Jhandeji Mela: श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने संगतों को दिया दर्शन व आशीर्वाद, जानिए झण्डे जी मेले का इतिहास व ‘देहरादून’ नाम पड़ने का कारण

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Jhandeji Mela: श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने संगतों को दिया दर्शन व आशीर्वाद, जानिए झण्डे जी मेले का इतिहास व ‘देहरादून’ नाम पड़ने का कारण

  • श्री गुरु राम राय जी महाराज के बताए रास्ते पर चलने का दिया संदेश
  • श्री झण्डे जी मेले में शामिल होने के लिए बढ़ी संगतों की भीड़देहरादून/मुख्यधारा

श्री झण्डे जी मेले में शामिल होने के लिए देश विदेश से आने वाली संगतों के श्री दरबार साहिब पहुंचने का क्रम शुक्रवार को भी जारी रहा।

श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने संगतों को दर्शन दिए व श्री गुरु राम राय जी महाराज के बताए रास्ते पर चलने का संदेश दिया। उन्होंने देश विदेश से आई गुरु की प्यारी संगत का जोरदार स्वागत करते हुए सभी को आत्मीय बधाईयां दीं।

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श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने संगतों को सम्बोधित करते हुए श्री गुरु राम राय जी महाराज के जीवन से जुड़े संस्मरण साझा किए। उन्होंने सभी संगतों का आह्वाहन किया कि जो व्यक्ति गुरु के बताए रास्ते पर चलता है, उसे जीवन में हर लक्ष्य की प्राप्ति होती है।

देहरादून के संस्थापक हैं श्री गुरु राम राय जी महाराज

श्री झण्डे जी मेले का इतिहास देहरादून के अस्तित्व से जुड़ा है। श्री गुरु राम राय जी महाराज का पर्दापण (देहरादून आगमन) यहां सन् 1676 में हुआ था। उन्होंने यहां की रमणीयता से मुग्ध होकर ऊंची-नीची पहाड़ी धरती पर जो डेरा बनाया, उसी के अपभ्रंश स्वरूप इस जगह का नाम डेरादीन से डेरादून और फिर देहरादून हो गया। उन्होंने इस धरती को अपनी कर्मस्थली बनाया।

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श्री गुरु महाराज जी ने श्री दरबार साहिब में लोक कल्याण के लिए एक विशाल झंडा देहरादून के मध्य स्थान में (बीच में) में लगाकर लोगों को इसी ध्वज से आशीर्वाद प्राप्त करने का संदेश दिया। इसी के साथ श्री झण्डा साहिब के दर्शन की परंपरा शुरू हो गई।

श्री गुरु राम राय जी महाराज को देहरादून का संस्थापक कहा जाता है। श्री गुरु राम राय जी महाराज सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हर राय जी के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनका जन्म होली के पांचवे दिन वर्ष 1646 को पंजाब के जिला होशियारपुर (अब रोपड़) के कीरतपुर में हुआ था।

मेले हमारी विरासत हमारी धरोहर

श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने अपने संदेश में कहा कि मेले हमारे देश की विरासत व धरोहर हैं। मेलों में देश विदेश के लोग एकसाथ एकजुट होकर अपनी कला, संस्कृति व संस्कारों का आदान प्रदान करते हैं। मेले हमें जोड़ने का कार्य करते हैं, आपसी सद्भाव व भाईचारे को बढ़ाने का काम करते हैं।

श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल का स्वैच्छिक रक्तदान शिविर

श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के ब्लड बैंक व श्री महाकाल सेवा समिति की ओर से श्री दरबार साहिब में शनिवार को स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का आयोजन किया जा रहा है। शनिवार 11 मार्च को रक्तदान शिविर में संगतों के साथ-साथ श्री महाकाल सेवा समिति के सदस्य व क्षेत्रवासी भी स्वैच्छिक रक्तदान में हिस्सेदारी करेंगे। स्वैच्छिक रक्तदान शिविर को लेकर ब्लड बैंक की टीम ने शुक्रवार को आवश्यक तैयारियां पूरी कीं।

श्री महाकाल सेवा समिति के अध्यक्ष रोशन राणा ने जानकारी दी कि इससे पूर्व समिति 12 स्वैच्छिक रक्तदान शिविर आयोजित कर चुके हैं। शनिवार को समिति की ओर से 13वां शिविर आयोजित किया जा रहा है।

एलईडी स्क्रीन पर मेले का सजीव प्रसारण

श्री दरबार साहिब मेला समिति ने श्री दरबार साहिब परिसर में एलईडी स्क्रीन की व्यवस्था की है। एलईडी स्क्रीन पर मेले का सजीव प्रसारण किया जाएगा। श्रद्धालुओं की भारी संख्या को देखते हुए यूट्यूट व फेसबुक पर भी मेले का सजीव प्रसारण प्रसारित किया जाएगा।

गिलाफ सिलने का काम लगभग पूरा

शुक्रवार को गिलाफ सिलने का काम लगभग पूरा हो गया। महिलाएं सुबह से ही गिलाफ सिलाई के काम को पूरा करने में जुट गईं। श्री गुरु राम राय जी महाराज के जयकारों व भजनों के साथ गिलाफ सिलने का काम देर शाम तक लगभग पूरा कर लिया गया।

काबिलेगौर है कि श्री झण्डे जी पर तीन तरह के गिलाफों का आवरण होता है। सबसे भीतर की ओर सादे गिलाफ चढ़ाए जाते हैं इनकी संख्या 41 (इकतालीस) होती है।

मध्यभाग में शनील के गिलाफ चढ़ाए जाते हैं, इनकी संख्या 21 (इक्कीस) होती है।

सबसे बाहर की ओर दर्शनी गिलाफ चढ़ाया जाता है, इनकी संख्या 1 (एक) होती है। इस वर्ष जालन्धर के संसार सिंह व उनके परिवार को दर्शनी गिलाफ चढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

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