चिंता : मानदेय के लिए धक्के खाने को मजबूर संस्कृत विद्यालयों के 'संस्कृत शिक्षक' (Sanskrit teachers), कैसे होगा द्वितीय राजभाषा का संवर्द्धन - Mukhyadhara

चिंता : मानदेय के लिए धक्के खाने को मजबूर संस्कृत विद्यालयों के ‘संस्कृत शिक्षक’ (Sanskrit teachers), कैसे होगा द्वितीय राजभाषा का संवर्द्धन

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चिंता : मानदेय के लिए धक्के खाने को मजबूर संस्कृत विद्यालयों के ‘संस्कृत शिक्षक'(Sanskrit teachers), कैसे होगा द्वितीय राजभाषा का संवर्द्धन

संस्कृत निदेशालय और सचिवालय के बीच घूम रही मानदेय की पत्रावली

ऋषिकेश/मुख्यधारा

उत्तराखंड में संस्कृत विद्यालयों के ‘संस्कृत शिक्षकों’ की स्थिति बड़ी चिंताजनक हो गई है। इन शिक्षकों को मानदेय के लिए भी धक्के खाने को मजबूर होना पड़ रहा है। कई बार की मांग के बावजूद सरकार इस समस्या का समाधान नहीं कर पाई है। मजबूर होकर संस्कृत शिक्षक संगठन ने अपनी मांग को लेकर धरना देने का निर्णय लिया है।

राज्य में उत्तराखंड संस्कृत विभाग द्वारा उत्तराखंड के संस्कृत विद्यालय- महाविद्यालयों में कई वर्षों से कार्यरत 126 प्रबंधकीय शिक्षकों को मानदेय की सूची में सम्मिलित करने के शासनादेश को लागू न करने के विरोध में, मानदेय वृद्धि से वंचित 126 संस्कृत शिक्षकों के पंजीकृत संगठन “ संस्कृत-विद्यालय-महाविद्यालय-प्रबंधकी य-शिक्षक-समिति,उत्तराखंड” के बैनर तले उत्तराखंड के संस्कृत शिक्षकों द्वारा 3 अप्रैल से प्रस्तावित धरने की कार्य योजना बनाई गई है।

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ग़ौरतलब है कि 17 मार्च 2021 को सरकार द्वारा उत्तराखंड के संस्कृत विद्यालयों के 155 प्रबंधकीय शिक्षकों को मानदेय की श्रेणी में लाया गया, लेकिन 126 शिक्षक तत्समय मानदेय सूची में आने से वंचित रह गए थे। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी द्वारा अपने पिछले कार्यकाल में इन छूटे हुए 126 शिक्षकों के मानदेय प्रस्ताव को विचलन के माध्यम से अनुमोदित भी कर दिया गया, लेकिन पुनः दोबारा सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री के अनुमोदन पर भी संस्कृत शिक्षा के अधिकारियों द्वारा अड़ंगा लगा दिया गया और मानदेय से वंचित 126 शिक्षकों की मानदेय पत्रावलियों को संस्कृत निदेशालय और सचिवालय के बीच घुमाया जाने लगा।

सीएम धामी के नेतृत्व में नई सरकार के गठन के पश्चात पिछले एक वर्षों से ये 126 संस्कृत शिक्षक अपने मानदेय के शासनादेश को लागू करवाने हेतु मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, विधायक़ों, सांसद, शिक्षा सचिव, संस्कृत निदेशक के कार्यालय में कई बार ज्ञापन दे चुके हैं, लेकिन संस्कृत भाषा के प्रति सरकार के कान में जूं नहीं रेंग रही। मजबूर होकर इन संस्कृत शिक्षकों द्वारा अपने पंजीकृत संगठन “संस्कृत-विद्यालय-महाविद्यालय-प्रबंधकीय-शिक्षक-समिति, उत्तराखंड” के बैनर तले 21 मार्च को उत्तराखंड संस्कृत निदेशक को मिलकर उनके माध्यम से सरकार को अल्टीमेटम दिया गया था कि यदि संस्कृत शिक्षा विभाग ने शासनादेश लागू करने के सम्बंध में 10 दिन के अंदर क़ोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी गई तो 03 अप्रैल से उत्तराखंड संस्कृत निदेशालय में धरना दिया जाएगा।

इसी दिन हरिद्वार प्रेस क्लब में सभी शिक्षकों द्वारा प्रेस वार्ता कर प्रेस के माध्यम से भी सरकार को संदेश भेज दिया गया था।

इस बीच संगठन के पदाधिकारियों द्वारा 29 मार्च को शिक्षा मंत्री से मिलकर वार्ता करने की कोशिश भी की गई, लेकिन शिक्षा मंत्री ने उन्हें 30 मार्च को मिलने हेतु कहा गया। जब अगले दिन संगठन के पदाधिकारी वार्ता के लिए पहुँचे तो शिक्षा मंत्री वहां से पहले ही निकल गए।

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पिछले डेढ़ साल में शिक्षा मंत्री को कई बार मिलकर ज्ञापन दिया गया, लेकिन कोई संज्ञान नही लिया गया। इसी परिप्रेक्ष्य में आज ऋषिकेश में शिक्षक संगठन के प्रदेश स्तर के पदाधिकारी एकत्र हुए और 3 अप्रैल के धरने की रूप रेखा तय की गई।

इस अवसर पर संगठन के प्रदेश अध्यक्ष भगवती बिजलवाण, सचिव रावेंद्र कुमार, कमलेश ध्यानी, अनूप रावत, सूर्यप्रकाश रतूड़ी, हंसराज भट्ट, प्रकाश तिवारी, चक्रपाणि मैठाणी, रामप्रसाद सेमवाल, मनोज पैन्यूली, रूपेश जोशी और अरुण थपलियाल सहित कई संस्कृत विद्यालयों के शिक्षक और संस्कृत जगत से जुड़े लोग सम्मिलित हुए।

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