बिट्रिश काल में सीमांत में व्यापक रूप से गन्ने का उत्पादन (sugarcane production) होता था - Mukhyadhara

बिट्रिश काल में सीमांत में व्यापक रूप से गन्ने का उत्पादन (sugarcane production) होता था

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बिट्रिश काल में सीमांत में व्यापक रूप से गन्ने का उत्पादन (sugarcane production) होता था

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड के उधमसिंह नगर, हरिद्वार, नैनीताल जैसे जिलों में गन्ने की खेती होती है, लेकिन कम लोगों को ही पता होगा कि यहां के पर्वतीय जिले पिथौरागढ़ के कई ब्लॉकों में बरसों से गन्ने की खेती हो रही है। फिर भी इसका नाम गन्ना उत्पादक जिलों में नहीं आता है, लेकिन एक किसान के प्रयास से अब इसका नाम भी गन्ना उत्पादक जिलों में दर्ज हो जाएगा। पिथौरागढ़ के कई गाँवों में बहुत सालों से जैविक विधि से गन्ने की खेती होती आ रही है, लेकिन सही बाजार न मिलने और खाली होते गाँवों की वजह से गन्ने की खेती का रकबा भी कम होता गया।

नैनीताल जिले के हलद्वानी ब्लॉक के मल्लादेवला गाँव के किसान नरेंद्र मेहरा को जब पिथौरागढ़ में गन्ने की खेती के बारे में पता चला तो उन्होंने गन्ना विभाग की मदद से एक बार फिर यहां पर गन्ने की एक नए सिरे से शुरू करने की कोशिश की है। नरेंद्र मेहरा बताते हैं,”जब मुझे पिथौरागढ़ में हो रही गन्ने की खेती के बारे में पता चला तो मैंने कई किसानों पता करने की कोशिश की यहां पर किसान कैसे खेती कर रहे हैं। तब मैंने गन्ना विकास विभाग के अधिकारियों को गन्ने की खेती के बारे में बताया। किसान पुराने परंपरागत तरीके से गन्ने का गुड़ बनाते हैं, वो बताती हैं, ” वहां पर एक-डेढ़ किलो की एक भेली बनती है, इतिहास गवाह है कि कितने रियासते गुड़ के लिए बिक गईं, मैं एक गाँव गई तो लोगों ने बताया कि सामने गांव देख रहीं हैं, ये एक भेली गुड़ के लिए बिक गई थी। अभी वहां के किसानों को और जानकारी देने की जरूरत है, इसीलिए उन्हें गन्ने की नई किस्म का बीज भी उपलब्ध कराया जा रहा है।

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उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में कनालीछीना ब्लॉक के मलान गाँव के रहने वाले हैं, उत्तराखंड के तमाम दूसरे लोगों की तरह वो भी बेहतर जिंदगी की तलाश में मुंबई चले गए, लेकिन साल 2014 में गाँव वापस आ गए। जय प्रकाश बताते हैं, “पिछले सात-आठ साल पहले से गन्ने की खेती शुरू की है, मैं 2014 में गाँव , लेकिन हम पुरानी किस्मों की खेती करते आ रहे हैं। खेती करते हुए हमारा परिचय नैनिताल के जैविक किसान नरेंद्र मेहरा से हुआ, फिर डॉ रीना नौलिया को यहां पर भेजा उन्होंने यहां पर जानकारी इकट्ठा की।”डुन्डू गांव निवासी पूर्व सूबेदार सुन्दर सिंह अन्ना बिष्ट की पहल पर डेब्यू, मलान, कानाधार समेत सात ग्राम पंचायतों में उन्नत किश्म के गन्ने का उत्पादन पिछले कुछ वर्षों से किया जा रहा है। सेना से लौटते ही सुन्दर सिंह ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ स्थानीय कृषि और पशुपालन को बढ़ाने का अभियान संचालित कर दिया।

इस अभियान में पूर्व सैनिक कैप्टन लालसिंह मेहता, कैप्टन जोगा सिंह रावल, सूबेदार केशवदत्त मखौलिया, काश्तकार भूपेंद्र सिंह बोरा आदि का सहयोग मिला इस टीम ने सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कृषि, बागवानी विशेषज्ञों की सहायता ली और ग्रामीणों को आजीविका सुधार हेतु प्रोत्साहित किया। नतीजतन जिला प्रशासन ने डुन्डू गांव में 15 लाख रुपए मूल्य की गुड़ निर्माण इकाई स्वीकृत कर दी। इस अवसर पर क्षेत्र प्रमुख सुनीता महिमन कन्याल ने कनालीछीना विकासखंड के गांवों में गन्ना उत्पादन और विपणन के लिए हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि गन्ने की खेती को बंदर, सेही, सुंवर नुकसान नहीं करता और यह बहुउपयोगी, लाभकारी खेती है। प्रेरक सुन्दर सिंह अन्ना ने बताया कि क्षेत्र के बारह सौ परिवार गन्ना उत्पादन के जरिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हैं। अतीत में भी जिले के सभी गांवों में गन्ने का उत्पादन होता था।

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ग्रामीण सीमित मात्रा में गन्ने का गुड़ बनाते थे। अभी भी कुछ गांवों में गन्ने की सीमित खेती की जाती है। इधर एक बार फिर गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग सीमांत में गन्ने की खेती को प्रश्रय दे रहा है। यदि यह प्रयास सफल होता है तो आने वाले वर्षों में सीमांत में भी गन्ने फसल लहलहाएगी और पहाड़ के लोगों को भी गन्ने का जूस पीने को मिलेगा। वहीं गुड़ एवं उत्पादों के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार के आसार हैं। इस संबंध में जब उन्होंने पिथौरागढ़ के काश्तकारों से संपर्क किया तो पता चला कि बिट्रिश काल में यहां पर व्यापक रूप से गन्ने का उत्पादन होता था। यहां पर निर्मित गुड़ अंग्रेजों को काफी पसंद था। गुड़ के खरीदार अंग्रेज हुआ करते थे। जिस पर आयुक्त गन्ना एवं चीनी उद्योग ने को पिथौरागढ़ भेजा।

उन्होंने सर्वे कर बताया कि जिले में 150 से अधिक किसान अभी भी गन्ना उत्पादन करते हैं कई गांवों में आज भी बोया जाता है। गन्ना, परंतु कागजों में दर्ज नहीं रिकार्ड जिले में अभी कनालीछीना, कमतोली, मुवानी, देवलथल, ओखलढुंगा, डीडीहाट, दिगड़ी, सुरौली, मलान व मुनस्यारी के गांवों में गन्ना आज भी बोया जाता है परंतु यह कागजों में दर्ज नहीं है। जंगली जानवरों के चलते गन्ने का उत्पादन घटता गया।
पिथौरागढ़ में उत्पादित गन्ने के रस का परीक्षण किया जा रहा है। जंगली जानवरों से बचाव के लिए एक विशेष प्रजाति के गन्ने का बीज विभाग उपलब्ध कराने वाला है। राज्य में चीनी उत्पादन को बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत राज्य की चीनी मिलों के आधुनिकीकरण के लिए 25 करोड़ रुपये की धनराशि भी जारी की गई। गन्ने को प्रोत्साहन देने से राज्य चीनी की आवश्यकता को भी पूरी करने के साथ निर्यात भी कर सकेगा। गन्ने की देखरेख भी आसान होती है और पर्वतीय क्षेत्रों में यह फसल जंगली पशु व पक्षियों से भी अन्य फसलों की तुलना में काफी सुरक्षित होती है।

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ऑर्गेनिक गन्ने के उत्पादन से चीनी की गुणवत्ता में भी सुधार होगा और ऑर्गेनिक खेती को भी प्रोत्साहन मिलेगा। किसानों को गन्ने का उचित मूल्य मिलेगा, जिससे किसानों की आर्थिकी में बड़ा सुधार हो सकेगा। वहीं, गांवों में कृषि छोड़ रहे लोग खेती को प्रोत्साहित होंगे, जिससे पलायन भी थमेगा। जाहिर  है कि यह प्रयोग न सिर्फ कृषकों की आर्थिकी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्वतीय क्षेत्रों की पलायन जैसी मुख्य समस्या, ऑर्गेनिक खेती व आत्मनिर्भरता के लिहाज से भी मील का पत्थर सिध्द होगा। कृषकों की आर्थिकी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्वतीय क्षेत्रों की पलायन जैसी मुख्य समस्या, ऑर्गेनिक खेती व आत्मनिर्भरता के लिहाज से भी मील का पत्थर सिध्द होगा।

 यह लेखक के निजी विचार हैं

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