मिट्टी के घड़े का उत्क्रम परासरण का पानी पीना भी स्वास्थ्य के लिए उतना ही फायदेमंद - Mukhyadhara

मिट्टी के घड़े का उत्क्रम परासरण का पानी पीना भी स्वास्थ्य के लिए उतना ही फायदेमंद

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मिट्टी के घड़े का उत्क्रम परासरण का पानी पीना भी स्वास्थ्य के लिए उतना ही फायदेमंद

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून. रहीम दास जी के इस दोहे का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है जब पानी शुद्ध और मिनरल्स से भरा हुआ हो। हम सब जानते है कि हमारे शारीर में 60 से 70 % पानी है यानी कि हमारे शारीर के प्रत्येक अंग में पानी ही पानी है, यहाँ तक कि
हड्डियों में भी पानी के बिना 7 दिन से अधिक जीवित नहीं रहा जा सकता है। जल सभी जीवों की एक मूलभूत आवश्यकता है इसका मतलब है कि पानी के बिना पृथ्वी पर कोई जीवन नहीं है। पृथ्वी की सतह का एक तिहाई हिस्सा पानी से घिरा हुआ है, लेकिन अधिकांश पानी समुद्र के पानी या बर्फ के रूप में है जिसका उपयोग पीने  के लिए नहीं किया जा सकता है। पृथ्वी पर कुल पानी में से केवल 2-3 % पानी मीठे पानी के रूप में है। उत्क्रम परासरण (Reverse osmosis (RO) [जल शोधन] की एक तकनीक है जो पीने के पानी से आयनों, अवांछित अणुओं और बड़े कणों को हटाने के लिए प्रयुक्त होती है। इसके लिए एक [अर्धपारगम्य झिल्ली] का उपयोग किया जाता है।

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उत्क्रम परासरण कराने के लिए [परासरण दाब] के विपरीत दिशा में एक वाह्य दाब लगाना पड़ता है।RO का पानी आपके लिए नुकसानदायक या फायदेमंद तो जाने-RO का पानी फायदा करता है या नुकसान। बहुत से लोग यह सोचते हैं कि हमने तो महंगी मशीन लगवा ली है तो इस मशीन से हमें शुद्ध पानी मिलेगा,जिस पानी से हमारे शरीर की हेल्थ अच्छी होगी,हमारी फैमिली की हेल्थ अच्छी होगी,हमारी फैमिली को ताकत मिलेगी। इससे हमें शुद्ध पानी मिलेगा और शुद्ध पानी मिल गया तो समझो आज के जमाने में इससे बड़ी कोई बात ही नहीं।लेकिन वो ये नहीं समझ रहे कि आपने पैसे लगाकर जो मशीन खरीद कर लाए हैं यह मशीन मुझे शुद्ध पानी देगी क्या। मशीन आपको सच में शुद्ध पानी देगी या कहीं यह ना हो कि आपको उल्टा और अधिक नुकसान ना होने लग जाए।

RO का मतलब है रिवर्स ऑस्मोसिस। यह पानी में से बहुत सारी चीजों को रिवर्स कर देता है,बाहर निकाल देता है और उल्टा वापिस भेज देता है। तो यह पानी की अशुद्धियों को दूर करने का काम तो करता है साथ ही पानी के मिनरल,पानी के कैल्शियम,पानी के मैग्नीशियम ,पानी की ताकत को भी बाहर निकाल देता है।जिस कारण यह पानी जो फायदा करना था उसकी जगह उल्टा नुकसान कर रहा है। क्योंकि पानी में मौजूद जो ताकत थी जिससे आपकी हड्डियों में मजबूती आनी थी शरीर की जो जरूरतें थी वह पूरी नहीं हो पाती और आप छना हुआ ऐसा पानी पी रहे हो जिसमें कोई दम नहीं है।इससे अच्छा तो आप उबालकर छानकर पानी पी लोगे तो वह ज्यादा फायदा करेगा।अगर पानी में अशुद्धियां ज्यादा है तो उसमें दो बार फिटकरी घुमा दो और जब अशुद्धियां नीचे बैठ जाए तो उसे छानकर पी लोगे तो वह ज्यादा फायदा करेगा। तो आप यह बात ध्यान रखें कि आप अपने लिए सेहत खरीद रहे हैं या बीमारी।

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रिवर्स असमस फीड पानी से भंग लवण (आयनों), कणों, कोलोइड्स, ऑर्गेनिक, बैक्टीरिया और पायरोजेन्स का 99% तक निकालने में सक्षम है हालांकि एक आरओ प्रणाली पर 100% बैक्टीरिया और वायरस हटाने के लिए भरोसा नहीं करना चाहिए )। एक आरओ झिल्ली उनके आकार और चार्ज के आधार पर दूषित पदार्थों को खारिज कर देता है। किसी भी संदूषक के पास 200 से अधिक आणविक भार है जिसे ठीक से चलने वाले आरओ सिस्टम द्वारा खारिज किया जाता है (तुलना करने के लिए एक पानी के अणु में 18 मेगावाट है)। इसी तरह, संदूषक के अधिक से अधिक ईओणिक प्रभारी,अधिक संभावना यह आरओ झिल्ली के माध्यम से पार करने में असमर्थ होगा। उदाहरण के लिए, सोडियम आयन का केवल एक प्रभार (monovalent) है और उदाहरण के लिए आरओ झिल्ली के साथ ही कैल्शियम द्वारा खारिज नहीं किया जाता है, जिसमें दो आरोप हैं। इसी तरह, यही वजह है कि एक आरओ सिस्टम गैसों जैसे कि सीओ 2 को बहुत अच्छी तरह से दूर नहीं करता है क्योंकि वे समाधान में अत्यधिक आयनित (चार्ज) नहीं होते हैं और बहुत कम आणविक भार होते हैं। चूंकि एक आरओ प्रणाली गैसों को दूर नहीं करती है, इसलिए पानी में सीओ 2 के स्तर के आधार पर ट्रांसमिट पानी सामान्य पीएच स्तर से थोड़ा कम हो सकता है क्योंकि सीओ 2 को कार्बन एसिड में परिवर्तित किया जाता है।

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रिवर्स ऑस्मोसिस दोनों बड़े और छोटे प्रवाह अनुप्रयोगों के लिए खारे, सतह और भूजल के इलाज के लिए बहुत प्रभावी है। आरओ पानी का उपयोग करने वाले उद्योगों के कुछ उदाहरणों में फार्मास्यूटिकल, बायलर फीड वॉटर, खाद्य और पेय पदार्थ, धातु परिष्करण और अर्धचालक निर्माण शामिल हैं, कुछ का नाम।पानी में मौजूद टीडीएस समाप्त हो जाते हैं।आरओ वाटर प्योरीफायर कठोर पानी को नरम पानी में कनवर्ट करता है। परन्तु आरओ वाटर प्योरीफायर के इस्तेमाल करने से नुकसान यह है कि यह बहुत अधिक अपशिष्ट जल का उत्पादन करता है।देश के ज़्यादातर बड़े शहरों में पीने का साफ़ पानी क्रह्र से ही मिलता है या फिर प्यूरीफ़ाइड पानी की बोतलों से घरों में पानी पहुंचता है। RO यानी ‘Reverse osmosis’, पानी को साफ़ करने की ऐसी प्रक्रिया, जिस पर लोग आंखें बन्द करके भरोसा करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि RO का पानी आपके स्वास्थय के लिए खतरनाक हो सकता है नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) पानी साफ़ करने वाली RO तकनीक को पहले ही ख़तरनाक बता चुका है।

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पिछले दिनों NGT ने आदेश दिया था कि इस ख़तरनाक तकनीक पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए। NGT ने 20 मई को पर्यावरण मंत्रालय को आदेश दिया कि जिन इलाक़ों में एक लीटर पानी में TDS की मात्रा 500 मिलिग्राम या उससे कम है। उन इलाक़ों में RO के इस्तेमाल पर रोक लगाया जाए। लेकिन पर्यावरण मंत्रालय ने 20 मई के इस आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं की मतलब पर्यावरण मंत्रालय ने ये जानते हुए भी RO पर बैन लगाने का फ़ैसला नहीं लिया कि ये कई जगहों पर लोगों के लिए ख़तरनाक साबित हो रहा है। RO तकनीक से पानी को साफ़ करते
वक़्त उसमें मौजूद मिनरल ख़त्म हो जाते हैं और शरीर में मिनरल की कमी की वजह से थकान, कमज़ोरी, मांसपेशियों में दर्द और दिल से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं। मतलब जिस RO को घर पर लगा कर लोग ये सोचते हैं कि वो साफ़ पानी पी रहे हैं, असल में वो पानी सेहत के लिए काफ़ी ख़तरनाक है, इसीलिए NGT ने इस पर बैन लगाने के आदेश दिए हैं सिर्फ NGT ही नहीं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन ने भी RO के पानी को ख़तरनाक माना है।

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वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन के मुताबिक़ प्रति लीटर पानी में TDS की मात्रा अगर 500 मिलीग्राम या उससेकम है तो पानी को RO से साफ़ करने की ज़रूत नहीं होती। मतलब प्रति लीटर 500 मिलीग्राम TDS वाला पानी पिया जा सकता है और इससे नुक़सान भी नहीं होता।TDS पानी में घुले वो ठोस मिनरल होते हैं, जो पानी में जितने कम हों उतना पानी साफ़ माना जाता है। लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं हैं कि पानी में TDS की मात्रा होनी ही नहीं चाहिए। पानी में मिनरल ज़रूरी हैं क्योंकि ये पानी को स्वस्थ बनाते हैं। लेकिन रिसर्च में दावा किया गया है कि RO तकनीक के इस्तेमाल से पानी में घुले मिनरल लगभग ख़त्म हो जाते हैं। इससे शरीर को ज़रूरी मिनरल नहीं मिल पाते और यही वजह है कि RO तकनीक पानी को ख़तरनाक बना देती है। आजकल बड़े शहरों के हर घर में RO का यही पानी इस्तेमाल किया जा रहा है। यानी साफ़ पानी पीने के नाम पर हम बीमारियां पैदा करने वाले पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं। शहर के लोग तो आरओ से निकलने वाला शुद्ध पानी पीते हैं। पर गांव की बड़ी आबादी इतनी समर्थ नहीं कि घर-घर में आरओ उपलब्ध हो जाए। गांव की इस समस्या का स्थायी समाधान ढंूढ़ निकाला है केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान सिंफर के सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों के दल ने। उन्होंने मिट्टी के घड़े को प्राकृतिक आरओ के रूप में विकसित किया है। लोहे के स्टैंड में मिट्टी का घड़ा और स्टील का जार ऐसे तैयार किया गया है जिससे घड़े को पानी मिलता रहे और उस शुद्ध जल से प्यास बुझायी जा सके।

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वैज्ञानिक डॉ. कमल शर्मा के अनुसार, घड़े के ऊपर वाले स्टील के फिल्टर टैंक या जार में 70 डिग्री तापमान तक गर्म कर पानी डाल सकते हैं। इससे अधिक तापमान पर पानी को गर्म करने से उसमें मौजूद पोषक तत्व के नष्ट होने का खतरा रहता है। जार में 10 लीटर तक पानी रख सकते हैं जो प्रतिदिन के इस्तेमाल के लिए काम आएगा।धूप में रखकर भी कर सकत हैं पानी को गर्म आग में गर्म करने की सुविधा न मिले तो धूप में भी पानी को गर्म कर सकते हैं। धूप में गर्म पानी भी शरीर के लिए काफी फायदेमंद है। इससे पानी के मिनरल सुरक्षित रहते हैं।सामाजिक शोध और अनुसंधान के लिए सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों ने इनोवेशन फॉर सोसाइटी का गठन किया है। इससे जुड़े वैज्ञानिकों ने किफायती दर पर तैयार किए गए प्राकृतिक आरओ तोपचांची में बिरहोरों के गांव चलकरी में रहने वाले 47 बिरहोर परिवारों को उपलब्ध कराया। उन्हें न सिर्फ मिट्टी के घड़े वाले आरओ दिए गए बल्कि महिलाओं को इसके इस्तेमाल के तौर-तरीकों की पूरी जानकारी भी दी गई। इस प्राकृतिक आरओ में पानी को आग पर गर्म कर डाल सकते हैं। विकल्प के तौर पर धूप में इसे रखकर भी उस पानी का सेवन किया जा सकता है।

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धूप में गर्म होने वाला जल मनुष्य के शरीर के लिए ज्यादा लाभकर होगा। सोसाइटीका आरओ कमर्शियल उपयोग के लिए नहीं है। गांव के लोग इसे आसानी से कम खर्च में तैयार कर सकते हैं।धूप में पानी गर्म कर बुझा सकेंगे प्यास, अधिकतम 70 डिग्री तापमान पर गर्म भी कर सकेंगे। गर्मी के दिन शुरु होते ही मिट्टी के घड़े यानि मटके की मांग शुरु होती है। गर्मी में मटके का पानी जितना ठंडा और सुकूनदायक लगता है, स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही फायदेमंद भी होता है हिमालय की प्राकृतिक संपदा, चाहे वह जंगल हों, खनिज, पानी या फिर नैसर्गिक सौन्दर्य, की जबरदस्त लूट मची हुई है। यह लूट करने वाले हमेशा कानून से ऊपर रहते हैं और यह जैवविविधता के लिए एक खास खतरा है।

(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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