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दरारों से सहमा जोशीमठ! एक साल में कितने बदले हालात?

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दरारों से सहमा जोशीमठ! एक साल में कितने बदले हालात?

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

समुद्र तल से करीब 1800 मीटर की ऊंचाई पर बसा बदरीनाथ धाम का प्रवेश द्वार भारत का स्विटजरलैंड कहे जाने वाले औली का भी मुख्य प्रवेशद्वार है। धार्मिक और मौज मस्ती पर्यटन का केंद्र बिंदु बना जोशीमठ देश दुनिया के पर्यटकों के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है तो चीन के निकट होने के कारण इसका सामरिक महत्व भी है। इस शहर में जिंदगी की रफ्तार देश के बाकी और शहरों के साथ ही कदम मिलाते हुए चल रही थी, लेकिन कुछ समय पहले से यहां के घरों में अचानक से कुछ दरारें दिखनी शुरू होती हैं। देखते ही देखते घरों से बाहर सड़कों तक पर इन दरारों का उभरना शुरू हो जाता है। मामूली बात समझकर लोग इन दरारों की मरम्मत करते हैं, लेकिन कुछ ही दिन बाद यह दरारें इस बार कहीं और ज्यादा चौड़ी होकर नमूदार होने लगती हैं। पहले यह दरारें इक्का दुक्का घरों की समस्या के तौर पर सामने आती हैं, लेकिन हर दिन गुजरने के साथ में इसमें कुछ और घरों का ऐसा सिलसिला जुड़ता है कि आज यह पूरे जोशीमठ शहर की समस्या बन गई है।

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जोशीमठ में भू धंसाव के महीने के बाद एक बार फिर से जोशीमठ में जिओ टेक्निकल सर्वे शुरू कर दी गई है। मुंबई बेस नीदरलैंड की फुगरो कंपनी के द्वारा जोशीमठ में सर्वे का काम शुरू कर दिया गया है। सबसे पहले जोशीमठ औली मोटर मार्ग पर सर्वे का काम शुरू किया गया है। नौ नवंबर को सॉयल टेस्टिंग रॉक टेस्टिंग का कार्य शुरू किया गया। भू धंसाव के कारण मकानों व दुकानों में बड़ी-बड़ी दरारें आई थी लेकिन अभी तक कोई भी सुरक्षात्मक कार्य नहीं कराए गए हैं। वर्तमान में हालत यह है कि मकानों व दुकानों के शटर दरवाजे व खिड़कियां भी नहीं खुल पा रही हैं। ग्रामीणों ने वर्षा सीजन से पूर्व प्रशासन से धंसाव का ट्रीटमेंट कराने की मांग की है जोशीमठ मे भू धंसाव के तेजी से बढ़ने और एक वार्ड से आगे बढ़कर नगर के अन्य वार्डों को भी अपनी चपेट मे लेने के कारण जोशीमठ के प्रभावित लोगों ने एकजुट होकर सड़को पर उतरकर संघर्ष शुरू किया, जुलूस/प्रदर्शन, चक्का जाम,बन्द व मशाल जुलूस हुए, लोगों को घरों से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर रखा गया, राहत सामग्रियों की तो बाढ़ सी आ गई थी।

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मुख्यमंत्री के कई दौरे हुए,जांचे शुरू हुई और कुछ निर्णय भी हुए, प्रभावित आवाशीय भवनों का इतना बेहतर मुवावजा दिया गया कि यह देश का पहला उदाहरण भी बना। लेकिन कई मसले अभी भी अनसुलझे रह गए, जिनमें व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के स्लेब, प्रभावित भूमि का मुआवजा एवं मूल निवासियों के हकहकूकों व अस्तित्व का संरक्षण आदि प्रमुख हैं।अब प्रश्न यह है कि सरकार जब इन सब प्रक्रियायों को आगे बढ़ा रही थी तो मूल/पुश्तेनी निवासियों को अपने अस्तित्व व स्वाभिमान की रक्षा के लिए आखिर सड़कों पर उतरने के लिए क्यों विवश होना पड़ा ?  दरसअल 20 जनवरी  2024 भू धंसाव आपदा के एक वर्ष बाद राज्य के आपदा प्रबंधन सचिव जोशीमठ पहुंचते हैं और प्रभावितों की एक बड़ी बैठक मे दो टूक कहते हैं कि भू धंसाव प्रभावित जोशीमठ के हाई रिस्क जोन से 12 सौ  घरों को पहले चरण मे हटाया जाना है, और विस्थापन के लिए बमोथ”गौचर” मे 26 हेक्टेयर भूमि चिन्हित कर ली गई है जहाँ पर जोशीमठ भू धंसाव प्रभावितों को बसाया जाएगा।

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बस इसी दिन से जोशीमठ के मूल/पुश्तेनी निवासियों को अपने अस्तित्व, स्वाभिमान व हकहकूकों को बचाने की चिंता सताने लगी, और यह चिन्ता स्वाभाविक भी थी, क्योंकि जोशीमठ पैनखंडा के कई गांवों के निवासियों ने बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य सुविधाओं को देखते हुए जोशीमठ नगर मे ही भूमि क्रय कर घरों का निर्माण किया,और इनमें अधिकांश लोग जोशीमठ के मूल/पुश्तेनी निवासियों के नाते- रिश्तेदार भी हैं। इन सब लोगों के बसने से शहर का विकास भी हुआ। लेकिन जोशीमठ भू धंसाव के बाद आसपास के गांवों के जिन प्रभावितों को घर खाली करने के निर्देश हुए और  मुवावजे का भुगतान के बाद उन्होंने प्रभावित घरों का सामान अपने मूल गांवों मे  सुरक्षित रख लिया,लेकिन जोशीमठ नगर के मूल/पुश्तेनी निवासियों जिनको पीढ़ियों से बसे बसाए घरों को छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा उन्होंने जोशीमठ मे ही फिलहाल सुरक्षित समझे जाने वाले क्षेत्रों मे किराए का मकान लेकर सामान भी रखा और स्वयं भी गुजर बसर कर रहे हैं, क्योंकि इनका कहीं अन्यत्र मूल स्थान नहीं है जहाँ वो शिफ्ट हो सके।

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जब आपदा प्रबंधन सचिव ने पुनर्वास-विस्थापन पर जोर दिया तो जोशीमठ के मूल/पुश्तेनी निवासियों ने अपने भविष्य, परंपरागत हकहकूक ,जल,जंगल, जमीन, पनघट, मरघट देवस्थलों के साथ मारवाड़ी से लेकर सुनील-गौंख-औली एवं होसी से रविग्राम- रौगढ़-मनोटी  तक भूमि,
भवन,गौशाला को लेकर न केवल चिंतन मनन किया बल्कि कई दौर की बैठकों के बाद मूल/पुश्तेनी निवासियों को एक संगठन बनाने के लिए विवश होना पड़ा, और मूल/पुश्तेनी निवासी स्वाभिमान संगठन के आव्हान पर दो मर्तबा जुलूस/प्रदर्शन हुए, तथा मूल/पुश्तेनी निवासियों की असल समस्या से मुख्यमंत्री से वार्ता कर अवगत कराया गया।

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जोशीमठ नगर के मूल/पुश्तेनी निवासियों का स्पष्ट मत है कि वे किसी भी दशा मे जोशीमठ से विस्थापित नहीं होंगे, उनके पास जोशीमठ मे ही हाईरिस्क जोन से बाहर स्वयं की निजी भूमि उपलब्ध है, और ट्रीटमेंट कार्य होने तक उन्हें उनकी निजी सुरक्षित भूमि पर ही विस्थापित किया जाय तथा जहाँ जहाँ मूल- पुश्तेनी निवासियों की भूमि है वहाँ सड़क, पानी, बिजली, सीवर,व ड्रेनेज की व्यवस्था की जाय। पौराणिक धार्मिक एवं पर्यटन नगरी जोशीमठ को संवारने मे मूल निवासियों के साथ ही हर उस व्यक्ति का महत्वपूर्ण योगदान है जिसने यहाँ अपना ठौर ठिकाना बनाया, हर निवासरत ब्यक्ति ने जोशीमठ के विकास मे कुछ न कुछ योगदान दिया है, लेकिन कुछ परंपरागत हकहकूक भी होते हैं जो हर किसी के अपने मूल गांव मे सुरक्षित रहते हैं।

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जोशीमठ नगर के मूल/पुश्तेनी निवासियों ने भी अपने इन्ही हकहकूकों व अस्तित्व को बचाने की एक शुरुआत की है और सभी से सहयोग की अपेक्षा भी की है। भू धंसाव आपदा के बाद जिस प्रकार से आपदा प्रबंधन सचिव ने जोशीमठ को खाली करने व 14 डेंजर जोन की विस्तृत जानकारी दी उसके बाद से लोग दहशत मे हैं,ब्यापार पूरी तरह चौपट हो गया, बाजार मे सन्नाटा पसरा है और स्कूल/कॉलेजों मे छात्र संख्या घट रही है।  इन सब परिस्थितियों से जोशीमठ कैसे व कब तक उभरेगा यह सब भविष्य के गर्भ मे है, लेकिन भू धंसाव आपदा के महीनों बाद भी ट्रीटमेंट सहित अन्य किसी विषय पर भी आगे न बढ़ना यह न केवल सरकार की उदासीनता है बल्कि जोशीमठ के भविष्य की भी घोर उपेक्षा है,और यह उपेक्षित रवैया जोशीमठ व जोशीमठ के निवासियों के जीवन को खतरे मे डालने का एक बड़ा कारण बन सकता है।

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भू धंसाव के कारण मकानों व दुकानों में बड़ी-बड़ी दरारें आई थी लेकिन अभी तक कोई भी सुरक्षात्मक कार्य नहीं कराए गए हैं। वर्तमान में हालत यह है कि मकानों व दुकानों के शटर दरवाजे व खिड़कियां भी नहीं खुल पा रही हैं। ग्रामीणों ने वर्षा सीजन से पूर्व प्रशासन से धंसाव का ट्रीटमेंट कराने की मांग की है। प्रशासन को समय रहते वर्षाकाल से पूर्व सुरक्षात्मक कार्य कराने चाहिए, नहीं तो बरसात में भू धंसाव बढ़ने से बड़ा नुकसान हो सकता है। कई वैज्ञानिक संस्थाओं ने जोशीमठ की भार क्षमता को लेकर अध्ययन किया है। ऐसे में फुगरों कंपनी के द्वारा भी
अंतिम बार भूगर्भीय सर्वेक्षण किया जा रहा है। उसके बाद जोशीमठ के बाहर क्षमता की स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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