पड़ोसी टेंशन में : चीन (China) पहले ही अपनी बूढ़ी आबादी से परेशान था, अब भारत से जनसंख्या घटने पर तिलमिलाया। देश के सामने भी कम चुनौती नहीं - Mukhyadhara

पड़ोसी टेंशन में : चीन (China) पहले ही अपनी बूढ़ी आबादी से परेशान था, अब भारत से जनसंख्या घटने पर तिलमिलाया। देश के सामने भी कम चुनौती नहीं

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पड़ोसी टेंशन में : चीन (China) पहले ही अपनी बूढ़ी आबादी से परेशान था, अब भारत से जनसंख्या घटने पर तिलमिलाया। देश के सामने भी कम चुनौती नहीं

मुख्यधारा डेस्क

मौजूदा समय में भारत पूरे दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है। अब भारत की आबादी 142.86 करोड़ हो गई है। वहीं, 142.57 करोड़ के साथ चीन दूसरे नंबर पर है।

बुधवार, 19 अप्रैल यानी आज यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड की रिपोर्ट में सामने आया है कि भारत में अब चीन के मुकाबले करीब 29 लाख ज्यादा लोग हैं। यूएन के अनुसार भारत 142.86 करोड़ जनसंख्या के साथ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है और चीन दूसरे नंबर पर खिसक गया है। जबकि, यूएसए सर्वाधिक जनसंख्या के मामले में तीसरे नंबर पर है।

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विभिन्न एजेंसियों का अनुमान है कि भारत की जनसंख्या लगभग तीन दशकों तक बढ़ती रहने वाली है। वहीं दूसरी ओर जनसंख्या में अपना रिकॉर्ड टूटने पर चीन तिलिमिला गया है।

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यह रिपोर्ट सामने आने के बाद चीनी सरकार ने भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की है, उसका कहना है कि उनके पास अभी भी 900 मिलियन (90 करोड़) लोगों का गुणवत्ता कार्यबल (क्वालिटी वर्कफोर्स) है, जो विकास में अहम योगदान प्रदान करेगा।

रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया मांगे जाने पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, “मैं आपको बताना चाहता हूं कि जनसंख्या लाभांश मात्रा (क्वानटिटी) पर नहीं बल्कि गुणवत्ता (क्वालिटी) पर भी निर्भर करता है।

उन्होंने कहा कि चीन की आबादी अब 1.4 अरब से ज्यादा है, और यहां कामकाजी उम्र के लोग भी 90 करोड़ हैं, इतना बड़ा वर्कफोर्स कहीं और नहीं है। यूएनएफपीए इंडिया के प्रतिनिधि और भूटान के कंट्री डायरेक्टर एंड्रिया वोजनार ने रिपोर्ट पर बयान देते हुए कहा हम यूएनएफपीए में भारत के 1.4 अरब लोगों को 1.4 अरब अवसरों के रूप में देखते हैं। यह बेहद अच्छा है।

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यूएनएफपीए की एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर नतालिया कानेम ने कहा कि आबादी को लेकर हम गलत सवाल पूछते हैं जैसे दुनिया में आबादी बढ़ रही है? दुनिया में आबादी घट रही है? सवाल यह नहीं होने चाहिए, बल्कि सवाल यह होना चाहिए कि क्या दुनिया में रहने वाले लोगों के अधिकार उनको मिल पा रहे हैं।

माओ काल में और उसके बाद भी सिंगल चाइल्ड की सख्त पॉलिसी ने समाज में ऐसे ट्रेंड विकसित कर दिए, जिनसे चीनी नेतृत्व चाहकर भी पीछा नहीं छुड़ा पा रहा। हाल के वर्षों में जब सिकुड़ती आबादी के खतरे नजर आने लगे, तब चीन सरकार ने नई पीढ़ी के लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने की कम कोशिशें नहीं कीं, लेकिन इन सबका कोई फल निकलता नहीं दिख रहा।

बढ़ती आबादी देश के सामने कई समस्याएं और चुनौतियां भी बढ़ाती हैं

बढ़ती आबादी के साथ लोगों को बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था, बेहतर शिक्षा, बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर और शहरों व गांवों को अधिक सुविधाजनक बनाना सरकार के लिए और भी बड़ी चुनौती होगी। रोज बढ़ती आबादी के साथ देश के सामने कई समस्याएं मुंह बाए खड़ीं हैं।

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देश में हर व्यक्ति को भोजन उपलब्ध करने और निर्बाध बिजली आपूर्ति करने की राह में चुनौती बनता जा रहा है। हाल के वर्षों में असमय बारिश से फसलों के नुकसान और हीट वेव के कारण बिजली आपूर्ति में बाधा आने जैसी समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं।

येल विश्वविद्यालय की ओर से जारी इनवायरमेंटल परफॉर्मेंस रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत पर्यावरण के मामले में 180 देशों की सूची में आखिरी पायदान पर है। भविष्य में आबादी यूं ही बढ़ती रही तो हालात और भी बुरे हो सकते हैं। देश में जल संकट भी गंभीर स्तर पर पहुंच गया है।

प्रदूषण के कारण पेयजल की स्थिति रोज खराब हो रही है। लगभग 40 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के घर तक जल आपूर्ति की सुविधा अब भी उपलब्ध नहीं है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ेगी यह समस्या और विकराल होती जाएगी।

स्वास्थ्य सुविधाओं की बुरी स्थिति। केंद्र और राज्य सरकारें हेल्थकेयर पर अपनी जीडीपी का लगभग दो प्रतिशत ही खर्च कर पा रही हैं जो पूरी दुनिया में सबसे कम है। पांच से कम उम्र के एक तिहाई से अधिक बच्चे कुपोषित हैं जबकि 15-49 वर्ष की आयु की लभगभग आधी महिलाएं अनीमिया की शिकार हैं। ऐसे में लगातार बढ़ रही आबादी देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को देखते माथे पर सिकन डालने वाली स्थिति है।

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वहीं भारत में बेरोजगारी आजादी के बाद से हर दौर में बड़ी समस्या रही है। बीते वर्षों में देश में रोजगार जरूर बढ़ा है पर आबादी उस अनुपात में कहीं ज्यादा बढ़ी है। नतीजा यह है कि भारत में लगभग एक तिहाई युवा बेरोजगार हैं। ना उनके पास बेहतर शिक्षा है ना कौशल। देश की कामगारों के महज पांच प्रतिशत ही आधिकारिक तौर पर स्किल्ड हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए लाखों लोगों को रोजगार देने की आवश्यकता को बढ़ाएगी। भारत की आधी आबादी 30 वर्ष से कम आयु की है। आने वाले वर्षों में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है।

दुनिया में भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, चीन वन चाइल्ड पॉलिसी में पिछड़ता गया

यूएनएफपीए इंडिया के प्रतिनिधि ने कहा कि अब दुनिया की आबादी 8 अरब हो गई है। हम भारत के 1.4 अरब लोगों को 1.4 मौकों के रूप में देखेंगे। उन्होंने कहा कि भारत एक शक्तिशाली देश है। शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता और आर्थिक विकास के मामले में लगातार आगे बढ़ रहा है। इस रिपोर्ट में भारत की 25 फीसदी आयु 0-14 साल के है। इसके बाद 10-19 साल तक के 18 फीसदी लोग हैं। 10-24 साल तक के लोगों की तादाद 26 फीसदी है। लेकिन भारत में 15-64 साल के बीच लगभग 68 परसेंट है।

यानी भारत में युवाओं की सबसे ज्यादा तादाद है। वहीं, चीन में हालाल खराब हो गए हैं।विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की जनसांख्यिकी एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न है। केरल और पंजाब में बुजुर्ग आबादी अधिक है, जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश में युवा आबादी अधिक है।

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चीन अपनी बूढ़ी आबादी से परेशान हो चुका है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 20 करोड़ लोग 65 साल से अधिक है। चीन की लगभग 40 फीसदी आबादी 60 साल के ऊपर की हो गई है। यहां पर एक वक्त पर जनसंख्या काबू करने के लिए नियम बना दिए थे। अब जनसंख्या बढ़ाने के लिए चीनी सरकार रोजाना नए-नए प्रलोभन दे रही है। फिर भी यहां पर लोग एक बच्चे से ज्यादा पैदा नहीं कर रहा।

यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट के अनुसार एक साल में भारत की जनसंख्या 1.56 फीसदी बढ़ी है। रिपोर्ट में नए आंकड़े ‘डेमोग्राफिक इंडिकेटर्स’ की कैटेगरी में दिए गए हैं।

यूएन 1950 से दुनिया में आबादी से जुड़ा डेटा जारी कर रहा है। तब से ये पहला मौका है जब भारत ने जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ा है। पिछले साल जारी एक रिपोर्ट में सामने आया था कि पिछले 6 दशकों में पहली बार चीन की जनसंख्या में गिरावट दर्ज की गई है।

चीन में बच्चे पैदा करने की दर भी कम हुई है, और वो इस साल माइनस में दर्ज की गई। अमेरिकी सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 18वीं सदी में आबादी 12 करोड़ के आसपास रही होगी।

1820 में भारत की आबादी 13.40 करोड़ के आसपास थी। 19वीं सदी तक भारत की आबादी ने 23 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया। 2001 में भारत की आबादी 100 करोड़ के पार चली गई। अभी भारत की आबादी 140 करोड़ के आसपास है। 2050 तक भारत की आबादी 166 करोड़ के आसपास होगी।

भारत में आबादी बढ़ने की तीन बड़े कारण हैं।

पहला- शिशु मृत्यु दर में गिरावट यानी एक साल से कम उम्र के बच्चों की मौत घट रही है। दूसरा- नवजात मृत्यु दर में कमी यानी 28 दिन की उम्र तक के बच्चों की मौत में कमी आ रही है। और तीसरा- अंडर-5 मोर्टेलिटी रेट कम होना यानी पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों की संख्या घट रही है।

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भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट बताती है कि 2021-22 में सालभर में 2.03 करोड़ से ज्यादा बच्चों का जन्म हुआ। यानी, हर दिन औसतन 56 हजार बच्चे पैदा हुए।

इससे पहले साल 2020-21 में दो करोड़ से कुछ ज्यादा बच्चों का जन्म हुआ था। इसका मतलब हुआ कि 2020-21 की तुलना में 2021-22 में 1.32 लाख ज्यादा बच्चों का जन्म हुआ। ये आंकड़ा इसलिए भी चौंकाता है क्योंकि अगर दुनिया के 78 देशों की आबादी को जोड़ दिया जाए तो ये संख्या दो करोड़ से कुछ ज्यादा ही बैठती है।

भारत न केवल दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है, बल्कि यूएन के आंकड़ों के अनुसार यहां दुनिया की सबसे युवा आबादी भी रहती है।

भारत की आधी आबादी 30 साल से कम लोगों की है जिनकी औसत उम्र 28 वर्ष है। अमेरिका और चीन की बात की जाए तो वहां की औसत उम्र 38 वर्ष है। आर्थिक विकास के मामले में भारत की युवा आबादी अहम रोल अदा कर सकती है, क्योंकि यहां कि दो तिहाई से अधिक आबादी काम करने की उम्र यानी 15 वर्ष से 64 वर्ष के बीच की है।

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