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आग की घटनाओं (Fire Incidents) में दोगुनी वृद्धि बनी सूक्ष्मजीवों के लिए मुसीबत

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आग की घटनाओं (Fire Incidents) में दोगुनी वृद्धि बनी सूक्ष्मजीवों के लिए मुसीबत

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

आमतौर पर सर्दियों में जंगल नहीं जला करते। पिछले कुछ साल में छुटमुट घटनाएं सामने आने पर उत्तराखंड वन विभाग ने एक नवंबर से आग की निगरानी शुरू कर दी। 31 मार्च तक स्थिति नियंत्रण में थी। इन पांच माह में करीब 32 हेक्टेयर जंगल जला, मगर अप्रैल के साथ चुनौती और चिंता भी शुरू हो गई। सिर्फ एक से 26 अप्रैल के बीच 657 हेक्टेयर जंगल जल चुका है। यानी 25 हेक्टेयर की औसत से रोजाना हरियाली राख हो रही है। यही वजह है कि सेना ने भी आग बुझाने के लिए मोर्चा संभाल लिया। भारत के पहाड़ी इलाकों समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में जंगलों में आग लगने की घटनाएं साल दर साल बढ़ रहीं हैं। हालांकि आग की घटनाएं गर्मी के मौसम के दौरान अधिक देखने को मिलती हैं, लेकिन इस साल सर्दियों के दौरान घटनाएं बढ़ गई हैं।

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केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करने वाले भारतीय वन सर्वेक्षण) के मुताबिक पहली नवंबर 2023 से पहली जनवरी 2024 के बीच उत्तराखंड में 1006 आग लगने की घटनाएं हुई हैं। पिछले साल की तुलना में, इसमें भारी वृद्धि देखी जा रही है, क्योंकि इससे पहले सालों में इसी अवधि के दौरान लगभग 556 आग लगने की घटनाएं हुई थी। कुछ समय पूर्व किए गए एक शोध में कहा गया था कि जंगल की आग यहां रहने वाले सूक्ष्मजीवों को नुकसान पहुंचाती है और उनके विकास को रोकती है। आग लगने के बाद सूक्ष्मजीव कैसे बदलते हैं, शोध के हवाले से कहा गया है कि शोधकर्ताओं को इसकी बेहतर समझ से यह अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है कि बैक्टीरिया और कवक पर्यावरणीय बदलावों पर किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं।

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शोध के मुताबिक, विनाशकारी आग के बाद सूक्ष्मजीवों में बहुत बड़ा बदलाव होता है। शोधकर्ताओं ने एक साल तक यह पता लगाया कि बैक्टीरिया और फंगल समुदाय जले हुए जगहों में पत्तों के कूड़े में किस तरह पनपते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि मिट्टी की सतह में उभरते सूक्ष्मजीव मौसम और पौधों के दोबारा उभरने के साथ बदल गए और सूक्ष्मजीवों का संयोजन काफी हद तक फैलने से प्रेरित था। यह शोध एमसिस्टम्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। वहीं, भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, इन सर्दियों के मौसम के दौरान, उत्तराखंड के टिहरी,
उत्तरकाशी, नैनीताल, बागेश्वर, देहरादून, पिथौरागढ़, पौड़ी और अल्मोड़ा सहित लगभग सभी जिलों में जंगल की आग लगने की जानकारी मिली है।

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शोध में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन और मानवजनित कारणों से हम अपने पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं।सूक्ष्मजीव, विशेष रूप से सतही मिट्टी में मौजूद, कार्बन और नाइट्रोजन चक्र जैसी कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं  निभाते हैं। उन्होंने कहा, बैक्टीरिया
और कवक किसी खेत या जंगल के सतह पर मृत और सड़ रहे पौधों को छोटे डुकड़ों में तोड़ कर उन्हें नष्ट करने में अहम भूमिका निभाते हैं।पिछले महीने के दौरान हिमाचल प्रदेश में कुल्लू के पतलीकूहल नामक जंगल के इलाके में भीषण आग लगने की घटना घटित हुई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक आग लगने से करोड़ों रुपये की वन संपदा नष्ट हुई।

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भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के मुताबिक, पिछले दो महीनों में, हिमाचल प्रदेश में जंगल में आग लगने की सबसे अधिक यानी 1,199 घटनाएं हुई। इसके बाद उत्तराखंड में 1,006 , मध्य प्रदेश में 577 , कर्नाटक में 434 और महाराष्ट्र 445 का स्थान रहा। जंगल में आग अक्सर वन्यजीवों को घेरने, अवैध शिकार के लिए, जंगलों में आग लगा दी जाती है। इस मौसम के दौरान वन्यजीव कम ऊंचाई वाले इलाकों में आ जाते हैं। वन्यजीव संरक्षणवादियों ने चिंता जाहिर करते हुए वनकर्मियों को जंगलों में गश्त बढ़ाने की सलाह दी है।  जंगल की आग से प्रभावित व्यक्ति की वजह से दुनिया पर आर्थिक बोझ, भूकंपों की तुलना में दोगुना और बाढ़ की तुलना में 48 गुना ज़्यादा होता है। हालांकि, बाढ़ और उससे प्रभावित लोगों की संख्या, जंगलों में लगी आग की घटनाओं की तुलना में बहुत ज़्यादा है।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते तापमान और वक्त से पहले बर्फ़ गिरने जैसी जलवायु परिवर्तन की घटनाओं से गर्मी और ख़ुश्क मौसम की स्थिति पैदा होती है। इससे जंगल में आग बढ़ है।दूसरी तरफ, वन विभाग के अधिकारी चीड़ के जंगल, अराजकतत्व से लेकर मौसम को भी इन घटनाओं की बड़ी वजह मान रहे हैं। हालांकि, आग का यह दायरा नई आशंकाओं का संकेत भी दे रहा है। वन्यजीवों, दुर्लभ वनस्पतियों से लेकर प्राकृतिक जलस्त्रोतों तक पर खतरा मंडरा रहा है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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