हिमालय में कभी भी आ सकता है विनाशकारी भूकंप (Devastating earthquake)
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड को भूकंप के प्रति संवेदनशीलता के लिहाज से जोन चार और पांच में रखा गया है. हिमालय क्षेत्र में एक बड़ा भूकंप आने की प्रबल संभावना के बावजूद इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता भूकम्प दुनिया के तमाम देशों – जापान, चीन, फिलिपीन्स, अमेरिका, मेक्सिको, न्यूजीलैंड आदि में आते रहते हैं। भारत में भी खासकर हिमालय पट्टी में भूकम्प आते हैं। भारतीय पट्टिका का उत्तरी तथा पूर्वोत्तर की ओर प्रति वर्ष पाँच सेन्टीमीटर की दर से बढना और उसका यूरेशियन पट्टिका से टकराव होने के कारण हिमालय क्षेत्र भूकम्प सम्भावित क्षेत्र बन चुका है। देश का 60 प्रतिशत भूभाग ऐसा है, जहाँ भूकम्प के तेज या हल्के झटके आ सकते हैं।
भूकम्प आने का मुख्य कारण पृथ्वी की प्लेटों का खिसकना है। पृथ्वी छह-सात बड़ी प्लेटों में विभक्त है और ये सारी प्लेट गतिशील हैं। जहाँ-जहाँ प्लेट मिलती हैं वे आपस में वे रगड़ खाती हैं या फिर अलग हो जाती हैं। इन प्लेटों की आन्तरिक संरचना में परिवर्तन होता रहता है। इस परिवर्तन को एक स्थायी आकार देने के लिए चट्टानें खिसकती हैं, जिससे भूकम्प आते हैं। इसके अतिरिक्त पृथ्वी के अन्दर लावा का सम्पर्क जब पानी से होता है तो भाप बनती है। चूँकि भाप ज्यादा जगह घेरती है इसलिए वह बाहर आने की कोशिश करती है। इस वजह से भी कम्पन होता है। लेकिन यह स्थिति अधिकतर ज्वालामुखी वाले क्षेत्रों में होती है। विनाशकारी भूकम्प इतिहास में काली तारीखों के रूप में दर्ज हैं। वैसे तो हर वर्ष दुनिया भर में करीब 50,000 छोटे बड़े भूकम्प आते हैं लेकिन उनमें से 100 विनाशकारी होते हैं। कम से कम एक भूकम्प भयानक विनाश करता है। मानव जीवन के इतिहास में सबसे अधिक तबाही मचाने वाला भूकंप 23 जनवरी 1556 को चीन में आया था,जिसमें लगभग 8 लाख से भी अधिक लोग मारे गये थे।
1 नवम्बर 1755 को लिस्बन, पुर्तगाल में आया भयंकर भूकम्प संभवत: पहला ऐसा भूकम्प था, जिसके विस्तृत अध्ययन के रिकार्ड आज भी
सुरक्षित हैं। यह रिकार्ड तत्कालीन पादरियों के प्रेक्षणों पर आधारित थे तथा इनमें पहली बार भूकम्प तथा इसके प्रभावों की सुव्यवस्थित जांच पड़ताल की गई थी।इस भूकम्प द्वारा उत्पन्न झटके लगभग सारे विश्व में अनुभव किये गये थे। इस सदी के सर्वाधिक तीव्रता वाले भूकम्पों में से कुछ हैं- इटली में 1908, चीन में 1920, 1927, 1932, 1976, जापान में 1923, भारत में 1935, तुर्की में 1939, सोवियत संघ में 1948 व 1988, पेरू में 1970 तथा मैक्सिको में 1985 में आये भूकम्प इन सब भूकम्पों की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7.3 या उससे अधिक थी।
भारत में भारी तबाही मचाने वाले भूकम्पों में 1737 में कलकत्ता, 1897 और 1950 में आसाम, 1905 में जम्मू और कश्मीर 1988 में बिहार और 1991 में उत्तरकाशी में आये भूकम्प हैं। इनमें से सर्वाधिक भयंकर भूकम्प 8.7 की तीव्रता वाला 1897 में आसाम में आया था। भूकम्प ने भारतीय हिमालय में बसे लोगों को भी डरा दिया है। डरना भी स्वाभाविक ही है, क्योंकि विश्व की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला हिमालय भी भूगर्वीय हलचलों के कारण भूकम्प की दृष्टि से कोई कम संवेदनशील नहीं है। भूवैज्ञानिकों का यहां तक मानना है कि हिमालय के गर्भ में इतनी भूगर्वीय ऊर्जा जमा है कि अगर वह अचानक एक साथ बाहर निकल गयी तो उसका विनाशकारी प्रभाव कई परमाणु बमों के विस्फोटों से भी अधिक हो सकता है।
यह भी पढें : दिसंबर और जनवरी में पहाड़ों पर बर्फ और बारिश (snow and rain) न होना चिंताजनक !
डराने वाली बात तो यह है कि भूगर्वीय ऊर्जा या साइस्मिक इनर्जी न तो छोटे मोटे भूकम्पों से खाली या कम हो सकती है और ना ही सीमा से अधिक समय तक भूगर्व में जमा रह सकती है। भूगर्वीय चट्ठानों के टकराव और घर्षण से यह ऊर्जा निरन्तर बढ़ती जाती है। चूंकि जापान के लोग भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के साथ जीना सीख चुके हैं, इसलिये वहां बड़े भूकम्प में भी जन और धन की बहुत कम हानि होती है। जबकि भारत में मध्यम परिमाण का भूकम्प भी भारी तबाही मचा देता है। कारण प्रकृति के साथ सामंजस्य और जन जागरूकता की कमी है।भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के भूकम्प के चार्ट पर नजर डालें तो 15 दिसम्बर 2023 से लेकर 1 जनवरी 2024 की 15 दिन की अवधि में भारत में कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक रिक्टर पैमाने पर 1.8 से लेकर 6 परिमाण तक के कुल 74 भूकम्प दर्ज हैं, और इनमें से सर्वाधिक 64 भूकम्प नेपाल और हिमालयी राज्यों में आये हैं।
क्योंकि नेपाल उत्तराखण्ड जैसे हिमालयी राज्यों से जुड़ा है और इसकी साइस्मिक स्थिति इन्हीं राज्यों के समान है, इसलिये हम नेपाल की गिनती हिमालयी राज्यों से कर रहे हैं। हिमालयी राज्यों में भी सर्वाधिक 24भूकम्प जम्मू-कश्मीर और लेह लद्दाख में दर्ज हुये हैं। इनमें भी सर्वाधिक 11 भूकम्पों का केन्द्र किस्तवाड़ रहा है। इनके अलावा उत्तराखण्ड में 6और हिमाचल में 5 भूकम्प दर्ज हुये हैं। इसी तरह पूर्वोत्तर में ईस्ट और वेस्ट गारोहिल्स, मणिपुर, अरुणाचल, मीजोरम और नागालैंड में भूकम्पों की आवृत्ति दर्ज हुयी है। नेपाल में 4 नवम्बर से लेकर 8 नवम्बर 2023 तक 2.8 से लेकर 5.6 परिमाण के 17 भूकम्प दर्ज किये गये। वहां एक ही दिन 4 नवम्बर को 2.8 से लेकर 3.7 परिमाण के 8 भूकम्प दर्ज किये गये। भारत की संपूर्ण हिमालयी बेल्ट 8.0 से अधिक तीव्रता वाले बड़े भूकंपों के लिए अतिसंवेदनशील मानी जाती है। इसका मुख्य कारण भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट की ओर लगभग 50 मिमी प्रति वर्ष की दर से खिसकना है।
यह भी पढें : उत्तरकाशी में मुख्यमंत्री के रोड शो (road show) में सड़कों पर उतरा जनसैलाब
हिमालय क्षेत्र और सिंधु-गंगा के मैदानों के अलावा, यहां तक कि प्रायद्वीपीय भारत में भी विनाशकारी भूकंपों का खतरा है। देश के वर्तमान भूकंपीय जोनेशन मैप के अनुसार भारतीय भूभाग का 59 प्रतिशत हिस्सा सामान्य से बहुत बड़े भूकम्पों के खतरे की जद में हैं। भारत में भी
संपूर्ण हिमालय क्षेत्र को रिक्टर पैमाने पर 8.0 अंक की तीव्रता वाले बड़े भूकंपों के प्रति प्रवृति माना गया है। इस क्षेत्र में सन् 1897 शिलांग (तीव्रता 8.7), 1905 में कांगड़ा (तीव्रता 8.0), 1934 बिहार-नेपाल (तीव्रता 8.3) और 1950 असम-तिब्बत (तीव्रता 8.6) के बड़े भूकम्प आ चुके हैं। नेपाल में 25 अप्रैल 2015 का 8.1 परिमाण का अब तक का सबसे भयंकर भूकम्प था जिसके कारण 8,649 लोग मारे गये थे और 2,952 घायल हुये थे।भूकंप में निकलने वाली ऊर्जा मुख्य रूप से पृथ्वी की सतह के नीचे टेक्टोनिक प्लेटों की गति या हलचल से उत्पन्न होती है। यह गतिविधि भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करती है।
तुलना के लिए, परमाणु विस्फोट से निकलने वाली ऊर्जा, जैसे कि परमाणु बम विखंडन या संलयन प्रतिक्रियाओं के माध्यम से परमाणु ऊर्जा की तीव्र रिहाई से प्राप्त होती है। परमाणु विस्फोट भी शक्तिशाली होते हैं, लेकिन उनका ऊर्जा उत्पादन आमतौर पर किसी बड़े भूकंप की तुलना में बहुत कम होता है। अब तक सबसे शक्तिशाली परमाणु बम विस्फोट जार बॉम्बा का था जिससे उत्पन्न अनुमानित ऊर्जा लगभग 50 मेगाटन टीएनटी (समतुल्य ऊर्जा) मानी गयी थी। इसके विपरीत, अब तक दर्ज किए गए सबसे शक्तिशाली भूकंपों में से कुछ ने हजारों परमाणु बमों के बराबर ऊर्जा जारी की है। उदाहरण के लिए 1960 में चिली मेंवाल्डिविया भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 9.5 थी और इससे हजारों परमाणु बमों के बराबर अनुमानित ऊर्जा निकली थी।
यह भी पढें : श्री नृसिंह मंदिर (Nrisimha Temple) जोशीमठ के शीर्ष पर चढ़ाया ध्वज
भूवैज्ञनिकों के अनुसार भूकम्प की 1.0 की तीव्रता में वृद्धि के साथ भूकंप द्वारा जारी ऊर्जा लगभग 31 गुना बढ़ जाती है। जैसे 8.0 तीव्रता का भूकंप 7.0 तीव्रता के भूकंप द्वारा रिलीज ऊर्जा का लगभग 31 गुना बढ़ जाती है। 6.0 तीव्रता के भूकंप की तीव्रता की कोई ऊपरी या निचली सीमा नहीं है। दरअसल, बहुत छोटे भूकंप की तीव्रता एक ऋणात्मक संख्या भी हो सकती है। आमतौर पर 5.0 से अधिक तीव्रता वाले भूकंपों के कारण जमीन में इतनी तेज गति होती है कि संरचनाओं को काफी नुकसान हो सकता है। बहरहाल भारतीय हिमालय क्षेत्र में जिस विनाशकारी भूकम्प की आशंका जताई जा रही है उसकी शक्ति कई परमाणु बमों से अधिक हाने का आशंका व्यक्त की गयी है। भूकम्प जैसी प्राकृतिक घटनाओं को रोका तो नहीं जा सकता मगर प्रकृति के साथ रहना सीख कर बचाव अवश्य किया जा सकता है।
दरअसल आदमी को भूकम्प नहीं बल्कि उसी के द्वारा अपनी सुरक्षा और आश्रय के लिये बनाया गया मकान मारता है। 30 सितंबर 1993 को महाराष्ट्र के लातूर क्षेत्र में 6.2 परिमाण का भूकंप आता है तो उसमें लगभग 10 हजार लोग मारे जाते हैं और 30हजार से अधिक लोगों के घायल होने के साथ ही 1.4 लाख लोग बेघर हो जाते हैं। जबकि 28 मार्च 1999 को चमोली में लातूर से भी बडा 6.8 मैग्नीट्यूट का भूकंप आता है तो उसमें केवल 103 लोगों की जानें जाती हैं और 50 हजार मकान क्षति ग्रस्त होते हैं। इसी तरह 20अक्टूबर 1991 के उत्तरकाशी के 6.6 परिमाण के भूकंप में 786 लोग मारे जाते हैं और 42 हजार मकान क्षतिग्रस्त होते हैं। जबकि 26 जनवरी 2001 को गुजरात के भुज में रिक्टर पैमान पर 7.7 परिमाण का भूकंप आता है तो उसमें कम से कम 20 हजार लोग मारे जाते हैं और 1.67 लाख लोग घायल हो जाते हैं। लातूर और भुज में हुयी तबाही घनी आबादी और विशालकाय इमारतों के कारण हुयी जिनमें भूकम्परोधी व्यवस्था नहीं थी।
इसलिये जरूरी है कि लोगों को सवाधान करने के साथ ही भूकम्प के प्रति जागरूक किया जाय ताकि वे अपना बचाव स्वयं कर सकें। भूकम्प के प्रभाव उसकी तीव्रता पर निर्भर करते हैं। इन विध्वंसकारी प्रभावों में से मुख्य हैं भवनों पर प्रभाव, भूस्खलन, आपूर्ति तथा संचार पर प्रभाव आदि लगभग 90 प्रतिशत मृत्यु तथा कुल सम्पत्ति नाश में आधे से अधिक का कारण भवन संरचनाओं का कमजोर होना है। दोषयुक्त निर्माण भूकम्प के झटकों को सहन नहीं कर पाते हैं। कई घनी बस्तियों में लोग मकानों में प्रायः कमजोर चिनाई का प्रयोग करते हैं, जो भूकम्प क्षेत्रों के लिये घातक है। भूकम्प के दौरान खुले गैस पाइपों, रसोई घर के चूल्हों तथा लैम्पों से आग लगने की भी संभावना प्रबल होती है। गैस, तेल तथा गैसोलीन की पाईप लाइनें फट सकती हैं। भूकम्प के कारण पड़ने वाली दरारें तथा भूस्खलन भी लोगों के लिये भयंकर खतरे हैं। दूरवर्ती स्थानों तक गैस तथा तेल की आपूर्ति एवं रेल, सड़कों द्वारा यातायात तथा तार एवं दूर संचार व्यवस्थायें ठप्प हो जाती हैं।
भूकम्प सरीखी आपदा सामाजिक व्यवस्था के साथ-साथ देश की आर्थिक व्यवस्था को भी प्रभावित करती है और विकास को धीमा कर देती है।भूकम्प के इन प्रभावों को कम करने के लिये कुछ सावधानियां बरती जा सकती हैं। भूकम्प प्रवण क्षेत्रों में भवनों का निर्माण भारतीय मानक संस्थान द्वारा 1976 के आई०एस०-4326 तथा 1984 में चौथी बार संशोधित आई०एस० 1893मानक की अनुशंसा के आधार पर करना चाहिये। इनके अनुसार हल्के, संहत, अग्नि प्रतिरोधक तथा प्रक्षेपी भागों रहित भवनों पर भूकम्प का असर कम पड़ता है। कंकरीट के स्थान पर लकड़ी के बने मकान ऐसे क्षेत्रों के लिये अधिक उपयोगी हैं। भूकम्प के कारण बांधों में दरार पड़ जाने से जलाशयों में भरा पानी उस क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति पैदा कर सकता है। इससे बचने के लिये बांधों की बनावट को उपलब्ध सीजमिक डिजाइन के आधार पर मजबूत बनाया जाना चाहिये।
भूकम्प के कारण लगने वाली आग से बचाव के लिये भूकम्प प्रवण क्षेत्रों में आकस्मिक जलाशयों को स्थापित किया जाना चाहिये। भूस्सखलन के खतरे को इन क्षेत्रों के भू वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा पहले से ही जाना जा सकता है। भूकम्प के दौरान व उसके बाद हम कुछ सावधानियां बरत
सकते हैं। भूकम्प आने पर शांत और संयत रहें। यदि आप घर के अंदर हों तो इधर-उधर भागने के बजाय मेज, डेस्क या बेंच के नीचे बैठ जायें या कमरे के कोने में खड़े हो जायें। खिड़की, चिमनियों या फिज, मशीन जैसी भारी चीजों से दूर रहें अन्यथा वह आप पर गिर सकती हैं। यदि आप बहुमजलीय इमारत में हो तो सीढ़ियों या एलीवेटर की ओर न भागकर अपने स्थान पर ही सुरक्षा ढूंढें । भूकम्प के समय बिजली चले जाने, आग लगने शीशों के टूटने दीवार चटकने अथवा वस्तुओं के गिरने की आवाज से भयभीत न हों। यदि आप किसी ऊंची इमारत के किनारे चल रहे हों तो छत में पहुंचकर इमारत के गिरते हुये मलबे से बच सकते हैं। खुले मैदान में होने पर बिजली की पावर लाइनों से दूर रहें।
भूकम्प के समय यदि आप किसी बस में हों तो कोशिश कर उसे ऊँची इमारतों व पुल से दूर रोक दें और उसके अन्दर रहें। यदि आप भूकम्प का एक से अधिक झटका महसूस करते हों तो अचरज में न पड़ें। यह झटका उस भूकम्प से आने वाली विभिन्न सीजमिक तरंगों के कारण हो सकता है। ध्यान रखें कि यह मुख्य झटके से नुकसान पहुंची इमारतों को और कमजोर बना सकता है। भूकम्प के बाद बचाव कार्यों में क्षेत्र को खाली कराने, शरणार्थियों को आश्रय देने, उनके लिये प्राथमिक चिकित्सा तथा खाने-पीने की व्यवस्था करने की तुरन्त जरूरत पड़ती है। इसमें सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाओं को भी सूचना मिलते ही तुरन्त मिल जुल कर तन-मन-धन से मदद के लिये आना चाहिये। स्वयंसेवी संस्थायें समय-समय पर भूकम्प प्रवण क्षेत्रों में जाकर आडियो-विजुवल कार्यक्रमों तथा सेमिनारों द्वारा जनता के बीच भूकम्प के प्रभाव से बचने के प्रति जागरूकता पैदा कर सकती हैं।
यह भी पढें : राम मंदिर के लिए कल्याण सिंह (Kalyan Singh) ने मारी थी सत्ता को ठोकर
अब प्रश्न उठता है कि क्या भूकम्प आने की पूर्वसूचना प्राप्त की जा सकती है? वैज्ञानिकों के अथक प्रयास के बावजूद भी अभी तक भूकम्पों की निश्चित भविष्यवाणी करने में पूर्ण सफलता नहीं मिली है। उपलब्ध आंकड़ों को कम्प्यूटर द्वारा प्रोसेस कर सांख्यकीय संभावनाओं के आधार पर भूकम्प के पूर्वानुमान की दिशा में विचारणीय प्रगति हुई है। भूकम्प के पूर्व पशु-पक्षियों के असामान्य व्यवहार द्वारा भूकम्प की पूर्वसूचना पर भी कार्य हुआ है। ऐसा देखा गया है कि भूकम्प आने के पूर्व पक्षी चिचियाते हुये अपने घोंसले से उड़ जाते हैं, चूहे व सांप अपने बिलों में नहीं घुसते हैं तथा कुछ अन्य जानवर भी बेचैन हो जाते हैं। चीन ने पेरिस में एक अंतरराष्ट्रीय बैठक में 4 फरवरी 1975 को ल्योनिंग प्रांत में 7.3 परिमाण के
भूकम्प की भविष्यवाणी के विषय में बताया, जो पशुओं के असामान्य व्यवहार पर आधारित थी तथा जिसमें आक्रान्त लोगों को बचा लिया गया था सौरमंडल में नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर भूकम्प की भविष्यवाणी करने का भी वैज्ञानिकों ने प्रयास किया है। सरकार एक संकटकालीन कार्रवाई योजना चला रही है।
भूकम्प जोखिम के आकलन का एक केन्द्र बनाने के इरादे से 1999 में एक टास्क फोर्स बनाई गई थी। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैडर्ड के अनुसार मात्र एक प्रतिशत के अतिरिक्त खर्च पर किसी भी इमारत को भूकम्प-रोधी बनाया जा सकता है। विनाशकारी भूकम्प से बचाव के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है कि हम प्रकृति का अनावश्यक दोहन न करें और भूकम्प के विषय में आम नागरिक को जागरूक बनाया जाए। भूकंप पर शोध करने वाले के वैज्ञानिकों के मुताबिक, हिंदुकुश पर्वत से पूर्वोत्तर भारत तक का हिमालयी क्षेत्र भूकंप के प्रति बेहद संवेदनशील है। उसके खतरों से निपटने के लिए संबंधित राज्यों में कारगर नीतियां नहीं हैं जो बेहद चिंताजनक है।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )