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गढ़वाली फिल्म “कन्यादान” जल्द सिनेमाघरों में

admin
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जाति-पाति एवं फौज की नौकरी पर बनी गढ़वाली फिल्म “कन्यादान” जल्द सिनेमाघरों में होगी उपलब्ध 

उत्तराखंड सिनेमा के इस उतार चढाव के दौर में अभी भी अपनी संस्कृति एवं सिनेमा के लिए फिल्म मेकर्स सक्रिय हैं l उत्तराखंड सिनेमा के दिग्गज कलाकार एवं निर्देशक देबू रावत एवं सह निर्देशक आशु चौहान के निर्देशन में त्रियुगीनारायण, मालदेवता, चोपता, ओली, अगस्तमुनि की वादियों मे बनी फीचर फिल्म “कन्यादान ” बहुत जल्द आपको सिनेमाघरों पर देखने को मिलेगी।

यह फिल्म जातिप्रथा पर आधारित एक पारिवारिक फिल्म है, जिसमें एक लोहार के परिवार का संघर्ष दिखाया गया हैl फिल्म की पटकथा खुद निर्देशक देबू रावत द्वारा लिखी गयी है और फिल्म में कई मंझे हुए कलाकार राजेश मालगुडी, रमेश रावत, गीता उनियाल, मदन दुकलान, राजेश नौगाई, गौरव गैरोला, निशा भंडारी अपनी कला का हुनर दिखायेंगे। वहीँ कैमरे पर मनोज सती होंगेl पिछले एक दशक में फीचर फिल्मों के निर्माण का दौर शुरू हुआ। भले ही शुरुवात धीमी है, लेकिन एक बार फिर उत्तराखंड सिनेमा जगत में हलचल बढ़ गयी हैl

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आज समय के साथ उत्तराखंड के युवा अपनी संस्कृति व बोली भाषा के प्रति काफी जागरूक दिख रहे हैं, किंतु अपनी भाषा में बनी फिल्मों के लिए उनमें वो क्रेज नहीं है, जो अन्य क्षेत्रीय भाषा के लोगों का है। क्षेत्रीय भाषाओं में फिल्में बनाने का मकसद यही होता है कि अपने लोग ज्यादा से ज्यादा अपनी संस्कृति व भाषा को जान सकें। आज ऐसी ही एक फ़िल्म कन्यादान के विषय में हम आपको बताने जा रहे हैं, जो पहाड़ के उस सिपाही की कहानी है। जो फौज की नौकरी में बॉर्डर पर है और पीछे से उसकी पत्नी छोटी सी अपनी बेटी को छोड़ इस संसार से विदा हो जाती है, पर पिता घर नहीं आ पाते। ऐसे में बच्ची के दादा उसके भविष्य के लिए उसे उसकी बुआ के घर छोड़ने जाते हैं, किंतु नियति को तो कुछ और ही मंजूर है। रास्ते मे दादाजी एक पत्थर से टकराते हैं और गिर कर वहीं परलोक सिधार जाते हैं। बच्ची छिटकर कर कहीं दूर गिर जाती है।

वहीं कहीं पास ही किसी लुहार का घर है, जो बच्ची के रोने की आवाज सुनकर उस तरफ जाते हैं और बच्ची को अकेला पाकर उसे अपने घर ले आते हैं। उसका पालन पोषण करने लगते हैं। उसके राजपूत पिता को पता लगता है कि उसका परिवार सारा ही खत्म हो चुका है तो वो घर नहीं आता। लड़की बड़ी होती है तो उसे एक राजपूत लड़के से प्यार हो जाता है। बस यहीं से फ़िल्म क्लाइमेक्स में जाती है। आगे क्या होगा ये जानने के लिए आपको सिनेमा हॉल में जाकर फ़िल्म देखनी होगी। जाति-पाति का बेहतरीन चित्रण और फौजी के विकट जीवन पर आधारित यह फ़िल्म बहुत ही बेहतरीन है।

(साभार: बाबा केदार)

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