गजब उत्तराखंड : जिस राज्य को तनख्वाह देने के लिए लेना पड़ता हो कर्ज, वहां मंत्री आवासों की साज-सज्जा पर करोड़ों कर दिए खर्च - Mukhyadhara

गजब उत्तराखंड : जिस राज्य को तनख्वाह देने के लिए लेना पड़ता हो कर्ज, वहां मंत्री आवासों की साज-सज्जा पर करोड़ों कर दिए खर्च

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मुख्यधारा ब्यूरो
देहरादून। सुनने में अटपटा जरूर है, लेकिन यह सौ फीसदी सच है कि जिस राज्य में अपने कर्मचारियों की तनख्वाह देने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा हो, उस राज्य में मंत्रियों के आवासों की साज-सज्जा और मरम्मत के लिए करीब चार करोड़ रुपए लुटा दिए गए। यह राज्य कोई और नहीं, बल्कि देवभूमि उत्तराखंड है। यह वही राज्य है, जहां प्रत्येक सरकारों में विषम भौगोलिक परिस्थितियों व पहाड़ी हिमालयी प्रदेश होने के नाते केंद्र से जब-तब अतिरिक्त फंड की मांग की जाती रही है।
जी हां, इस बार प्रवीण शर्मा पिन्नी द्वारा लगाई गई एक आरटीआई में ऐसा खुलासा हुआ है, जहां मंत्री आवासों की सजावट और रिपेयरिंग, मॉड्युलरन किचन, पोर्च आदि आधुनिक सुविधाओं के नाम पर करीब चार करोड़ रुपए खर्च किए गए।
इस संबंध में जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी कहते हैं कि एक गरीब प्रदेश, जिससे कर्ज का ब्याज तक नहीं चुकाया जा रहा है, उस प्रदेश में मंत्रियों के 18 आवासों में मॉड्यूलर किचन/ पोर्च/गौशाला आदि बनाने में लगभग 2.45 करोड़ एवं मरम्मत के नाम पर 1.5 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। इस प्रकार कुल 3 करोड़ 96 लाख की भारी भरकम धनराशि यूं ही उड़ा दिए गए। उन्होंने सरकार से मांग की है कि फिजूलखर्ची बंद कर आमजन के कल्याण में पैसा खर्च किया जाए, जिससे उत्तराखंड के हितों की रक्षा हो सके।
सवाल यह है कि पूर्व से ही सुसज्जित इन आवासों/आलीशान बंगलों पर करोड़ों रुपए खर्च करना प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई को क्यों बर्बाद किया जा रहा है? हालांकि आरटीआई दस्तावेजों के अनुसार यह धनराशि वित्तीय वर्ष 2015-16 से लेकर सूचना दिए जाने की तिथि 14 जुलाई 2020 तक खर्च की गई है।

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वर्तमान सत्तारूढ़ भाजपा सरकार से पहले प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। जाहिर है कि उस दौरान के मंत्रियों के आवासों पर भी यह बजट खर्च हुआ होगा। लेकिन जनता की उम्मीदें व अपेक्षाएं वर्तमान की जीरो टोलरेंस की सरकार पर पहले से अधिक हैं, क्योंकि वह फिजूलखर्ची रोकने के फार्मूले पर शुरुआत से ही काम कर रही है। ऐसे में सवाल यह है कि यदि अभी भी गरीब प्रदेश में ऐसी फिजूलखर्ची पर रोक नहीं लगाई जा सके तो आम जनमानस के पास पछताने के सिवाय और कोई चारा हो भी नहीं सकता!

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