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ख़त्म होते नौलों पर बसावट का विस्तार भारी

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ख़त्म होते नौलों पर बसावट का विस्तार भारी

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड राज्य जल नीति-2019 के मसौदे को मंजूरी दी गई है। राज्य में शुरू होने वाली यह जल नीति प्रदेश में उपलब्ध सतही और भूमिगत जल के अलावा हर वर्ष बारिश के रूप में राज्य में गिरने वाले79,957 मिलियन किलो लीटर पानी को संरक्षित करने की कवायद है। जल नीति में राज्य के 3,550 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले 917 हिमनदों के साथ ही नदियों और प्रवाह तंत्र को प्रदूषण मुक्त करने और लोगों को शुद्ध पेयजल और सीवरेज निकासी सुविधा उपलब्ध कराने का भी प्रावधान किया गया है शायद इस नीति से एक साल में थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ना शुरू हुआ होगा जिससे प्रभावित हो वर्ष 2020 में पीआईबी द्वारा दी गई एक सूचना के अनुसार केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को लिखे पत्र में आश्वस्त किया कि केंद्र सरकार उत्तराखंड को 2023 तक हर घर जल राज्य बनाने में पूरा सहयोग देगी।

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जल शक्ति मंत्री ने पत्र में बताया था कि उत्तराखंड को हर घर में नल से जल पहुंचाने की इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए इस वित्त वर्ष में केंद्र की ओर से 362.57 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है। यह राशि वर्ष 2019-20 इस कार्य के लिए दी गई 170.53 करोड़ के दोगुने से भी अधिक है। पत्र में बताया गया कि इस अभियान के लिए राज्य सरकार के पास इस समय इस अभियान के लिए 480.44 करोड़ की बड़ी राशि उपलब्ध है जिसमें राज्य सरकार का अंशदान और पिछले वर्ष उपयोग न लाई जा सकी राशि शामिल है। इंडिया वाटर पोर्टल के अनुसार इसी
मुहिम को आगे बढ़ाते हुए उत्तराखंड सरकार ने बजट 2020-21 में 1165 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। 1165 करोड़ रुपये की लागत से प्रदेश के लोगों को पीने का साफ पानी मिल सकेगा। करोड़ों रुपयों लगा साफ पानी उपलब्ध कराने वाली बात का अगर आपको एक बार के लिए भरोसा हो भी जाए तो आज आप पहाड़ों में जाकर वास्तविक स्थिति देख अपना विचार पलट सकते हैं।

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नैनीताल जिले में उत्तराखंड के नौलों को पुनर्जीवित करने के लिए पीपुल्स साइंस इंस्टिट्यूट देहरादून की टीम ‘जल स्वराज़ अभियान के तहत जीवन मांगल्य ट्रस्ट उत्तराखंड, गुजरात के साथ काम कर रही है। पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के रिसर्च टीम मेम्बर इकबाल एहमद बताते हैं कि यहां के नौलों में पीएच और टीडीएस ठीक है पर हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों की तरह ही यहां नौलों के पानी में जो मुख्य समस्या दिख रही हर वह फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के पाए जाने की है। फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया कुल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का एक उप-समूह है। वे लोगों और जानवरों की आंतों और मल में बड़ी मात्रा में दिखाई देते हैं।

फेकल कोलीफॉर्म के बारे में गूगल सर्च करने पर पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए चिंतित दिखते और करोड़ों खर्च करने वाले भारत से जुड़ी ज़्यादा खबरें नही दिखती, जितने भी सर्च रिज़ल्ट आते हैं उनमें ज्यादा अमरीका के हैं। उसमें ही एक जगह यह सवाल मिला कि अगर मेरे पानी में फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया या ई. कोलाई की पुष्टि हो जाए तो क्या होगा? जिसका जवाब था पानी की व्यवस्था में फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया या ई. कोलाई की पुष्टि हाल ही में मल संदूषण का संकेत देती है, जो पानी का सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए तत्काल
स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है। स्वास्थ्य आपात स्थिति का जवाब देना राज्य के स्वास्थ्य विभाग की सर्वोच्च प्राथमिकता है। सभी जल उपयोगकर्ताओं को सचेत करने के लिए 24 घंटे के भीतर एक स्वास्थ्य परामर्श जारी किया जाएगा कि पानी की आपूर्ति से जुड़ा स्वास्थ्य जोखिम है। ज्यादातर मामलों में, पीने और खाना पकाने के लिए उबला हुआ या बोतलबंद पानी के उपयोग की सिफारिश की जाएगी।

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एक नोटिस ग्राहकों को समस्या ठीक करने के लिए की जा रही कार्रवाइयों के बारे में सूचित करेगा और यह भी बताएगा कि कब तक समस्या का समाधान होने की संभावना होगी। विभाग जल्द से जल्द व्यवस्था का निरीक्षण कर पेयजल व्यवस्था की समस्या के समाधान में सहयोग करेगा। संभावित संदूषण स्रोतों को खोजने और खत्म करने के लिए और अधिक पानी के नमूने लिए जाएंगे, स्वास्थ्य परामर्श तब तक प्रभावी रहेगा जब तक स्थिति का समाधान नहीं हो जाता और पानी पीने के लिए सुरक्षित नहीं हो जाता। यह सवाल जवाब पढ़ने के बाद मुझे भारत की वह तस्वीर याद आती है जिसमें बिना वस्त्र गरीब बच्चे होते हैं और पश्चिमी लोग अपने भारत भ्रमण के दौरान उसे कैप्शन के साथ साझा करते हैं।

दूषित पानी पीने की वज़ह से बीमार बच्चों को पहले तो उसकी सही वज़ह मालूम नही रहती होगी और अगर चल भी जाए तो हमारी स्वास्थ्य सेवा उसे कितनी जल्दी ठीक करती होंगी। फेकल कोलीफॉर्म प्रसार को रोकने के उपायों पर इकबाल एहमद कहते हैं कि सबसे जरूरी है कि वाटर रिचार्ज वाली जगहों पर शौच न की जाए और जानवरों को भी वहां से दूर ही रखा जाए। सेप्टिक टैंक के साथ बनने वाले सोख्ता गड्ढ़ों को भी वाटर रिचार्ज वाली जगह नही बनाना चाहिए। पानी के प्रदूषण को जांचने के साथ ही उन्होंने पहाड़ों में चाल-खाल बनाने का कार्य भी शुरू किया है। उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से पानी रोकने के लिए बनाए जाने वाले तालाबों को चाल व खाल कहते हैं, इनकी वजह से जमीन में नमी बनी रहती है।

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पहाड़ गाँव का प्राचीन जल स्रोत “नौला”जो अब बहुत कम गाँवों में दिखते हैं अब हमारी ये धरोहरें विलुप्ति की कगार पर हैं अभी भी हमारे पहाड़ के लोग इस गर्मी के मौसम में इन्ही नौलो के भरोसे में अपनी प्यास बुझा रहा हैआने वाली पीढ़ी के लिए ये जल स्रोत इतिहास के पन्नो एक अध्याय के रूप में रह जायेगा मानव जीवन में जल स्रोतों की अहमियत की बात की जाए तो पहाड़ में जलस्रोत जंगल के बीच खेतों की बीच, चट्टानों के बीच या फिर आबादी के बीच भी दिखाई देती हैं। पहाड़ के जलस्रोतों के संवर्धन की बात करें तो यहां हर जंगल में अनेक जलस्रोत प्राकृतिक रूप से दिखाई देते,हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारा परम्परागत ज्ञान तभी सुरक्षित रह सकता है, जब हम नौले के पास जाएँगे और उस आत्मीयता को महसूस करेंगे।

देखने में आ रहा है कि नौलों के प्रति चिन्तित लोग अधिक हैं। लेकिन नौलों के प्रति उनकी चिन्ता कम और परियोजना के प्रति उसमें आकर्षण अधिक नजर आता है। यदि ईमानदारी से काम किया जाये तो समाज की सहभागिता और प्रशासन के सहयोग से यह काम किया जा सकता है नौला फाउंडेशन ने सामुदायिक सहभागिता से गगास घाटी के सुन्दर गांव थामण में एक पूरी तरह से सुख चुके नौले को पारम्परिक जल सरंक्षण पद्धति को अपनाकर पुनर्जीवित करने में सफलता पायी हैं और पानी भी शुद्ध हैं क्योकि मानवीय हस्तक्षेप नहीं के बराबर हैं और फाउंडेशन की असली चुनौती अल्मोड़ा शहर के पूरी तरह से प्रदूषित हो चुके भूजल व नौले धारों के पानी को शुद्ध करने के लिए तैयार होना पड़ेगा तभी असली परीक्षा होगी क्योकि प्रशासन तो इनके पानी को असुद्ध करने में असमर्थ हैं ।

(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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