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गजब : पौड़ी गढ़वाल का एक ऐसा कर्मवीर, जो अपने क्षेत्र के लिए बन गया दशरथ मांझी। इस रिटायर्ड फौजी ने सरकार को ऐसे दिखाया आईना

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सच्चे कर्मवीर बनकर 55 दिनों में क्षेत्रवासियों को दी बड़ी सौगात

मुख्यधारा ब्यूरो/यमकेश्वर

पर्वतों को काटकर सड़कें बना देते हैं वे।
सैकड़ों मरुभूमि में नदियां बहा देते हैं वे।
गर्भ में जल-राशि के बेड़ा चला देते हैं वे।
जंगलों में भी महा-मंगल रचा देते हैं वे।
भेद नभ तल का उन्होंने है बहुत बतला दिया।
है उन्होंने ही निकाली तार तार सारी क्रिया।।

प्रसिद्ध कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध” की कर्मवीर नामक शीर्षक से वर्षों पहले लिखी गई कविता के आठवें पैरा में उपरोक्त पंक्तियां हैं। जिनमें एक कर्मवीर के लिए लिखा गया है कि ”जंगलों में भी महा-मंगल रचा देते हैं।” ऐसे ही एक कर्मवीर पौड़ी गढ़वाल जनपद की पावन भूमि पर यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं सुदेश भट्ट।
सुदेश भट्ट पूर्व फौजी हैं और वर्तमान में बूंगा क्षेत्र से क्षेत्र पंचायत सदस्य हैं। सेना में रहने के दौरान भी उनके नाम कई कीर्तिमान स्थापित हैं, लेकिन वर्तमान में श्री भट्ट ने जो कीर्तिमान स्थापित किया, वह आने वाले समय में उदासीन सरकारों व अधिकारियों-कर्मचारियों को आईना दिखाता रहेगा।
तो आइए पूर्व फौजी सुदेश भट्ट ने प्रदेश सरकार को किस प्रकार से आईना दिखाया, इससे आपको भी रूबरू करवाते हैं।
यंू तो कोरोनाकाल के लॉकडाउन में प्रदेशभर से युवाओं के अपने गांव के रास्ते, सड़क दुरुस्त करने की खबरें खूब देखने व पढऩे को मिली, लेकिन इसका श्रेय अगर वास्तविक रूप से मिलना चाहिए तो यमकेश्वर के युवा रिटायर्ड फौजी व क्षेत्र पंचायत सदस्य बुंगा सुदेश भट्ट को मिलना चाहिए। उन्होंने ही अपने गांव में युवाओं के सहयोग से यह शुरुआत की। लॉकडाउन के शुरू होते ही अपने क्षेत्र से जो एक मिशाल बन गई। इसी से प्रेरणा लेकर प्रदेश में बहुत से गॉंवों में युवाओं ने अपने गांव तक श्रमदान व सहयोग करके सड़कें पहुंचा दी है।

यमकेश्वर ब्लॉक की ग्राम सभा बूंगा पूरे लॉकडाउन के दौरान चर्चा व आकर्षंण का केंद्र बनी रही, जहां से हर रोज नये नये जन हितैषी व साहसिक व ऐतिहासिक कार्यों के सुखद समाचार प्राप्त हो रहे हैं। जिसे अंजाम देने मे लगे हैं पूर्व सैनिक व वर्तमान में क्षेत्र पंचायत सदस्य सुदेश भट्ट। जैसे ही लॉक डाउन लगा, सुदेश भट्ट ने अपनी ग्राम सभा के सबसे दुर्गम गांव वीर काटल को सड़क से जोडऩे के लिये ग्रामीणों व लॉक डाउन में घर लौटे युवाओं से बैठक कर श्रमदान व आपसी सहयोग से ही सड़क निर्मांण करने का आह्वान किया। इस पर समस्त युवाओं ने 34 दिन तक तपती गर्मी में कड़ी मेहनत कर अपने क्षेत्र पंचायत के नेतृत्व मे गांव तक सड़क पहुंचाकर दम लिया। जो समूचे देश और प्रदेश में चर्चाओं का केंद्र बिंदु बनी रही।

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सुदेश भट्ट इसके बाद भी नहीं रुके व क्षेत्र की इस उपलब्धि को पुल के बिना अधूरा बताकर ग्रामींणों के साथ एक बार फिर बैठक किया, क्योंकि वीर काटल को मोहन चट्टी व ऋषिकेश से जोडऩे वाला पुल 2013 की आपदा में ढह गया था। तबसे ग्रामींण यहां पर पुल की मांग कर रहे थे। उन्हें जन प्रतिनिधियों से कई बार चुनावी घोषणाएं व आश्वासन मिले, लेकिन धरातल पर कार्य के नाम पर एक पत्थर भी नहीं रखा गया।

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यमकेश्वर में पर्यटन केंद्र के रूप में विश्वभर में अपनी पहचान रखने वाले मोहन चट्टी से गांव की दूरी साढे तीन किमी है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव में वीर काटल अत्यधिक दुर्गम व पिछड़े हुये क्षेत्रों में शामिल है।

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सुदेश भट्ट बताते हैं कि क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों द्वारा उनके क्षेत्र की अनदेखी व इस क्षेत्र के साथ सौतेला व्यवहार से निराश होकर गांव में मूलभूत सुविधाओं के लिए स्वयं ही संघर्ष करने का निर्णय लिया व पुल निर्मांण में जुट गए। 55 दिन तक पुल निर्मांण का कार्य युद्ध स्तर पर चलता रहा। गांव के प्रति समर्पित ग्रामीणों ने अपने क्षेत्र पंचायत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पुल निर्माण की शुरुवात की। जहां ग्रामीणों ने पुल निर्मांण में दिन रात मेहनत की, वहीं बूंगा-वीर काटल के प्रवासियों ने निर्मांण सामग्री में आर्थिक सहयोग प्रदान कर अपने क्षेत्र पंचायत को प्रोत्साहित किया।

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इन्हीं सामुहिक प्रयासों का परिणाम है कि आज कार्य के 55वें दिन पुल निर्मांण का कार्य समाप्त हुआ। आस-पास के गांवों के ग्रामीण यमकेश्वर के कई पंचायत प्रतिनिधि क्षेत्र में इस तरह के ऐतिहासिक कार्य में निर्माण टीम की हौसला आफजाई हेतु पशु प्रेमी सामाजिक कार्यकर्ता जगदीश भट्ट, जिला पंचायत सदस्य भादसी क्रांति कपरुवाण, क्षेत्र पंचायत सदस्य जुलेडी हरदीप कैंतुरा, क्षेत्र पंचायत प्रतिनिधि कोठार व सामाजिक कार्यकर्ता उपेंद्र पयाल, ग्राम प्रधान बिनक आशीष कंडवाल दिन भर लेंटर डालने में ग्रामीणों के साथ खूब पसीना बहाते रहे। सुबह 8 बजे शुरू हुआ लेंटर का कार्य शाम 6.40 मिनट तक चलता रहा।
कुल मिलाकर उपरोक्त उदाहरण से महसूस किया जा सकता है कि संसाधनों के अभाव में भी जंग जीती जा सकती है, बशर्ते इसके लिए सुदेश भट्ट जैसे दृढ़ संकल्पी और बुलंद हौसले भी मौजूद हो। सुदेश भट्ट के नेतृत्व में वीरकाटल के इस अभूतपूर्व श्रमदान से बनी साढ़े तीन किमी. की सड़क और फिर पुल निर्माण बताता है कि एक सैनिक के रूप मेें भी सुदेश भट्ट पर उनके कमांडरों को बड़ा फख्र होता होगा। वाकई उदासीन और जंग खा रहे सरकारी सिस्टम को आईना दिखाने के लिए इससे बेहतर उदाहरण और कोई नहीं हो सकता और न ही कोई दे सकता है। यही कारण है कि आज सुदेश भट्ट अपने क्षेत्र सहित पूरे प्रदेश में पहाड़ के ‘दशरथ मांझी’ के नाम से भी लोकप्रिय हो चुके हैं।
आने वाले समय में वीर काटल बूंगा का यह पुल वाहनों के आवागमन से गुलजार रहेगा। #मुख्यधारा टीम  की ओर से सभी क्षेत्रवासियों के हौसले को सलाम और इसके नायक कर्मवीर #सुदेश भट्ट को सल्यूट।

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