पौष्टिक आहार (nutritious food) में शुमार होता है मंडुवा : डॉ. त्रिलोक सोनी
टिहरी/मुख्यधारा
विश्व खाद्य दिवस पर मोटे अनाज में होने वाले मंडुवा जिसे कोदा व रागी भी कहा जाता हैं, इसे गांव में आहार के रूप में खाया जाता है। हमारे शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी होता है मंडुवा।
पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी कहते हैं हमारे पूर्वज मंडुवा को मुख्य आहार के रूप में प्रयोग करते थे। वे मंडुवा के गुणों के बारे में जानते थे, इसलिए अपने पूरे परिवार को मंडुवा की रोटी खिलाते थे। मंडुवा में कैल्शियम, प्रोटीन, आयरन, फाइबर व विटामिन जैसे कई पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं। यह शरीर की कमजोरी भी दूर करता है।
डॉ सोनी कहते हैं कि जिस तरीके से खेती के लिए रासायनिक खादों का प्रयोग किया जा रहा है, उससे भूमि की उर्वरक शक्ति खत्म होती हैं और हमारे शरीर के लिए हानिकारक होती हैं, इसलिए हमें खाद्य जनित जोखिमों को रोकना होगा और पृथ्वी के हिफाजत के साथ पौष्टिक खाद्यान्न को बढ़ावा देना होगा, ताकि सबको अच्छा भोजन, प्रदूषण मुक्त पानी मिल सके।
किरन सोनी कहती हैं कि पहले मंडुवा का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता था, अब कोदे का रोटी के साथ बिस्कुट, चाकलेट, केक व मोमो भी बनाए जा रहे हैं। कहीं न कहीं हमारे पूर्वजों के मोटे अनाज को बढ़ावा के साथ बाजार भी मिल रहा है।
वहीं रितु कहती हैं कि आज भी हम स्कूल में नास्ते में मंडुवा के रोटी ले जाते हैं। अमरदेई कहती हैं हमारे समय में खान पान में कोदू, झंगोरा, चौलाई और कनाली (बिच्छू घास) की सब्जी खाते थे और हम निरोगी होते थे। जब से हमने बाहर का खाना शुरु किया, हमारा स्वास्थ्य बिगड़ने लगा है।
खेतों में मंडुवा काटते रुकमणी देवी, बुद्धा देवी, सुमनी देवी, काजल, अंजना, हरेंद्र सिंह, लक्की सिंह आदि थे।
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