नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन आज भी प्रासंगिक - Mukhyadhara

नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन आज भी प्रासंगिक

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नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन आज भी प्रासंगिक

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

आज से 40 साल पहले उत्तराखंड में नशे के खिलाफ  जनजागरण की शुरुवात हुई थी। यहां आयोजित एक कार्यक्रम ने नशा नहीं रोजगार दो की मुहिम की याद में हर वर्ष की भांति कई बुद्धिजीवी पत्रकार सामाजिक कार्यकर्ता जुटे, और एक सभा के माध्यम से नशामुक्त समाज की वकालत की यह बात ध्यान रखने की है  कि एक तरफ जहां चुनावी माहौल में प्रतिदिन अवैध शराब पकड़े जाने की खबरें सुर्खियों में हैं तमाम सरकारी अमले की कोशिशें चाहे नाकाम सिद्ध होती रहें लेकिन जनसरोकारों से जुड़े लोग समाज की इस बुराई की मुखालफत किसी न किसी बहाने करते रहते हैं।

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कार्यक्रम में नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन के संयोजक ने कहा कि नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन पिछले चार दशकों से उत्तराखंड, देश की चेतना व संघर्ष को नई चेतना प्रदान करता है। आंदोलन की पृष्ठभूमि आंदोलन में शामिल तमाम लोगों को याद करते हुए कहा कि इस आंदोलन ने उत्तराखंड को सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से गहराई से प्रभावित किया और यह आज भी देश व दुनिया की दो बड़ी समस्याओं नशा और बेरोजगारी की ओर सरकार और समाज का ध्यान आकर्षित कर रहा है। “नशा नहीं रोजगार दो” आंदोलन में गिरफ्तारी देने समेत राज्य आंदोलन में जनगीतों के माध्यम से जोश भरने वाली मुन्नी तिवारी संघर्ष का दूसरा नाम है। आज भी जरूरतमंदों की मदद से लेकर अस्पताल में परेशान रोगियों को चिकित्सक को दिखाने से लेकर उन्हें दवा दिलाने के लिए वह हमेशा तत्पर रहती हैं। महिलाओं को स्वरोजगार के जरिए आत्मनिर्भर बनाने में भी जुटी हैं।

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नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन का नेतृत्व आंदोलन के शुरुआती दौर में प्रखर युवा आंदोलन की प्रतीक था। बसभीड़ा, चौखुटिया, मासी,सल्ट, भिक्यासैंण, स्यालदे, द्वाराहाट, सोमेश्वर, रामनगर, गैरसैंण, गरमपानी, भवाली, रामगढ़, नैनीताल आदि जैसे क्षेत्रों में आंदोलन का जबरदस्त
प्रभाव रहा। इस आंदोलन में “जो शराब पीता है परिवार का दुश्मन है” जो शराब बेचता है समाज का दुश्मन है, जो शराब बिकवाता है देश का दुश्मन है, नशे का प्रतिकार न होगा, पर्वत का उद्धार न होगा जैसे नारे गूंजते थे। आंदोलन की पहली जनसभा में सर्वसम्मति से क्षेत्र में हर हाल में जुए व शराब पर रोक लगाने की घोषणा के साथ ही आंदोलन शुरू हुआ। इससे एक दिन पहले चौखुटिया में नेताओं ने आबकारी विभाग के अधिकारियों को गाड़ी में अवैध शराब ले जाते हुए पकड़ा।इसके साथ ही आंदोलनकारियों के जत्थों ने स्वयं नशे के तस्करों के यहां छापे डालने, अवैध मादक पदार्थों के गोदाम ध्वस्त करने और तस्करों का मुंह काला कर बाजार में घुमाना शुरू किया।

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7 फरवरी  1984 को चौखुटिया में हजारों आंदोलनकारियों ने शराब के तस्करों को स्वयं गिरफ्तार कर उनके मुंह काले कर बाजार में घुमाया। 26 फरवरी 1984 को ब्लॉक मुख्यालय चौखुटिया में तत्कालीन जिलाधिकारी एवं जिला न्यायाधीश की उपस्तिथि में आयोजित वृहद कानूनी सहायता शिविर में हजारों लोगों ने नगाड़े निशानों के साथ प्रदर्शन कर जिला अधिकारी अल्मोड़ा को शराब के पुख्यात तस्करों को गिरफ्तार न
करने पर सबने अपनी गिरफ्तारी देने की घोषणा की थी।इस प्रदर्शन के डर से तमाम नशे के बड़े व्यापारी रामगंगा नदी के किनारे भागते देखे गए। यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा। “नशा नहीं रोजगार दो, काम का अधिकार दो” का नारा आज भी प्रासंगिक बनकर खड़ा है। उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण के इस दौर में भी युवा बेरोजगार है। बेरोजगारी के कारण युवा नशे के आदी हो रहे हैं। उनका रुझान इस ओर बढ़ रहा है। हताशा, निराशा युवा नशे के दलदल में धंसते जा रहे हैं।उत्तराखण्ड पूरे देश-दुनिया में कई क्षेत्रों में अपने नागरिकों के कामों से भी पहचाना जाता है। लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं।

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( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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