सरकार को पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (ecosystem services) का अनुमान विशेषज्ञ एजेंसी की तलाश
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
प्रदेश सरकार विशेषज्ञ एजेंसी के माध्यम से यह पता लगाएगी कि राज्य के ग्लेशियर, नदियों, बुग्यालों व अन्य प्राकृतिक संसाधनों से देश को कितनी राशि की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं दी जा रही हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार, उत्तराखंड के जंगलों, ग्लेशियर, घास के मैदानों और
नदियों से प्रदान हो रही पारिस्थितिकी तंत्र सेवा का मौद्रिक मूल्य लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष है। इसका पता लगाने के लिए सरकार ने एजेंसी का चयन करने की कवायद शुरू कर दी है। यह पूरी कसरत 16वें वित्त आयोग के लिए की जा रही है ताकि जब वह राज्य में आए
तो उसके सामने राज्य को ग्रीन बोनस दिलाने की मजबूत पैरवी की जा सके। नियोजन विभाग के सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी एंड गुड गवर्नेंस (सीपीपीजीजी) इसकी योजना बना रहा है।एजेंसी राज्य को हर साल जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले नुकसान का भी आकलन करेगी।
इस विषय पर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार होगी जिसे 16वें वित्त आयोग के समक्ष रखा जाएगा।
15वें आयोग का कार्यकाल वर्ष 2025-26 में समाप्त हो रहा है। नियोजन विभाग राज्य के वनों से देश को प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का आकलन करा चुका है। वर्ष 2018 में भारतीय वानिकी प्रबंधन संस्थान (आईआईएफएम) से यह अध्ययन व मूल्यांकन कराया गया था। इसके मुताबिक, राज्य के वनों से देश को हर साल 95 हजार करोड़ की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्राप्त हो रही हैं। जब एनके सिंह की अध्यक्षता में 15वां वित्त आयोग राज्य में आया था, तब राज्य सरकार ने पर्यावरणीय सेवाओं के एवज में ग्रीन बोनस की पैरवी में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के कराए गए अध्ययन और आकलन रिपोर्ट के जरिये तर्कसंगत और वैज्ञानिक पक्ष रखा था। तब आयोग ने केंद्र से उत्तराखंड को पांच साल की अवधि के लिए 89,845 करोड़ रुपये देने की सिफारिश की थी। 14वें वित्त आयोग की तुलना में हुई बढ़ोतरी की वजह इको सेवाओं के लिए की गई मजबूत पैरवी को भी माना गया।
उत्तराखंड वर्ष 2021 में अपने वन संसाधनों के मौद्रिक मूल्य की गणना करने और उनके सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) का निर्धारण करने वाला पहला राज्य था। राज्य में 24,305 वर्ग किमी का वन क्षेत्र है। उत्तराखंड में 1439 ग्लेशियर हैं जो अनुमानित 4060 वर्ग किमी क्षेत्र को कवर करते हैं। ग्लेशियर, नदियों, घास के मैदानों से प्रदान की जाने वाली परिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को निर्धारित किया जाएगा। इसके लिए एजेंसी नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। रुचि की अभिव्यक्ति (ईओआई) पहले ही जारी की जा चुकी है। प्रस्ताव के लिए अनुरोध (आरएफपी) जल्द ही जारी किया जाएगा। विकासात्मक परियोजनाओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन भी किया जाएगा। अलग-अलग मोटाई के कारण हिमनदों के मलबे को मापना आमतौर पर मुश्किल होता है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह हिमनदों के पिघलने को प्रभावित कर सकता है मलबे की एक पतली परत पिघलने की गति बढ़ा सकती है, जबकि एक मोटी परत इसे रोक सकती है और इसे कम कर सकती है। देश भले ही छोटा हो, लेकिन बात बहुत बड़ी थी। इसलिए इस सुझाव को 70 से अधिक देशों ने अपना समर्थन दिया।
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संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तत्काल एक प्रस्ताव पारित करके 2021-2030 की अवधि को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण पुनरुद्धार दशक के रूप में मनाने की घोषणा की। पारिस्थितिकी तंत्र यानी इकोसिस्टम में सभी जीवधारियों, वनस्पतियों और सूक्ष्म जीवों की विभिन्न प्रजातियों का सह-अस्तित्व होता है। यह तंत्र इस पृथ्वी पर सभी प्रकार के जीवन का आधार है। जंगल, पहाड़, नदियां, झील, तालाब, समुद्र, कृषि भूमि-ये सभी विविधताएं एक स्वस्थ और संपन्न मानव जीवन की प्राण शक्तियां हैं वर्तमान में प्राकृतिक संसाधनों की जितनी आवश्यकता उत्पन्न हो गई है, उसके लिए अब एक पृथ्वी पर्याप्त नहीं है, बल्कि 1.6 पृथ्वी की आवश्यकता है। यदि स्थिति ऐसी ही रही तो वर्ष 2050 से पहले ही हमें दो पृथ्वी की आवश्यकता होगी। पारिस्थितिकी तंत्र में हुई क्षति का अर्थ यह नहीं कि मनुष्य अपने क्रिया-कलापों को रोक दे और हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाए। अच्छी बात यह है कि पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार किया जा सकता है।
विगत तीन दशकों में पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न घटकों जैसे वनों, चरागाहों, नदियों, महानगरों और शहरी आवास आदि के बेहतर रख-रखाव की अनेक विधियां विकसित हुई हैं। इसके साथ ही स्वच्छ ऊर्जा स्नोतों, हरित गैसों के उत्सर्जन में कटौती, कचरा प्रबंधन, मृदा संरक्षण, बीज
विज्ञान जैसे विषयों को भी महत्व दिया जा रहा है। पारिस्थितिकी तंत्र के पुनरुद्धार के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित दशक के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, खाद्य एवं कृषि संगठन, अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ जैसी प्रमुख संस्थाओं ने मिलकर
रणनीति तैयार की है। इसमें मापनीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सभी हितधारकों की निरंतर भागीदारी पर बल दिया गया है। पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार एक निरंतर एवं दीर्घकालिक प्रक्रिया है।
भारत में इसके लिए कई कानून बनाए गए हैं और उनके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण की भी स्थापना की गई है। पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न घटकों के लिए समय-समय पर उठाए गए कदमों में सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना है। उल्लेखनीय यह भी है कि इस दशक का अंतिम वर्ष 2030 संयुक्त राष्ट्र द्वारा पूर्व घोषित 15 वर्षीय सतत विकास उद्देश्यों का भी समापन वर्ष है। वर्तमान दशक दुनिया के कायाकल्प करने का निर्णायक दशक है। इस दशक की स्थितियां ही आगामी दशकों में हमारे जीवन को निर्धारित करेंगी। यह दशक सभी के लिए है, जिसमें सरकार और समुदायों से लेकर आम लोगों को भी अपनी सार्थक भूमिका निभानी होगी।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )