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Vijayadashmi : देशभर में दशहरा की धूम, आज का दिन शुभ कार्यों के लिए भी सर्वोत्तम, इन शहरों में विजयदशमी पर्व पर दिखाई देता है खास नजारा

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Vijayadashmi : देशभर में दशहरा की धूम, आज का दिन शुभ कार्यों के लिए भी सर्वोत्तम, इन शहरों में विजयदशमी पर्व पर दिखाई देता है खास नजारा

मुख्यधारा डेस्क

शारदीय नवरात्र का समापन हो चुका है। आज पूरे देश भर में विजयदशमी और दशहरा की धूम है। वातावरण भी बता रहा है आज बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दशहरा का पावन पर्व है।अश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को विजयदशमी पर्व मनाया जाता है। इसे अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाते हैं। इसी के कारण इसे विजयादशमी भी कहा जाता है।

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शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन प्रभु श्री राम ने लंकापति रावण का वध किया था। भारत में, बुराई के विनाश के प्रतीक के रूप में रावण के पुतले जलाए जाते हैं। यह नई शुरुआत और समृद्धि का भी प्रतीक है, कई लोग इस शुभ दिन पर नए उद्यम या यात्राएं शुरू करते हैं। भारत में यह पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन श्रीराम की पूजा के साथ जीत का उत्सव मनाते हैं।

विजयदशमी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के लिए भी खास होता है। इस दिस संघ अपना स्थापना दिवस भी मनाता है। दशहरा के दिन शाम को पूरे देश भर के छोटे-बड़े सभी शहरों में रावण का पुतला दहन किया जाता है। इस मौके पर मेला भी लगता है। दशहरा को अबूझ मुहूर्तों में से एक माना जाता है।

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आज के दिन शुभ कामों के साथ-साथ खरीदारी करना शुभ माना जाता है। नए बिजनेस की शुरुआत, पैसों का लेन-देन, इलेक्ट्रॉनिक सामान, प्रॉपर्टी की खरीदी-बिक्री के साथ वाहन खरीद सकते हैं। दशहरा पर अगर हिमाचल के कुल्लू और कर्नाटक के मैसूर की बात न करें तो यह त्योहार अधूरा है। कुल्लू और मैसूर में विश्व प्रसिद्ध दशहरे को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग पहुंचते हैं।

आज के दिन शास्त्रों की भी पूजा की जाती है। दशहरे के दिन शमी की पेड़ की पूजा करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि प्रभु श्री राम ने रावण को हराने से पहले शमी की पेड़ की पूजा की थी। पेड़ की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इसलिए आज शमी के पेड़ की पूजा अवश्य करें। इसके साथ ही दीपकर जलाएं।

मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान प्रभु ने लंकापति रावण का वध किया था, तो उनको ब्रह्म हत्या दोष लगा था, क्योंकि रावण ब्राह्मण थे। इसलिए ब्रह्म हत्या से निजात पाने के लिए श्री राम ने भगवान शिव की पूजा की थी। तब शिव जी ने राम जी को नीलकंठ के रूप में दर्शन दिया था। इस कारण आज नीलकंठ देखने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। पंचांग के अनुसार, इस बार दशहरा पर काफी शुभ योग बन रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि, रवि योग के साथ श्रवण योग बन रहा है। दशहरा का पर्व श्रवण नक्षत्र में मनाने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

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पंचांग के अनुसार, 12 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 24 मिनट पर श्रवण नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा, जो अगले दिन 13 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 5 बजकर 25 मिनट से 13 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 27 मिनट तक है। इसके साथ ही रवि योग सुबह 06:20 से 13 अक्टूबर को सुबह 06:21 बजे तक है।

वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में संघ मुख्यालय में शनिवार को विजयादशमी के अवसर पर शस्त्र पूजा की। इस मौके पर मोहन भागवत ने बांग्लादेश, कोलकाता रेप-मर्डर, देश में बढ़ती हिंसक घटनाओं, इजराइल-हमास युद्ध और जुलूसों पर पथराव जैसे मुद्दों पर बात की। संघ प्रमुख ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमला हो रहा है। वक्त की मांग यह है कि उन्हें न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया से मदद मिलनी चाहिए। भागवत ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर के रेप और मर्डर पर भी बात की। उन्होंने कहा कि यह समाज की सबसे शर्मनाक घटना है। भागवत ने 2024 में संघ के स्थापना दिवस के शताब्दी वर्ष में पहुंचने पर भी चर्चा की। संघ विजयादशमी पर अपना स्थापना दिवस मनाता है। 1925 में विजयादशी के दिन डॉ. बलराम कृष्ण हेडगेवार ने इसकी शुरुआत की थी।

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देश के इन शहरों में हर साल दशहरा देखने के लिए उमड़ती है भारी भीड़

पूरे देश भर में दशहरा धूमधाम के साथ मनाया जाता है लेकिन कुछ जगह इ त्योहार पर भारी भीड़ में उमड़ती है। कर्नाटक राज्य के मैसूर में दशहरा पर अलग नजर दिखाई देता है। बुराई पर सत्य की जीत का जश्न मनाने वाला एक शाही त्योहार है।

दशहरा इस क्षेत्र में 10 दिनों का त्योहार है, जिसका समापन विजयादशमी या दसवें दिन होता है। इस त्योहार की जड़ें वाडियार राजवंश से जुड़ी हैं, जिसने 16वीं शताब्दी में मैसूर में दशहरा मनाने की परंपरा शुरू की थी।मैसूर दशहरा अपने जुलूसों के लिए जाना जाता है, जिसमें विस्तृत रूप से सजे हुए हाथी, पारंपरिक संगीत और विभिन्न सांस्कृतिक प्रदर्शन शामिल होते हैं। यह दुनिया भर से पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित करता है। वाराणसी में दशहरा बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। गंगा के तट पर आयोजित रामनगर की रामलीला सबसे पुराने और सबसे प्रसिद्ध प्रदर्शनों में से एक है। 2008 में, यूनेस्को ने रामनगर की रामलीला को “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत” में से एक घोषित किया। यहाँ उत्सव को विशेष बनाने वाली बात यह है कि पूरा शहर एक खुले-हवा वाले थिएटर में बदल जाता है। यह एक महीने से अधिक समय तक चलता है और एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जहां स्थानीय कलाकार भगवान राम के जीवन को दर्शाते हैं, जिसके बाद रावण के पुतलों का भव्य दहन होता है।

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दिल्ली में दशहरा बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, खास तौर पर रामलीला मैदान और लाल किला मैदान जैसे विभिन्न स्थानों पर आयोजित रामलीला प्रदर्शनों के रूप में। यहाँ मुख्य आकर्षण रावण के विशाल पुतलों के साथ-साथ उसके बेटे मेघनाद और भाई कुंभकरण के पुतलों का दहन होता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। दिल्ली में, प्रत्येक इलाके में अपनी रामलीला का आयोजन भी किया जाता है, जिससे पूरे शहर में उत्सव का माहौल बन जाता है। कोटा अपने दशहरा मेले के लिए प्रसिद्ध है, यह एक भव्य उत्सव है जिसमें धार्मिक अनुष्ठान और सांस्कृतिक कार्यक्रम दोनों शामिल होते हैं। हर साल, हज़ारों लोग शहर के प्रसिद्ध दशहरा मेला मैदान में इकट्ठा होते हैं, जहाँ भव्य मेला लगता है। कोटा दशहरा का मुख्य आकर्षण रावण, उसके भाई कुंभकरण और उसके बेटे मेघनाद के विशाल पुतलों का दहन है। ये पुतले, जो अक्सर कई मंजिल ऊंचे होते हैं, पटाखों से भरे होते हैं और राजा द्वारा जलाए जाते हैं, जिससे रात का आसमान आतिशबाजी और भीड़ के जयकारों से जगमगा उठता है।

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ऐसे ही छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र बस्तर में मनाया जाने वाला बस्तर दशहरा, देश के सबसे लंबे दशहरा त्योहारों में से एक है, जो 45 दिनों से अधिक समय तक चलता है। राम द्वारा रावण को हराने की सामान्य कथा के विपरीत, इस त्योहार का रामायण से कोई संबंध नहीं है। इसके बजाय, यह बस्तर की स्थानीय देवी दंतेश्वरी और अन्य आदिवासी देवी-देवताओं की पूजा के लिए समर्पित है। बस्तर दशहरा का सांस्कृतिक महत्व बस्तर की विविध जनजातियों को एकजुट करने की इसकी क्षमता में निहित है, जो भक्ति और सामुदायिक भावना के भव्य उत्सव में अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों, संगीत और नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। नासिक में दशहरा अपने भव्य दशहरा समारोहों के लिए प्रसिद्ध है। लोग भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को गोदावरी नदी में विसर्जित करने के लिए शहर के प्रसिद्ध रामकुंड घाट पर इकट्ठा होते हैं।

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दस दिवसीय उत्सव में जुलूस, सांस्कृतिक कार्यक्रम और रंग-बिरंगी रंगोली की सजावट शामिल है। मुख्य आकर्षण रावण दहन है, जहाँ रावण के विशाल पुतले को आग के हवाले किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। वहीं हर साल, भगवान राम की जन्मभूमि मानी जाने वाली अयोध्या नगरी दशहरा के अवसर पर जीवंत उत्सव के साथ जीवंत हो उठती है। शहर का रावण दहन उत्सव किसी भी अन्य से अलग तमाशा होता है, जो दुनिया भर से लाखों भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। शहर को रंग-बिरंगी सजावट से सजाया जाता है, और विभिन्न स्थानों पर रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतले बनाए जाते हैं।

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