीं शताब्दी के तिब्बती औषधीय ग्रन्थ ‘एन ओशन ऑफ एफ्रोडिसियाकल क्वालिटीज’ में भी कीड़ाजड़ी का जिक्र मिलता है। कीड़ा जड़ी से 21 तरह के रोग ठीक किए जाते हैं। यह शरीर की इम्युनिटी और एनर्जी लेवल को बढ़ाता है। सूजन कम करता है, कीड़ा जड़ी में प्राकृतिक एंटी कैंसर एजेंट मिलता है। यह दिल से जुडी बिमारियों को ठीक करता है और सेक्स ड्राइव बढ़ाता है। साथ ही इसके सेवन से मेमोरी पॉवर बढ़ती है और यह कोलेस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल करता है। इस फंगस में प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं। ये तत्काल रूप में ताकत देते हैं इसलिए एथलीट खिलाड़ियों द्वारा विशेष तौर पर इसका सेवन किया जाता है। यह एक तरह का प्राकृतिक स्टेरॉयड है, जो डोपिंग टेस्ट में भी पकड़ में नहीं आता है। चीन और तिब्बत में परंपरागत चिकित्सा पद्धति में इसका उपयोग किया जाता है। फेफड़ों और किडनी के इलाज में इसे जीवन रक्षक दवा माना गया है। यौन उत्तेजना बढ़ाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। सांस और गुर्दे की बीमारी में भी इसका उपयोग किया जाता है और शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।
पिछले 20 वर्षों में उक्त गांवों के ग्रामीणों का आर्थिक स्तर कीड़ाजड़ी के चलते काफी सुदृढ़ हुआ है। स्थानीय स्तर पर पिछले वर्ष ठेकेदारों ने लगभग 10 लाख रुपये प्रति किलो के हिसाब से कीड़ाजड़ी ग्रामीणों से खरीदी थी। इस वर्ष क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता है क्योंकि अब तक कीड़ाजड़ी का दोहन नहीं हो पाया है। कीड़ा जड़ी दुनिया के सबसे महंगे फंगस में से एक है। यह कवक इतना दुर्लभ है कि अंतरराष्ट्रीय संघ आईयूसीएन ने इसे संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में शामिल किया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीड़ा जड़ी की कीमत लगभग 20लाख रुपये प्रति किलोग्राम है।कीड़ा जड़ी संग्रहण, विदोहन और रॉयल्टी के संबंध में वर्ष 2018 में एक जीओ जारी किया गया था, लेकिन देखने में आ रहा है कि स्थानीय संग्रहणकर्ताओं को इसका उतना लाभ नहीं मिल पा रहा है, जितना दूसरे लोग कमा रहे हैं।
हमारा उद्देश्य है कि माफिया और दूसरे खरीदारों के बजाय इसका लाभ स्थानीय लोगों को मिले। इसके लिए कई प्रक्रियाओं में बदलाव के निर्देश दिए गए हैं। सेटेलाइट से की जाएगी कीड़ा जड़ी की रिसोर्स मैपिंग, सूचीबद्ध होगा क्षेत्र, शासनादेश में होगा संशोधन उत्तराखंड सरकार की ओर से वर्ष 2018 में विस्तृत गाइडलाइन जारी की गई थी। इसमें कीड़ा जड़ी की तस्करी रोकने के साथ स्थानीय लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने की कार्ययोजना तैयार की गई थी। इसमें कीड़ा जड़ी के संग्रह, विदोहन और रॉयल्टी को लेकर नियम बनाए गए थे। इसमें कीड़ा जड़ी की तस्करी रोकने के साथ स्थानीय लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने की कार्ययोजना तैयार की गई थी। इसमें कीड़ा जड़ी के संग्रह, विदोहन और रॉयल्टी को लेकर नियम बनाए गए थे। बावजूद इसके अब तक कीड़ा जड़ी की तस्करी पर लगाम नहीं लग पाई है। अन्य एशियाई देशों जैसे नेपाल और भूटान में भी कीड़ा जड़ी है। जबकि भूटान सरकार ने कीड़ा-जड़ी की बिक्री को वैध कर दिया था, भारत सरकार ने अभी तक ऐसा नहीं किया है इसमें कोई संदेह नहीं है कि कीड़ा-जड़ी की बढ़ती मांग का मुख्य कारण सूचीबद्ध लाभ हैं। कीड़ा जड़ी का पौधा प्रकृति का एक ऐसा उपहार है जो मानव जाति को अत्यधिक लाभ पहुंचाता है, लेकिन दुर्भाग्य से, पर्यावरण में परिवर्तन और पारिस्थितिकी में असंतुलन के कारण खेती कम हो रही है। स्थानीय लोग जो इस मशरूम की बिक्री से लाभान्वित होते थे, वे अब उसी स्तर की आय अर्जित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं जो उन्हें प्राप्त होती थी।
(लेखक दून विश्वविद्यालयकार्यरत हैं)