Fooldeyi : उत्तराखंड में आज फूलदेई की धूम, एक ऐसा लोकपर्व जो प्रकृति से जुड़े होने के साथ मन को देता है सुकून, जानिए इसका पौराणिक महत्व
देहरादून/मुख्यधारा
उत्तराखंड देवभूमि के लोगों के लिए बहुत ही खास दिन है। खास दिन इसलिए है कि आज देवभूमि का लोक पर्व फूलदेई धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है।
उत्तराखंड का यह एक ऐसा त्योहार है जो प्रकृति पर समर्पित है। वहीं दूसरी ओर आज धामी सरकार अपना बजट भी पेश करने जा रही है। बजट को लेकर प्रदेश के लोगों खासतौर पर युवाओं और महिलाओं को भी बेसब्री से इंतजार है। बजट पेश करने को लेकर धामी सरकार उत्साहित है।
अब आइए जानते हैं उत्तराखंड के लोक पर्व फूलदेई के बारे में। यह त्योहार मन को हर्षोल्लास से भर देता है।
इस त्योहार में प्रफुल्लित मन से बच्चे हिस्सा लेते हैं और बड़ों को भी अत्यधिक संतोष मिलता है। यह त्योहार लोकगीतों, मान्यताओं और परंपराओं से जुड़ने का भी एक अच्छा अवसर प्रदान करता है और संस्कृति से जुड़े रहने की प्रेरणा भी देता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने से ही नववर्ष होता है। नववर्ष के स्वागत के लिए कई तरह के फूल खिलते हैं। उत्तराखंड में चैत्र मास की संक्रांति अर्थात पहले दिन से ही बसंत आगमन की खुशी में फूलों का त्योहार फूलदेई मनाया जाता है।
बच्चे फ्यूंली, बुरांश और बासिंग के पीले, लाल, सफेद रंगों के मनभावन फूलों से घर-आंगन सजाते हैं। और फूल देई, छम्मा देई लोकगीत गाते हैं। पूरे उत्तराखंड में चैत्र महीने के शुरू होते ही कई तरह के फूल खिल जाते हैं। इनमें फ्यूंली, लाई, ग्वीर्याल, किनगोड़, हिसर, बुरांस आदि प्रमुख हैं।
चैत्र संक्रांति से छोटे-छोटे बच्चे हाथों में कैंणी (बारीक बांस की डलिया) में फूल रखकर लोगों के घरों के दरवाजे-मंदिरों के बाहर रखते है। फूलों को घरों के बाहर रखने के पीछे शुभ की कामना है। घरों में कुशलता रहे और लोग स्वस्थ रहे, इस भावना से ऐसा किया जाता है।
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फूलदेई का त्योहार उत्तराखंडी समाज के लिए विशेष पारंपरिक महत्व रखता है। चैत्र की संक्रांति यानि फूल संक्रांति से शुरू होकर इस पूरे महीने घरों की देहरी पर फूल डाले जाते हैं।
इसी को गढ़वाल में फूल संग्राद और कुमाऊं में फूलदेई पर्व कहा जाता है। जबकि, फूल डालने वाले बच्चों को फुलारी कहते हैं। बसंत ऋतु के स्वागत के तौर पर भी फूलदेई पर्व मनाया जाता है।
यह पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है। इन दिनों पहाड़ों में जंगली फूलों की भी बहार रहती है। चारों ओर छाई हरियाली और कई प्रकार के खिले फूल प्रकृति की खूबसूरती में चार-चांद लगाते हैं।
पर्व के अवसर पर छोटे-छोटे बच्चे सूर्योदय के साथ ही घर-घर की देहली पर रंग-बिरंगे फूल को बिखेरते घर की खुशहाली, सुख-शांति की कामना के गीत गाते हैं। जिसके बाद घर के लोग बच्चों की डलिया में गुड़, चावल और पैसे डालते हैं।
यह पर्व पर्वतीय परंपरा में बेटियों की पूजा, समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। फूलदेई त्योहार मनाने के पीछे की मान्यता पुराणों में है। मान्यता के अनुसार, शिवजी शीतकाल में तपस्या में लीन थे और इस दौरान कई साल बीत गए। बहुत से मौसम आकर गुजर गए लेकिन भगवान शिव की तपस्या नहीं टूटी। कई साल शिव के तपस्या में लीन होने की वजह से बेमौसमी हो गए थे। आखिर मां पार्वती ने युक्ति निकाली थी। कैंणी में फ्योली के पीले फूल खिलने के कारण सभी शिव गणों को पीताम्बरी जामा पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरुप दे दिया था, फिर सभी से कहा कि वह देवक्यारियों से ऐसे पुष्प चुन लाएं जिनकी खुशबू पूरे कैलाश को महकाए।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, शिवजी की तपस्या भंग करने के लिए सब गणों ने पीले वस्त्र पहनकर सुंगधित फूलों की डाल सजाई और कैलाश पहुंच गए। शिवजी के तंद्रालीन मुद्रा को फूल चढ़ाए गए थे। साथ में सभी एक सुर में आदिदेव महादेव से उनकी तपस्या में बाधा डालने के लिए क्षमा मांगते हुए कहने लगे- फुलदेई क्षमा देई, भर भंकार तेरे द्वार आए महाराज। शिव की तपस्या टूटी और बच्चों को देखकर उनका गुस्सा शांत हुआ और वे प्रसन्न मन से इस त्यौहार में शामिल हुए थे।
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने फूलदेई पर्व की प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने फूलदेई पर्व की प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी है।
अपने सन्देश में मुख्यमंत्री ने कहा कि देवभूमि उत्तराखण्ड में मनाया जाने वाला लोकपर्व ‘फूलदेई’ हमारी संस्कृति को उजागर करता है। साथ ही यह पर्व पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हुए है।
मुख्यमंत्री ने ईश्वर से कामना की है कि हमारा यह पर्व सबके जीवन में सुख समृद्धि एवं खुशहाली लाए।
उन्होंने कहा कि किसी राज्य की संस्कृति एवं परंपराओं की पहचान में लोक पर्वों की अहम भूमिका होती है। हमें अपने लोक पर्वों एवं लोक परम्पराओं को आगे बढ़ाने की दिशा में लागातार प्रयास करने होंगे।
भराड़ीसैंण में बच्चों ने मंत्री गणेश जोशी से मुलाकात कर फूलदेई का पर्व मनाया
उत्तराखंड के लोकपर्व फूलदेई के अवसर पर आज भराड़ीसैंण में राजकीय इंटर कॉलेज, भराड़ीसैंण के बच्चों ने फूलदेई के अवसर पर मंत्री गणेश जोशी से मुलाकात की।
बच्चों ने फूलदेई, छम्मा देई, देणी द्वार, भर भकार जैसे मांगल गीतों के साथ प्रकृति देवी को आभार प्रकट करने का लोकपर्व फूल संक्रांति फूलदेई का पर्व के फूलदेई के गीत और मंगल गीत भी गाये। कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने भी बच्चों के साथ प्रकृति का आभार प्रकट करने वाला लोक पर्व फूलदेई मनाया।
मंत्री गणेश जोशी ने प्रकृति के त्योहार की बच्चों को बधाई देते हुए कहा कि प्रकृति संरक्षण हमारी संस्कृति में है। मंत्री ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि हर्ष की बात है कि हमारे बच्चों में अपनी संस्कृति और परंपराओं से लगाव बना हुआ है। उन्होंने ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति को संजोकर रखने की जरूरत है।
मंत्री ने कहा प्रकृति के इस त्योहार को संजोए रखने के लिए सबको मिलकर प्रयास करने होंगे।
इस दौरान कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने भगवान से कामना की कि वसंत ऋतु का यह पर्व सबके जीवन में सुख समृद्धि एवं खुशहाली लाए। इस अवसर पर प्रदेशवासियों को फूलदेई की बधाई एवं शुभकामनाएं भी दी।