उत्तराखंड में औद्योयोगिक एवं शैक्षिक क्रांति के जनक है स्व. नारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari) - Mukhyadhara

उत्तराखंड में औद्योयोगिक एवं शैक्षिक क्रांति के जनक है स्व. नारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari)

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उत्तराखंड में औद्योयोगिक एवं शैक्षिक क्रांति के जनक है स्व. नारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari)

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

नारायण दत्त तिवारी बचपन से ही तेज बुद्धि के थे और हाईस्कूल की परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। लेकिन, घर की विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने इंटर की परीक्षा प्राइवेट से 1941 में उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता के लिए लोगों को जागरूक किया। इसमें उनके साथी स्व. जोध सिंह, स्व. रामपाल, स्व. मान सिंह, स्व. उछाफ सिंह, स्व. मकौल सिंह, स्व. खयुराज सहित आदि शामिल थे। उन्होंने एनडी की अगुवाई में धारी के डाक बंगले से अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था। जगह-जगह तोड़फोड़ करने पर 1942 में एनडी तिवारी और उनके साथियों को नैनीताल जेल में बंद होना पड़ा था। बताया कि एनडी तिवारी ने आगे की शिक्षा के लिए अपने स्वतंत्रता आंदोलन में साथी रहे स्व. जोध सिंह से पांच रुपये उधार लेकर घर से भागने की योजना बनाई।

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उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी उन राजनेताओं में शामिल रहे जिन्हें अर्थनीति, कूटनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बेहतर समझ थी। विवादों में रहे लेकिन उनकी गिनती सियासत के माहिर खिलाड़ियों में की गई। कई दशक लम्बे कार्यकाल के दौरान वो आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे। केंद्र में वित्त और विदेश मंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी की हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू पर जबरदस्त पकड़ थी।18 अक्टूबर 1925 को नैनीताल में जन्मे एनडी तिवारी इलाहाबाद छात्र संघ के पहले अध्यक्ष बने। इसके चलते वह आगे की पढ़ाई के लिए प्रयागराज (इलाहाबाद) चले गए, जहां उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर आगे की शिक्षा हासिल की। उत्तराखंड के विकास के जनक इस अवसर पर तत्कालीन उत्तराखंड सरकार में मुख्यमंत्री स्व. पंडित नारायण दत्त तिवारी ने कहा कि उत्तराखंड में विकास की नीव रखने वाले, शैक्षिक एवं औद्योयोगिक क्रांति के जनक स्व. नारायण दत्त तिवारी हैं प्रदेश के विकास में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

प्रदेश में दून विश्वविद्यालय एवं सिडकुल जैसे उद्यमों की स्थापना एन डी तिवारी के कार्यक्राल में हुई। उत्तराखंड में आज युवाओं को शिक्षा के लिए प्रदेश के बाहर नहीं जाना पढ़ रहा है बल्कि उन्हें विश्वस्तरीय शिक्षा प्रदेश में ही मिल रही हैं। वही दूसरी ओर सिडकुल में चल रहे उद्योगों में प्रदेश के लोगो को रोज़गार मिल रहा है साथ ही प्रदेश के विकास में भी बढ़ोतरी हो रही हैं, तिवारी जी के साथ कई वर्षो तक कार्य कर चुके नृपेंद्र तिवारी बताते है कि एनडी तिवारी का नाम उस समय सबसे ज्यादा काम करने वाले नेताओं में शामिल था।

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उन्होंने बताया की नारायण दत्त तिवारी मंत्री बनने के बाद अपने दफ्तर रोज़ाना करीब 18 घंटे काम किया करते थे। वह चाहे सुबह 2 बजे या 4 बजे लेकिन कार्य समाप्त करके ही सोते थे। सुबह अपने लॉन में कुछ समय टहलने के बाद वह लोगों से मिलने के लिए तैयार हो जाते थे। साथ ही वह कभी किसी को च्नाज् नहीं कहा करते थे। अपने दफ्तर में आने वाली हर फाइल को खुद पढ़ा करते थे। फाइल का वह एक-एक शब्द खुद देखते थे और उसे अंडलाइन भी किया करते थे। लाल निशान सेक्शन अफसर नहीं बल्कि खुद एनडी तिवारी के हुआ करते थे। एनडी तिवारी उत्तराखंड के अकेले ऐसे मुख्यमंत्री थे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया था।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्व. पंडित नारायण दत्त तिवारी की जयंती पर पंतनगर औद्योगिक क्षेत्र को स्व. तिवारी के नाम पर रखने की घोषणा की थे। कुमाऊं विश्वविद्यालय की स्थापना, नैनीताल को रोपवे और नैनी झील की सेहत सुधारने को 100 करोड़ रुपये केंद्र सरकार से दिलवाना पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की विशेष उपलब्धि है। कुमाऊं और खासकर नैनीताल जिले के पर्वतीय क्षेत्र, तराई-भाबर में उद्योगों और सड़कों का जाल बिछाने में तिवारी की ऐतिहासिक भूमिका रही है। यहां तक कहा जाता है कि अगर तिवारी  नहीं होते तो नैनीताल में रोपवे और कुमाऊं विवि नहीं होता।80 के दशक की शुरुआत तक कुमाऊं और गढ़वाल के सभी महाविद्यालय आगराविश्वविद्यालय के अधीन थे। छोटे-बड़े काम के लिए विद्यार्थियों-अध्यापकों को आगरा की दौड़ लगानी पड़ती थी। इसके चलते उत्तराखंड में विश्वविद्यालय स्थापना की मांग को लेकर आंदोलन चला।

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1973 में सरकार ने उत्तराखंड के लिए पृथक विवि स्थापना का निर्णय लिया। तब यूपी के मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा और तिवारी वित्त मंत्री थे। सरकार ने कुमाऊं/गढ़वाल विवि नाम से प्रथम विवि का मन बनाया था, लेकिन मुख्यालय को लेकर विवाद था। तिवारी ने अपने प्रभाव से एक ही साथ दो विश्वविद्यालय बनवाने में सफलता पाई और गढ़वाल और कुमाऊं में दो विवि बने। स्व. नारायण दत्त तिवारी नेता के साथ ही कुशल प्रशासक भी माने जाते थे। वह अपनी अनूठी कार्यशैली के लिए अधिकारियों में भी चर्चित रहे हैं। हैदराबाद निवासी एवं एनएचपीसी के तत्कालीन मुख्य अभियंता पीडी प्रसादा राव (बाद में यहीं जीएम हुए) बताते थे कि जब उन्होंने बनबसा में कार्यभार संभाला था तब एनएचपीसी प्रोजेक्ट केवल 25 फीसदी ही बनाथा।उन्हीं की देखरेख में पूरे प्रोजेक्ट का निर्माण हुआ था। पावर चैनल के लिए वन विभाग की भूमि हस्तांतरण में दिक्कत आ रही थी। तिवारी तब यूपी के मुख्यमंत्री थे। उनसे संपर्क करने राव और तत्कालीन अभियंता (डिप्टी मैनेजर) स्व. पीसी जोशी (जो एनएचपीसी के भूमि हस्तांतरण मामले देख रहे थे) के साथ लखनऊ पहुंचे थे। उनसे वन विभाग की सुस्त कार्यशैली के बारे में बताया गया तो तिवारी जी ने वन सचिव को बुलाया और बनबसा, टनकपुर की वन भूमि एनएचपीसी के नाम शीघ्र हस्तांतरित करने को कहा।

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राव बताते थे कि सचिवालय को जाते समय तिवारी ने वन सचिव के सामने ही उनसे कहा कि राव साहब सचिवालय से लौटने के बाद आप दोनों लंच उनके साथ करेंगे। सचिवालय में भूमि हस्तांतरण फाइल बनने के बाद जब राव ने अभियंता स्व. जोशी से कहा कि सीएम साहब लंच की बात कर रहे थे तो स्व. जोशी ने कहा कि सर वह तो सीएम साहब का वन सचिव को इशारा था कि लंच तक काम हो जानाचाहिए। विकास पुरुष एनडी तिवारी भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं। भीमताल के विधायक राम सिंह कैड़ा वर्ष 1999 में जब एमबीपीजी कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे तब एनडी तिवारी ही उन्हें छात्रसंघ अध्यक्ष पद की शपथ दिलाने पहुंचे थे।

कैड़ा ने बताया कि वह शुरू से ही एनडी को बूबू कहकर पुकारते थे। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान एनडी ने उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा कि राजनीति में तुम अच्छा मुकाम पाओगे। कैड़ा ने बताया कि उसके बाद वह कई बार उनके कैड़ागांव (देवीधूरा) स्थित घर में भी आए थे। लोग एनडी तिवारी को कभी नहीं भुला सकते हैं। हिट सुशीला गिज्ज काउं करुंलूज् मतलब चल सुशीला किलमौड़ खाकर होठों को काले कर आते हैं, जो वाक्य आज भी उन्हें याद है।दून विश्वविद्यालय को वह जेएनयू की तर्ज पर विकसित करना चाहते थे। ऐसे में दून विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा जाए। उनकी लोकप्रियता का कारवाँ बुलंदियों को छूता रहा। दुर्गा कहीं जाने वाली इंदिरा गांधी नारायण पर बहुत विश्वास करती थी और पहली बार 1976 उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था।

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एनडी तिवारी ने मुख्यमंत्री रहते यूपी के विकास को नई दशा-दिशा दी और यूपी में नोएडा बसाने की कल्पना उन्होंने ने ही की थी। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए उत्तर प्रदेश को विकास के पथ पर अग्रसर किया जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। वह औद्योगिक क्रान्ति के जनक एवं विकास पुरूष थे।इसके बाद  तिवारी  केंद्रीय लोक लेखा समिति के पहले चेयरमैन बने। उन्होंने शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार को बढ़ावा दिया। उन्होंने पूर्व केन्द्रीय मंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व राज्यपाल का पदभार बहुत ही संजीदगी से सम्भाला। उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के विकास में एनडी तिवारी का अहम योगदान रहा। एनडी तिवारी ने नोएडा ही नहीं यूपी के कई इलाकों में औद्योगिक क्षेत्र बसाए, जिससे प्रदेश को तरक्की की राह मिली।

एनडी तिवारी देश के अकेले ऐसे नेता रहे, जिन्हें दो प्रदेशों के मुख्यमंत्री रहने का गौरव प्राप्त है।नारायण दत्त तिवारी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में ही जौनपुर के सतहरिया औद्योगिक क्षेत्र का शिलान्यास किया था। जौनपुर में बदलापुर तहसील, कटाई मिल, इंदिरा गांधी स्टेडियम, राजकीय  पालिटेक्निक का शिलान्यास भी उनके द्वारा किया गया था।

( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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