मरचूला बस दुर्घटना ने पहाड़ की परिवहन व्यवस्था पर किए सवाल खड़े, गत दिवस 36 लोगों की हो गई थी मौत

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मरचूला बस दुर्घटना ने पहाड़ की परिवहन व्यवस्था पर किए सवाल खड़े, गत दिवस 36 लोगों की हो गई थी मौत

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

मरचूला के नजदीक सोमवार 4 नवंबर 2024 को हुई बस दुर्घटना बहुत ही दुखदाई है। इसने एब बार फिर हम सबको अंदर तक झकझोर दिया है। इस बस दुर्घटना में 36 यात्रियों की मौत हो गई। इस दुर्घटना ने एक बार फिर से कहीं न कहीं पहाड़ की परिवहन व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।

बस दुर्घटना के बाद यह बात सामने आई कि क्षेत्र से चलने वाली एकमात्र बस में 60 से अधिक यात्री थे, जो कि बस की क्षमता के डेढ़ गुने थे और संभव है पुरानी बस होना भी इस दुर्घटना का एक कारण हो। हालांकि तात्कालिक कारण क्या रहा, यह तो जांच का विषय है, लेकिन पहाड़ की जर्जर सड़कें निश्चित रूप से इस दुर्घटना के कारणों में से एक कारण है ही। इसके साथ ही मेरी समझ से जो इस दुर्घटना का एक अन्य दुखदाई पहलू है, वह है पहाड़ की बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं। जहां दुर्घटना हुई है, उसे क्षेत्र में मेरी जानकारी के अनुसार 25 वर्ष पूर्व उस क्षेत्र में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की जो स्थिति थी, आज भी लगभग वही स्थिति है। इसको इस बात से भी समझा जा सकता है कि प्रात: लगभग 7:30 बजे दुर्घटना होने के बाद, घायल यात्रियों को लगभग चार घंटे पश्चात सबसे नजदीकी हॉस्पिटल रामनगर पहुंचाया जा सजा।

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मिली जानकारी के अनुसार 8 यात्रियों की मौत रामनगर पहुंचने के पश्चात हुई या रास्ते में हुई। यह कहीं न कहीं इस बात के लिए सोचने को मजबूर करता है कि यदि मरचूला या उधर कहीं आसपास में कोई बेहतरीन सुविधाओं से युक्त सरकारी हॉस्पिटल होता तो निश्चित रूप से कई सारे यात्रियों को बचाया जा सकता था।

घायल यात्रियों को रामनगर के हॉस्पिटल तो जरूर ले आया गया, लेकिन रामनगर के जिस रामदत्त जोशी संयुक्त चिकित्सालय में उनको लाया गया, यह भी पीपीपी मोड से संचालित हो रहा है। इसकी स्थिति को इस बात से समझा जा सकता है कि यहां लाए गए घायलों में से 21 घायलों को यहां से अन्यत्र भेजना पड़ा। रामनगर जो कि कुमाऊं और गढ़वाल का एक प्रमुख केंद्र है। यहां के एकमात्र सरकारी अस्पताल में भी वह सुविधा नहीं है कि गंभीर रूप से घायलों को जो इलाज की तत्काल जरूरत है, वह दी जा सके।

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इस दुर्घटना के बाद एक बार फिर से यह बहुत जरूरी हो गया है कि हम जहां एक और पहाड़ की सड़कों पर और परिवहन व्यवस्था पर बात करें। उसके साथ ही साथ पहाड़ की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं पर भी जरूर बात करें और इस बात के लिए कहीं न कहीं दबाव बनाया जाए कि पहाड़ में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया जाय। पहाड़ में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती ही ऐसे मौकों पर कारगर साबित हो सकती है। कुछ दिनों तक सब कुछ चुस्त-दुरुस्त दिखेगा, लगेगा अब ऐसी दुर्घटना फिर नहीं होगी, लेकिन असली सवाल तो यह है कि हम पहाड़वासियों को जिन्होंने लंबे संघर्ष के बाद यह राज्य पाया, कौन गारंटी देगा कि हम भविष्य में ऐसी दुखदाई, दर्दनाक मौत नहीं मरेंगे!

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