विदेश में नौकरी का अवसर : कंस्ट्रक्शन सेक्टर में इजराइल को छह भारतीय कामगारों की जरूरत, इजराइली सरकार ने जारी किया बयान
मुख्यधारा डेस्क
जो भारतीय कामगार विदेशों में रोजगार के लिए जाना चाहते हैं उनके लिए अच्छी खबर है। भारत का मित्र देश इजराइल श्रमिकों (लेबर) की आवश्यकता है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पंजाब समेत कई राज्यों से भारत के बेरोजगार युवा विदेशों में काम के लिए जाते हैं। अब इजराइल भारतीय लोगों को अपने यहां बुला रहा है।
बात को आगे बढ़ाने से पहले बता दें कि हाल के कुछ वर्षों से भारत और इजरायल रिश्ते खूब मजबूत हुए हैं। इजराइल के लोग भी भारत के लोगों को पसंद करते हैं। दुनिया में एक यही ऐसा देश है जो (यहूदी बाहुल्य) माना जाता है। भारत में भी मुंबई, केरल और नॉर्थ ईस्ट के रज्यों में भी यहूदी समुदाय के लोग रहते हैं। इजराइल में लेबर क्लास के रूप में काम करने को भी अच्छी खासी सैलरी मिलती है। इसी वजह से भारत में तमाम देशों के नागरिक इजराइल में काम कर रहे हैं। इजराइल-हमास में छह महीने से जारी जंग के बीच अगले दो महीने में 6 हजार भारतीय इजराइल जाएंगे। वे यहां लेबर्स की कमी पूरी करेंगे।
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दिसंबर में करीब 800 से ज्यादा भारतीय नौकरी के लिए इजराइल पहुंचे थे। इनमें से ज्यादातर केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश के थे।
इजराइल सरकार ने बुधवार देर रात बयान जारी कर इसकी जानकारी दी है। इस बयान में कहा गया है कि इजराइली प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), वित्त मंत्रालय और निर्माण और आवास मंत्रालय द्वारा चार्टर उड़ानों पर सब्सिडी देने के निर्णय के बाद श्रमिकों को एयर शटल से इजराइल लाने के फैसले पर मुहर लगी है। इजराइली सरकार ने कहा, यह इजराइल में कंस्ट्रक्शन सेक्टर के लिए कम समय में पहुंचने वाले विदेशी श्रमिकों की सबसे बड़ी संख्या है।
आपको बता दें कि युद्ध से पहले इजराइल में लगभग 1 लाख मजदूर गाजा और वेस्ट बैंक के थे। लेकिन जंग शुरू होने के बाद इन मजदूरों का वर्किंग परमिट कैंसिल हो गया। इससे इजराइल में मजदूरों की भारी कमी हो गई, जिस वजह से कई परियोजनाएं रुक गई। इससे पहले पिछले मंगलवार को भारत से 64 श्रमिक इजराइल पहुंचे थे। अप्रैल के मध्य तक कुल 850 मजदूर इजराइल पहुंच जाएंगे। इस समय करीब 18,000 भारतीय मजदूर इजराइल में कार्यरत हैं। मई 2023 में हुए समझौते के तहत 42 हजार भारतीय कामगार इजराइल में काम करने जाने वाले थे। दिसंबर में जंग को लेकर इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने पीएम मोदी से फोन पर बात की थी। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच भारतीय लेबर को इजराइल भेजने के एग्रीमेंट में तेजी लाने पर सहमति बनी थी।
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बता दें कि 7 अक्टूबर को इजराइल-हमास जंग शुरू होने के बाद इजराइल ने वहां काम कर रहे फिलिस्तीनियों का वर्क परमिट खारिज कर दिया। इजराइल की कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में उस वक्त करीब 80 हजार फिलिस्तीनी लेबर काम करती थी। उनके जाने के बाद इजराइल में लेबर की कमी होने लगी।
साल 1948 में फिलिस्तीन को तोड़कर इजराइल अलग देश बना था
बता दें कि 1948 में फिलीस्तीन को तोड़कर ही इजराइल बना। तकरीबन ढाई साल भारत ने इसे अलग देश के तौर पर मान्यता दे दी। कुल जमीन का 44% हिस्सा इजराइल और 48% फिलीस्तीन के हिस्से आया। 8% जमीन का टुकड़ा हासिल करके यरूशलम यूएन की निगेहबानी में आ गया। इजराइल ने ताकत के दम पर फिलीस्तीन की 36% जमीन हथिया ली। आज फिलीस्तीन के पास महज 12% जमीन है और उसमें भी दो टुकड़े हैं- वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी। वेस्ट बैंक शांत है और यहां फिलीस्तीनी सरकार का शासन है। गाजा पट्टी पिछले दिनों की तरह अकसर इजराइल के खिलाफ गुस्से से धधक उठती है, यहां हमास का कब्जा है। इसे इजराइल और पश्चिमी देश आतंकी संगठन बताते हैं। भारत ने कभी हमास की हरकतों का समर्थन नहीं किया, लेकिन वो फिलीस्तीनी सरकार के साथ है। इजराइल टेक्नोलॉजी के मामले में दुनिया की टॉप 5 लिस्ट में शामिल है। अमेरिका और रूस जैसे देश उसके मुरीद हैं। डिफेंस और एग्रीकल्चर सेक्टर में तो इजराइल के दुश्मन भी उसका लोहा मानते हैं। इजराइली ड्रोन और तोपें दुनिया में सबसे खतरनाक माने जाते हैं। अब ये भारत को मिल रहे हैं। एग्रीकल्चर रिसर्च और प्रोडक्शन में इजराइल भारत की काफी सहायता कर रहा है। उसके इरीगेशन सिस्टम को तो बेजोड़ कहा जाता है, 90% वॉटर री-साइकिलिंग होती है। इजराइल और भारत दोनों लोकतांत्रिक देश हैं, और वे एक-दूसरे की कूटनीतिक लक्ष्मण रेखा समझते हैं।
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