देहरादून/मुख्यधारा
देवभूमि उत्तराखंड अपनी विविधताओं के लिए जाना जाता है। जिस प्रकार से यहां के लोगों का रहन सहन है, वैसे ही यहां के लोगों का खान पान भी है।
यही खानपान यहां के लोगों को स्वस्थ रहने का राज हैं। आज हम बात कर रहें हैं चौलाई की, जिसे रामदाना या राजगिरा भी कहते हैं। यह उत्तराखंड के अधिकतर पर्वतीय क्षेत्रों में होता है, जिसका प्रयोग लड्डू, खीर, आटा, रोटी और भी बहुत सी चीजें बनाने में किया जाता है।
ग्रामीण प्रवेश में पले पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ. त्रिलोक चंद्र सोनी का कहना हैं प्रकृति ने हमारे पहाड़ी उत्पादों में ही हमें पौष्टिक आहार दिया है। जिसमें चौलाई भी एक है। इसमें आयरन, कैल्शियम और प्रोटीन की भरपूर मात्रा होता है।
चौलाई में कई पोषक तत्व होते है, जो कई बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है। चौलाई का आटा प्रोटीन और मिनरल्स का अच्छा स्रोत है, जिसके पत्ते की सब्जी बनाई जाती है। मिनरल्स, विटामिन्स, फोलेट, आयरन और सेलेनियम आदि पोषक तत्वों से भरपूर चौलाई पेट और त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होती है। इसके सेवन से शरीर किसी भी तरह के इंफेक्शन से लड़ने के लिए तैयार हो जाता हैं।
पहाड़ों में लाल मैरून व क्रीम कलर की चौलाई पाई जाती है, जिसमें विटामिन सी, ए, फोलेट, जिंक और विटामिन ई होता है, जो इम्यूनिटी बूस्टर है। यही नहीं पहाड़ों में पल्टी, फाफर, चिणा, तोरई भी होती हैं, जो शरीर के लिए बहुत ही लाभकारी है।
ये फसलें हमारे रोजगार के स्रोत भी हैं। आज जरूरत है तो इन्हें बढ़ावा देने की, ताकि ऐसे पौष्टिक बूस्टर आहार को बाजार मिल सके।
कार्यक्रम में केदार राम, दर्वान राम, चमन लाल, गोविंद राम सोनी, हरीश सोनी, बिजेंद्रजीत सोनी, राजेन्द्रराम, प्रदीप, दिनेश चंद्र, महाबीर, मदनराम, भुवनराम, सचिव कुमार, संजय, बचनीराम आदि थे।