नैतिक मूल्यों के साथ सामुदायिक कल्याण (community welfare) पर जोर
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
चुनाव की धुकड़-धुकड़ में सन्नाटा-सा छाया है! ‘लोकतंत्र के पर्व’ की दाल केवल चुनावी भट्ठी में ही गलती है! कृषि-प्रधानता छोड़, देश चुनाव-प्रधान हो गया है, इसलिए बारहों महीने रात-दिन चुनावी रणनीतियां बनती रहती हैं। देश किसी भी अभाव में चल सकता है, लोकतंत्र के बिना नहीं! मगर स्वतंत्रता के बाद देश के भीतर विवादों और अलगाववाद के किले खड़े करते-करते लोकतंत्र स्वयं लड़खड़ाने लगा है और अपना जीवंत विकल्प मांगने लगा है। संयोग है कि इसी बीच राष्ट्रीय परिषद की बैठक में भाजपा ने अयोध्या के राम मंदिर को देश के लिए “ऐतिहासिक और अनुपम उपलब्धि” बताते हुए नए कालचक्र के श्रीगणेश के साथ भारत में अगले एक हजार वर्षों के लिए रामराज्य की स्थापना का एक संकल्प पारित किया है।
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भारत की समृद्धि से भरी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धारा में शासन प्रबंधन के दो मॉडल प्रकट होते हैं : लोकतंत्र और रामराज्य। लोकतंत्र को स्वतंत्रता और समानता के प्रकाश के रूप में पूजा गया है। दूसरी ओर, रामराज्य मूल रूप से भारतीय संस्कृति की सच्ची आत्मा को प्रतिष्ठित करता है तथा एक समरस और आदर्श शासन व्यवस्था प्रदान करता है। लोकतंत्र से जुड़े खतरों की गहरी पड़ताल करें, तो भारतीय संदर्भ में रामराज्य एक उपयुक्त और सार्थक विकल्प के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत होता है। लोकतंत्र वैश्विक रूप से अपनाए जाने वाली राजनीतिक व्यवस्थाओं में से एक है, जिसे आदर्श शासन व्यवस्था माना जाता है और सैद्धांतिक रूप से यह आदर्श व्यवस्था है भी। लेकिन समय का पहिया घूमता है और किसी व्यवस्था में बाह्य तत्वों का शनैः शनैः अतिक्रमण उसे निर्मूल कर देता है। यही लोकतंत्र के साथ भी हुआ है और निरंतर हो रहा है।
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स्वयं को लोकतंत्र का संरक्षक मानने वाले पश्चिमी और यूरोपीय देशों के लोकतंत्र में गैर-लोकतांत्रिक तत्वों का प्रदूषण इस हद तक फैल चुका है कि वह दिन दूर नहीं, जब इन देशों के मूल नागरिक इस पर पछताएंगे। भारत में लोकतंत्र-प्रदत्त स्वच्छंदता से भौगोलिक और सामाजिक-सांस्कृतिक विघटन की प्रक्रियाओं को ऑक्सीजन देने के लिए क्या जतन किए जा रहे हैं, इसका अनुमान कुछ राजनीतिक दलों, सामाजिक-मजहबी समूहों और व्यक्तियों के नित आने वाले वक्तव्यों से लगाया जा सकता है। भय, हिंसा, अशांति, अनैतिकता, भ्रष्टाचार, विषाक्त भाषा,
धमकियां, अलगाववाद, देशद्रोह, और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रदूषण सब लोकतंत्र की कोख में पलते हैं। लोकतंत्र में स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, अभिव्यक्ति, शोषण, अधिकार आदि सब पर्यायवाची-से बन गए हैं! लोकतंत्र अब कोई पवित्र गाय नहीं रह गया है, जिसे प्यार से पाला-पोसा जाए और जिस पर गर्व किया जाए।
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इसके स्थान पर हम उस आदर्श शासन प्रणाली की ओर लौटें, जो सदियों से भारतीय मानस की रग-रग में जिंदा है और जिसकी कल्पना मात्र से ही हमारा रोम-रोम रोमांचित हो उठता है, जिसे हम रामराज्य कहते हैं। रामराज्य का अवतरण प्राचीन हिंदू शास्त्रों में होता है, विशेषकर रामायण में, जहां भगवान राम को न्यायपूर्ण और दयालु शासक के रूप में दिखाया जाता है, जिनके राज्य में सभी एक ही संस्कृति की छाया में रहते हैं, सब बराबर हैं, सब सुखी हैं, सब संपन्न, संतुष्ट और प्रफुल्लित हैं।रामराज्य धर्म, न्याय और करुणा के सिद्धांतों को अभिव्यक्त करता है। इसने समाज कल्याण को प्राथमिकता देने वाले दृष्टिकोण को विकसित किया है। नैतिकता और नैतिक शासन पर जोर देने से रामराज्य को भारतीय मूल्यों की अभिव्यक्ति के रूप में उठाया जाता है। रामराज्य सामुदायिक कल्याण को सुनिश्चित करने पर जोर देता है। नीतियां और निर्णय सभी नागरिकों के कल्याण के प्रति दायित्व और समर्पण की भावना के आधार पर मार्गदर्शित होते हैं।
शासन के जटिल परिदृश्य का सामना करते हुए, भारत स्वयं को जनतंत्र और रामराज्य के वादों और चुनौतियों के बीच फंसा पाता है। रामराज्य, जिसमें सामंजस्य, नैतिक नेतृत्व और सामुदायिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित है, एक प्रेरणादायक विकल्प के रूप में प्रकट होता है, जो भारतीय सभ्यता के मूल्यों का समर्थन करता है। जनतंत्रीय तत्वों और रामराज्य में समाहित शासन-गुणों के बीच संतुलन स्थापित करने से भारत जैसे विविध संस्कृति-संपन्न राष्ट्र के सामने आईं विशेष चुनौतियों का सामना करने का मार्ग खुल सकता है।आज व्यक्ति एवं समाज में सांप्रदायिकता,
जातीयता भाषावाद, हिसा, अलगाववाद की संकीर्ण भावनाओं व समस्याओं के मूल में नैतिक मूल्यों का पतन ही उत्तरदायी कारण है।
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वास्तव में नैतिक गुणों की कोई सूची नहीं बनाई जा सकती परंतु हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि मनुष्य में अच्छे गुणों को हम नैतिक कह सकते हैं, जो व्यक्ति के स्वयं के विकास और कल्याण के साथ दूसरों के कल्याण में भी सहायक हो। नैतिक मूल्यों का समावेश जीवन के सभी क्षेत्रों में होता है। व्यक्ति परिवार, समुदाय, समाज, राष्ट्र से मानवता तक नैतिक मूल्यों की यात्रा होती है। नैतिकता समाज में सामाजिक जीवन को सुगम बनाती है। उन्होंने बताया कि मानव को सामाजिक प्राणी होने के नाते कुछ सामाजिक नीतियों का पालन करना पड़ता है जिनमें संस्कार, सत्य, परोपकार, अहिसा आदि शामिल है। वास्तव में ये सभी नैतिक गुणों में आते हैं और बच्चों को इन्हें बचपन से ही धारण कर लेना चाहिए ताकि अच्छे परिवार, समाज, राष्ट्र का निर्माण हो सके। उन्होंने बच्चों को उच्च श्रेणी की शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की शिक्षा को भी अवधारण करने के लिए प्रेरित किया तथा अपने बुजुर्गों, अध्यापकों व अपने सभी सगे-संबंधियों का आदर करने की अपील की। उनसे अनुरोध किया कि वे अपने जीवन में कामयाब इंसान के साथ-साथ एक अच्छे इंसान बनें अच्छे भारत के निर्माण में वे अपना योगदान दे सकें। उन्होंने बच्चों से खासकर अपील की कि वे अपने दादा-दादी के साथ समय अवश्य बिताएं तथा उनका अनुभव का लाभ उठाकर अपने जीवन को सफल बनाए। नैतिक मूल्य और संस्कार हमारा जीवन संवारते हैं।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )