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शनि जयंती (Shani Jayanti): छह शुभ संयोगों में मनाई जा रही भगवान शनि की जयंती, वट सावित्री व्रत भी आज, सुहागिन महिलाओं के लिए खास है यह पर्व

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शनि जयंती (Shani Jayanti): छह शुभ संयोगों में मनाई जा रही भगवान शनि की जयंती, वट सावित्री व्रत भी आज, सुहागिन महिलाओं के लिए खास है यह पर्व

मुख्यधारा डेस्क

हिंदू धार्मिक दृष्टि से आज बहुत ही पावन दिन है। आज देश भर में भगवान शनि की जयंती धूमधाम के साथ मनाई जा रही है। शनि जयंती के साथ वट सावित्री व्रत भी आज है। वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए रखती हैं और कुंवारी कन्याएं भी मनचाहा वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं।

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इस दिन महिलाओं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि शनि जयंती का त्योहार मनाया जाता है। शनि जयंती पर छह शुभ संयोग भी बन रहे हैं। शोभन योग, शश योग और गजकेसरी योग में शनि जयंती मनाई जा रही है।‌

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धार्मिक मान्यताओं अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या को शनि देव का जन्म सूर्य पुत्र के रूप में हुआ था। शनि देव की माता का नाम छाया है। शनि देव की बहन भद्रा हैं। यमराज और यमुना भी शनि देव के भाई और बहन हैं।

शनि जयंती पर विधि विधान से पूजा करके आप शनि देव को प्रसन्न करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू धर्म में शनि जयंती का खास महत्व है।

मान्यता है कि, इस दिन न्याय के देवता शनिदेव धरती पर अवतरित हुए थे। इस दिन विधि विधान से शनिदेव की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, तथा गृह दोष से मुक्ति मिलती है। देशभर के शनि मंदिरों में आज शाम को पूजा अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ दिखाई देगी।

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मान्यता है कि शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से कोई नहीं बच सकता है लेकिन शनि जयंती पर शनि देव की विशेष पूजा, दान पुण्य करने से शनि की महादशा के दुष्प्रभाव कम किए जा सकते हैं। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि जयंती का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

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शुभ मुहूर्त में शनि देव के मंदिर जाकर पूजन करें। शनि देव को फूल, अक्षत्, माला, धूप, दीप, तिल, गंध, नैवेद्य, शमी के पत्ते, फल आदि अर्पित करते हुए पूजा करें. पूजा मंत्र का उच्चारण करें। सरसों या तिल के तेल से उनका अभिषेक करें। शनि चालीसा का पाठ करें।‌ उसके बाद विधिपूर्वक हवन करें। छाया दान करें। उनकी प्रिय वस्तुओं का दान गरीबों को कर दें। जरूरतमंद लोगों की मदद और सेवा करें.शनि देव की पूजा करने से साढ़ेसाती, ढैय्या का दुष्प्रभाव खत्म होगा। रोग और कष्टों से मुक्ति मिलेगी। कोर्ट-कचहरी के मामलों में सफलता प्राप्त होगी। शनि दोष से छुटकारा मिल सकता है।

ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि आज शनि जयंती के दिन शनिदेव की प्रदोष काल में विशेष रूप से पूजा करें। प्रदोष काल मतलब सूर्यास्त से आधे घंटे पहले से लेकर सूर्यास्त के आधे घंटे बाद तक। पूजन के समय शनिदेव को सरसों के तेल का दीपक अर्पित करें। सरसों के तेल के बने मिष्ठान, काले तिल, काली उड़द, काला कपड़ा, लोहे की कोई चीज और सरसों का तेल चढ़ाएं। इसके बाद दशरथकृत शनि स्तोत्र का तीन बार पाठ करें। शनि मंत्र और शनि चालीसा पढ़ सकते हैं। इसके बाद शनिदेव से अपनी गलतियों की क्षमा याचना करें और उनसे कष्‍ट हरने की विनती करें। इससे काफी लाभ हो सकता है। शनि जयंती के दिन 7 तरह का अनाज, आधा किलो उड़द की काली दाल, थोड़ा सरसों का तेल, काले वस्‍त्र आदि सामान लेकर एक नीले या काले रंग की पोटली में बांधें। शनिदेव से अपने दुखों को दूर करने की प्रार्थना करें। इसके बाद इस पोटली को शनि मंदिर में जाकर किसी को दान में दे दें या फिर किसी जरूरतमंद को दान करें। इससे शनिदेव आपके कष्‍टों को दूर करेंगे।

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वट सावित्री व्रत पर सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए बरगद की करती हैं पूजा—

आज ही वट सावित्री व्रत भी सुहागिन महिलाएं मना रही हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार सावित्री ने तपस्या और व्रत-उपवास के बल पर यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांगे थे। उसी प्रकार हर सुहागिन अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और इसलिए वट सावित्री का भी व्रत रखा जाता है। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि है और आज के दिन वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं 16 श्रृंगार कर बरगद के पेड़ का विधि-विधान से पूजन करती है और अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। ये व्रत इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन सावित्री ने सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिए थे। तभी से ये व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाने लगा। इस व्रत में वट वृक्ष का महत्व बहुत होता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ का पूजन करती है और उसकी परिक्रमा लगाती हैं।

धार्मिक मान्यता है कि मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा राज्य करते थे. उनकी संतान नहीं थी, लेकिन कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई। इस तेजस्वी पुत्री का नाम सावित्री पड़ा. विवाह योग्य होने पर सावित्री का सत्यवान के साथ विवाह किया गया। विवाह के बाद पता चला कि सत्यवान अल्पायु है और एक साल बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। लेकिन सावित्री अपने दांपत्य जीवन को लेकर अडिग रही। नारद जी ने मृत्यु का जो दिन बताया था, उस दिन सावित्री सत्यवान के साथ वन को चली गई। वन में सत्यवान जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी। वह सावित्री की गोद में अपना सिर रखकर लेट गया। थोड़ी देर बाद सावित्री ने देखा कि अनेक दूतों के साथ हाथ में पाश लिए यमराज खड़े हैं। यमराज सत्यवान के प्राण को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए. सावित्री को पीछे आते देख यमराज ने कहा, हे पतिपरायणे! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया। अब तुम लौट जाओ। सावित्री ने कहा, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मैं जाउंगी’ सावित्री की पति भक्ति व निष्ठा देखकर यमराज पिघल गए और उन्होंने सावित्री को एक वर मांगने के लिए कहा। तब सावित्री ने वर मांगा, ‘मैं सत्यवान के पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें। सावित्री से प्रसन्न होकर यमराज ने उन्हें वरदान दे दिया। वरदान देने के बाद जब यमराज फिर से सत्यवान को लेकर जाने लगे तो सावित्री ने कहा कि पति के बिना पुत्रों का वरदान भला कैसे संभव है। सावित्री की यह चतुराई देख यमराज प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसके प्राण मुक्त कर दिए और अदृश्य हो गए।

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