सत्यपाल नेगी/रुद्रप्रयाग
केंद्र सरकार की नमामि गंगे योजना बेशक मैदानी घाटों की तर्ज पर उत्तराखण्ड में भी बड़ी तेजी से बनाई गई हो, मगर पहाड़ों में इस योजना को स्थानीय व भौगोलिक दृष्टि को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया, जिसका परिणाम हर साल बरसातों में करोड़ों रुपया पानी में डूब रहा है।
जी हां! आपको बता दें कि जिला रुद्रप्रयाग में भी अलकनन्दा नदी के दोनों तरफ करोड़ों रुपये खर्च कर कर दिये गए, मगर मानकों को ताक पर रख कर?
केंद्र सरकार के द्वारा सीधे इस योजना से बनाए गए घाटों को स्थानीय प्रशासन, जनप्रतिनिधियों, सामाजिक संगठनों, न ही धार्मिक संस्थाओं की राय लिए बिना बना दिया, जिसका खामियाजा हर साल बाढ़ व नदी के बढ़े जल स्तर में आए रेट कूड़े से क्षति होने से भुगतना पड़ता है और फिर बरसात के बाद लाखों रुपया इन घाटों की सफाई में लगाया जा रहा है। जैसे ही सफाई कर दी जाती है, तब तक फिर बरसात आते ही करोड़ों जल में डूब जाते है?
सवाल हर बार यहां खड़ा होता है कि ऐसी योजनाओं का क्या फायदा, जिस पर अरबों रुपया लगा तो दिया, मगर जनता के काम कुछ भी नहीं आया?
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यानि करोड़ो रुपया, प्रचार-प्रसार से लेकर बिना मानक की योजना धरातल पर केवल इसलिए लगाये गये कि इसे नदी में डूबोकर देखते रहे।
साथ ही घाटों के किनारे लाखों रुपये की सोलर स्ट्रीट लाइट भी पानी में डूब कर खराब ही रही है। आखिर ये करोड़ों रुपया जनता के टैक्स का ही दुरुपयोग किया गया है। यह गम्भीर सवाल जनता के सामने खड़ा है? आखिर जनता के हितों से कब तक खिलवाड़ किया जाता रहेगा?