विरासत (Heritage) की हिफ़ाज़त नहीं!
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
प्रेमचंद ने अपनी कला के शिखर पर पहुँचने के लिए अनेक प्रयोग किए। जिस युग में प्रेमचंद ने कलम उठाई थी, उस समय उनके पीछे ऐसी कोई ठोस विरासत नहीं थी और न ही विचार और प्रगतिशीलता का कोई मॉडल ही उनके सामने था सिवाय बांग्ला साहित्य के। उस समय बंकिम बाबू थे, शरतचंद्र थे और इसके अलावा टॉलस्टॉय जैसे रुसी साहित्यकार थे। लेकिन होते-होते उन्होंने गोदान जैसे कालजयी उपन्यास की रचना की जो कि एक आधुनिक क्लासिक माना जाता है। उन्होंने चीजों को खुद गढ़ा और खुद आकार दिया।
जब भारत का स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था तब उन्होंने कथा साहित्य द्वारा हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं को जो अभिव्यक्ति दी उसने सियासी सरगर्मी को, जोश को और आंदोलन को सभी को उभारा और उसे ताक़तवर बनाया और इससे उनका लेखन भी ताक़तवर होता गया प्रेमचंद इस अर्थ में निश्चित रुप से हिंदी के पहले प्रगतिशील लेखक कहे जा सकते हैं। १९३६ में उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन को सभापति के रूप में संबोधन किया था। उनका यही भाषण प्रगतिशील आंदोलन के घोषणा पत्र का आधार बना।
प्रेमचंद ने हिन्दी में कहानी की एक परंपरा को जन्म दिया और एक पूरी पीढ़ी उनके कदमों पर आगे बढ़ी, ५०-६० के दशक में रेणु, नागार्जुन औऱ इनके बाद श्रीनाथ सिंह ने ग्रामीण परिवेश की कहानियाँ लिखी हैं, वो एक तरह से प्रेमचंद की परंपरा के तारतम्य में आती हैं। प्रेमचंद एक क्रांतिकारी रचनाकार थे, उन्होंने न केवल देशभक्ति बल्कि समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों को देखा और उनको कहानी के माध्यम से पहली बार लोगों के समक्ष रखा। उन्होंने उस समय के समाज की जो भी समस्याएँ थीं उन सभी को चित्रित करने की शुरुआत कर दी थी। उसमें दलित भी आते हैं, नारी भी आती हैं। ये सभी विषय आगे चलकर हिन्दी साहित्य के बड़े विमर्श बने।
प्रेमचंद हिन्दी सिनेमा के सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्यकारों में से हैं। सत्यजित राय ने उनकी दो कहानियों पर यादगार फ़िल्में बनाईं। १९७७ में शतरंज के खिलाड़ी और १९८१ में सद्गति। उनके देहांत के दो वर्षों बाद के सुब्रमण्यम ने १९३८ में सेवासदन उपन्यास पर फ़िल्म बनाई जिसमें सुब्बालक्ष्मी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। १९७७ में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित ओका ऊरी कथा नाम से एक तेलुगू फ़िल्म बनाई जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। १९६३ में गोदान और १९६६ में गबन उपन्यास पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं। १९८० में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक निर्मला भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।
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प्रधानमंत्री ने नैनीताल जिले के दुर्गम इलाकों में संचालित घोड़ा लाइब्रेरी की सराहना की है। यह लाइब्रेरी दूर-दराज के गांवों के बच्चों में पढ़ने की रुचि जगा रही है। वहीं, शहरों के पुस्तकालय और वाचनालय बदहाली के आंसू बहा रहे हैं। सड़ी-गली अल्मारियां धूल फांक रही हैं। प्रेमचंद के अमूल्य साहित्य को दीमक चट कर गईं। यही हाल उर्दू अदब के मशहूर शायर अल्ताफ हुसैन हाली, अहमद फराज, फिराक गोरखपुरी के मजमूओं का भी है। किसी जमाने में हल्द्वानी और काठगोदाम क्षेत्र में चार पुस्तकालय और वाचनालय संचालित थे। अब रोडवेज बस स्टेशन के पास सिर्फ नाम का पुस्तकालय है जबकि ताज चौराहे के पास स्थित मौलाना हकीमुल्ला नगर निगम पुस्तकालय का भवन तोड़ दिया गया। नगर निगम बालक इंटर कॉलेज में कामचलाऊ व्यवस्था के तहत वाचनालय शिफ्ट किया गया है। बनभूलपुरा में ताज चौराहे के पास 1987 में बने पुस्तकालय में बुजुर्ग और युवा पढ़ने आते थे।
2008 में पुस्तकालय के स्थान पर दोमंजिला कॉंप्लेक्स बनाने की बात करते हुए भवन तोड़ दिया, लेकिन 15 साल बाद भी लाइब्रेरी नहीं बनी। निगम ने चोरगलिया रोड पर व्यावसायिक भवन की ऊपरी मंजिल पर बने छोटे से कमरे में लाइब्र्रेरी शिफ्ट कर दी गई।पुरानी बाल पुस्तिकाएं, मैगजीन और प्रतियोगी किताबें अलमारी में बंद हैं। कमरे में धूल से पटे अखबार दिखाई देते हैं। पुस्तकालय के भवन निर्माण के लिए क्षेत्रीय पार्षद कई बार नगर निगम की बैठक में आवाज उठा चुके हैं। रोडवेज बस अड्डे के पास 1953 में बना पं. गोविंद बल्लभ पंत पुस्तकालय भी बदहाल है। पुस्तकालय के एक कमरे में पुराने अखबारों की रद्दियां रखी हैं जो धूल से पटी हैं।
2000 से अधिक पुरानी किताबें ताले में बंद हैं। काठगोदाम का पुस्तकालय काठगोदाम में नरीमन चौराहे के पास किराये के भवन में चलने वाली लाइब्रेरी 2013 में बंद हो गई थी। इसे नगर निगम बालक इंटर कॉलेज में शिफ्ट किया गया था लेकिन संसाधनों के अभाव में छात्र यहां का रुख नहीं करते। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। हल्द्वानी शहर में लाइब्रेरी की उचित व्यवस्था नहीं है। लाइब्रेरी में ना तो किताबें हैं और ना ही अन्य सुविधाएं। इसलिए प्राइवेट लाइब्रेरी में पढ़ने आते हैं। संयोजक हेम पंत इस कार्यक्रम में प्रसिद्ध लेखक और विचारक देशभर से कई साहित्यकार, रंगकर्मी और मीडियाकर्मी भीमताल पहुंचें। अभियान टीम कुमाउनी आर्काइव्स , क्रिएटिव उत्तराखंड आयोजित है। समाज में ‘पढ़ने लिखने की संस्कृति’ को बढ़ावा देने और महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों को प्रचारित प्रसारित करने के उद्देश्य से चलाए जा रहे ‘किताब कौतिक’ अभियान का सफर जारी है। इससे पहले टनकपुर, बैजनाथ, चम्पावत, पिथौरागढ़ और द्वाराहाट भीमताल में किताब कौतिक का आयोजन हो चुका है।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )