सियासी सन्नाटा : लोकतंत्र महापर्व के बीच उत्तराखंड की सियासत में छाई "खामोशी", पक्ष-विपक्ष के नेताओं के पास चुनाव को लेकर कोई काम नहीं - Mukhyadhara

सियासी सन्नाटा : लोकतंत्र महापर्व के बीच उत्तराखंड की सियासत में छाई “खामोशी”, पक्ष-विपक्ष के नेताओं के पास चुनाव को लेकर कोई काम नहीं

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सियासी सन्नाटा : लोकतंत्र महापर्व के बीच उत्तराखंड की सियासत में छाई “खामोशी”, पक्ष-विपक्ष के नेताओं के पास चुनाव को लेकर कोई काम नहीं

(सियासत की राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र समेत तमाम राज्यों में चुनावी शोर, जनसभाएं, पक्ष-विपक्ष के बीच नए-नए मुद्दों पर आरोप-प्रत्यारोप के बाद सियासी माहौल गर्माया हुआ है। वहीं उत्तराखंड की राजनीति में सन्नाटा छाया हुआ है। इन दिनों उत्तराखंड के खबरनवीसों और भाजपा, कांग्रेस नेताओं के पास लोकसभा चुनाव को लेकर कोई खास काम नहीं है। देहरादून में भाजपा और कांग्रेस के राज्य मुख्यालयों में रौनक गायब है। दोनों पार्टियों के नेता भी लोकसभा चुनाव के बाद आराम के मूड में हैं । ‌अब देवभूमि की जनता को चुनाव नतीजों का इंतजार है। सवा महीने बाद 4 जून को उत्तराखंड की सियासत में फिर चहल-पहल दिखाई देगी।)

शंभू नाथ गौतम

देश में लोकतंत्र महापर्व का उत्सव जारी है। राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र समेत तमाम राज्यों में चुनावी शोर, जनसभाएं, पक्ष-विपक्ष के बीच नए-नए मुद्दों पर आरोप-प्रत्यारोप के बाद सियासी माहौल गर्माया हुआ है। वहीं देवभूमि की सियासत में “खामोशी” छाई हुई है। इन दिनों उत्तराखंड के खबरनवीसों और भाजपा, कांग्रेस नेताओं के पास लोकसभा चुनाव को लेकर कोई खास काम नहीं है।भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ही मौजूदा समय में राज्य के सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं। वहीं कांग्रेस की ओर से हरीश रावत बड़े नेता हैं ।भाजपा की ओर से सीएम धामी कुछ राज्यों में जरूर प्रचार कर रहे हैं। बाकी पार्टी के अधिकांश नेता अपने-अपने घरों और ऑफिस में हार-जीत का गणित लगा रहे हैं। ‌

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राजधानी देहरादून में भाजपा और कांग्रेस के राज्य मुख्यालयों में रौनक गायब है। दोनों पार्टियों के नेता भी लोकसभा चुनाव के बाद आराम के मूड में हैं। ‌इसके अलावा आचार संहिता की वजह से भी नए काम, विकास योजनाओं के लोकार्पण-शिलान्यास भी पेंडिंग में है। अभी लोकसभा चुनाव के पांच चरण रह गए हैं। ‌जिसकी वजह से कई राज्यों में राजनीतिक दलों की रैली, जनसभाएं और रोड शो हो रहे हैं। ‌जिन-जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां की चुनावी खबरें देशभर में सुर्खियों में है। वहीं देवभूमि की सियासत में सन्नाटा छाया हुआ है। उत्तराखंड में सभी पांचों सीटों के लिए पहले चरण 19 अप्रैल को वोटिंग हो गई। राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान सियासत का पारा चढ़ा हुआ था। प्रदेश से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र भी चुनावी खबरों से गुलजार थे। ‌इसके साथ समाचार पत्रिकाओं और न्यूज पोर्टलों में भी लोकसभा चुनाव से संबंधित खूब खबरें भरी हुई थी। लेकिन चुनाव के मतदान के अगले दो-तीन दिन बाद ही देवभूमि में चुनावी माहौल गायब होता चला गया। हालांकि इस बार देवभूमि में लोकतंत्र का सबसे बड़ा महापर्व फीका रहा।

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उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटें, टिहरी गढ़वाल, गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल-उधमसिंह नगर और हरिद्वार हैं। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, उत्तराखंड क्रांति दल जैसी पार्टियां भी चुनावों में उम्मीदवार उतारती रही हैं लेकिन यहां मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच ही रहा है। बीजेपी इस बार ‘तीसरी बार, मोदी सरकार’ और ‘अबकी बार, 400 पार’ जैसे नारों के साथ चुनाव मैदान में उतरी है। वहीं, कांग्रेस भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए को जीत की हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए पूरा जोर लगा रही है। लोकसभा चुनाव में एक-एक सीट, एक-एक वोट के लिए जारी रस्साकशी में देवभूमि उत्तराखंड की चुनावी लड़ाई रोचक हो गई है। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हरिद्वार सीट से चुनाव मैदान में उतारा है।

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त्रिवेंद्र का मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार वीरेंद्र रावत और बसपा प्रत्याशी जमील अहमद से है। अनिल बलूनी बीजेपी के टिकट पर गढ़वाल से चुनाव लड़ रहे हैं जहां उनका मुकाबला उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल से है। बीजेपी के टिकट पर अल्मोड़ा से अजय टम्टा, नैनीताल-उधमसिंह नगर से अजय भट्ट और टिहरी गढ़वाल से माला राज्यलक्ष्मी शाह चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कांग्रेस ने टिहरी गढ़वाल से जोत सिंह गुनसोला, निर्दलीय प्रत्याशी बॉबी पंवार, अल्मोड़ा से प्रदीप टम्टा, नैनीताल-उधमसिंह नगर से प्रकाश जोशी को टिकट दिया है। राज्य की सभी पांच सीटों पर 55 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद है। अब देवभूमि की जनता लोकसभा चुनाव के परिणामों का इंतजार है। सवा महीने बाद 4 जून को उत्तराखंड की सियासत में चहल-पहल दिखाई देगी।

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