मुख्यधारा/देहरादून
उत्तराखंड में खर्चा-पानी देकर पुलिसकर्मी को 15 अगस्त के अवसर पर पदक दिलाने का मामला मानवाधिकार आयोग में एक बार फिर से उछल गया है। आयोग ने इस मामले में पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड को नोटिस जारी किया था कि वे अपनी आख्या 9 दिसंबर 2021 को प्रस्तुत करेंगे, किंतु नियत तिथि बीत जाने के बाद भी आख्या प्रस्तुत नहीं की गई। इस पर मानवाधिकार आयोग ने एक बार फिर से उक्त मामले में सुनवाई करते हुए पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड को नोटिस जारी किया गया है और आगामी 24 फरवरी 2022 को आख्या प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं।
आइए प्रकरण के बारे में थोड़ा विस्तार से समझाते हैं
मामला 15 अगस्त 2021 का है प्रदेश में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पदक दिलाने के बदले एक पुलिसकर्मी से खर्चा पानी यानी कि रिश्वत की मांग की जा रही है। तब यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो डीजीपी ने इसका संज्ञान लिया और एसडीआरएफ के पुलिस कर्मी को सस्पेंड कर दिया गया। बाद में पुलिस की जांच में पता चला कि उक्त सिपाही एसडीआरएफ का बाबू प्रमोद कुमार है।
ये थे वायरल आडियो के अंश
इस प्रकरण के बाद सवाल उठे कि पैसे मांग कर पदक दिलाने का दावा आखिर एक पुलिसकर्मी अकेले कैसे कर सकता है? ऐसे में कहीं न कहीं किसी उच्च अधिकारी के सहारे ही ऐसी बातें की गई होंगी!
सोशल मीडिया में यह मामला तूल पकड़ने के बाद देहरादून निवासी मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार भूपेंद्र कुमार ने उत्तराखंड मानवाधिकार आयोग में जनहित याचिका दायर कर दी। उन्होंने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इस मामले की कड़ी जांच की मांग की। भूपेंद्र कुमार का कहना था कि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पदक दिलाने के नाम पर पैसों की मांग की जा रही है। पदक बेचे जा रहे हैं, जिस कारण अयोग्य व्यक्ति तो पैसे देकर आसानी से पदक झटक लेगा, किंतु पदक के लिए योग्य व्यक्ति, जो उसका वास्तविक हकदार है, पदक लेने से वंचित ही रह जाएगा। ऐसे में योग्य कर्मियों की मानव अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन है। इसलिए राष्ट्रहित राज्यहित व जनहित में इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच के आदेश किए जाएं, जिससे उक्त मामले में दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए मानवाधिकार आयोग की डबल बेंच ने इस पर सुनवाई की और आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति अखिलेश चंद्र शर्मा तथा सदस्य पूर्व आईपीएस राम सिंह मीणा ने कार्रवाई करते हुए डीजीपी को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में आख्या आयोग के समक्ष प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे। यह तिथि 9 दिसंबर 2021 की नियत थी।
बावजूद इसके आयोग के समक्ष उक्त तिथि पर आख्या प्रस्तुत नहीं की गई। जिस पर आयोग के डबल बेंच के सदस्य न्यायमूर्ति अखिलेश चंद्र शर्मा तथा सदस्य पूर्व आईपीएस राम सिंह मीणा द्वारा कार्रवाई करते हुए एक बार फिर से आदेश जारी किए गए हैं कि पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड की ओर से आख्या प्रस्तुत नहीं की गई है। पुनः नोटिस जारी हो। वह इस संबंध में अपनी आख्या 4 सप्ताह में आयोग के समक्ष अवश्य प्रस्तुत करें। आख्या प्रस्तुत न करने की स्थिति में वह किसी वरिष्ठ भिज्ञ अधिकारी को समस्त प्रपत्रों के साथ प्रत्येक दशा में आगामी तिथि 24 फरवरी 2022 को आयोग के समक्ष उपस्थित होने के लिए निर्देशित करें। जिससे उनका सशपथ बयान अंकित किया जा सके।
बहरहाल, उपरोक्त अति संवेदनशील मामले में अब देखना यह होगा कि पुलिस महानिदेशक की ओर से आंख्या में क्या बातें निकल कर आती हैं और उक्त मामले में दूध का दूध और पानी का पानी हो पाता है या नहीं!
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