त्रासदी के 42 साल : आज के दिन बिहार में हुए भीषण ट्रेन एक्सीडेंट(train accident) से पूरा देश सहम गया था, 800 लोगों की हुई थी मौत - Mukhyadhara

त्रासदी के 42 साल : आज के दिन बिहार में हुए भीषण ट्रेन एक्सीडेंट(train accident) से पूरा देश सहम गया था, 800 लोगों की हुई थी मौत

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त्रासदी के 42 साल : आज के दिन बिहार में हुए भीषण ट्रेन एक्सीडेंट(train accident) से पूरा देश सहम गया था, 800 लोगों की हुई थी मौत

मुख्यधारा डेस्क

2 जून, शुक्रवार शाम 7 बजे ओडिशा के बालासोर में हुई भीषण ट्रेन हादसे में पूरा देश सहम गया था। इस हादसे में 275 यात्रियों की मौत और करीब 1000 लोग घायल हो गए। ऐसे ही 42 साल पहले बिहार में हुए ट्रेन हादसे से पूरा देश हिल गया था।

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आज भी इस ट्रेन हादसे को इतिहास में काला दिन के रूप में याद किया जाता है। तारीख थी 6 जून 1981, मानसून का सीजन और उफनाई हुई बागमती नदी। शाम तकरीबन साढ़े चार का वक़्त। तेज आंधी और बारिश ने मौसम को सुहाना बना दिया था।

इसी मौसम में बिहार के मानसी-सहरसा रेलखंड से 416 डाउन समस्तीपुर बनमनखी ट्रेन सहरसा की तरफ जा रही थी।

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यात्रियों से खचाखच भरी एक ट्रेन मानसी-सहरसा रेल खंड पर बदला घाट-धमारा घाट स्टेशन के बीच बागमती नदी पर बने पुल संख्या-51 पर पलट गई थी। इस ट्रेन में कुल 9 बोगियां थीं। ट्रेन की 9 बोगियां उफनती बागमती में जा गिरीं थी। यह ट्रेन मानसी से सहरसा को जा रही थी। इस हादसे में 800 लोगों की मौत हो गई थी।

बिहार में हुआ रेल हादसा इतना भयानक था कि इतिहास के पन्नों में उसे भारत के लिए काला दिन कहा जाता है। बिहार ट्रेन हादसा पूरी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कई लोगों के तो शव भी बरामद नहीं हो पाए थे।

बरसात का मौसम चल रहा था, शाम का समय था और दिन था 6 जून 1981। अपनों से मिलने की आस लिए हुए सभी यात्री खचाखच भरी हुई ट्रेन में सफर कर रहे थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनके साथ इतना भीषण हादसा हो जाएगा।

9 बोगियों वाली गाड़ी संख्या 416dn पैसेंजर ट्रेन, मानसी से सहरसा की ओर जा रही थी। पैसेंजर ट्रेन केवल एकमात्र ऐसी ट्रेन थी, जो खगड़िया से सहरसा तक का सफर तय करती थी। एकमात्र ट्रेन होने के चलते इसमें बड़ी संख्या में यात्री सफर करते थे। उस दिन भी ट्रेन लोगों से भरी हुई थी।

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अंदर से लेकर बाहर तक लोग लदे हुए थे। जिन यात्रियों को सीट नहीं मिली थी वे ट्रेन के दरवाजों, खिड़कियों पर लटक कर सफर करने के लिए मजबूर थे। यात्री इंजन पर, ट्रेन की छत पर सफर कर रहे थे। कई लोगों के शव कई दिनों तक ट्रेन की बोगियों में ही फंसे रहे थे। इस हादसे में मरने वालों की सरकारी आंकड़े के अनुसार संख्या 300 थी। लेकिन, स्थानीय लोगों के अनुसार हादसे में 800 के करीब लोग मारे गए थे।

इस हादसे को देश के सबके बड़े रेल हादसे के रूप में याद किया जाता है। कहा जाता है कि जब ट्रेन बागमती नदी को पार कर रही थी तभी ट्रैक पर गाय और भैंसों का झुंड सामने आ गया था, जिसे बचाने के चक्कर में ड्राइवर ने ब्रेक मारी थी।

वहीं, यह भी कहा जाता है कि उस समय बारिश तेज थी, आंधी भी थी, जिसके कारण लोगों ने ट्रेन की सभी खिड़कियों को बंद कर दिया था और तेज तूफान होने की वजह से पूरा दबाव ट्रेन पर पड़ा और बोगियां नदी में समा गईं। हालांकि, ड्राइवर ने ब्रेक क्यों लगाई थी, इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है।

बता दें कि ये देश का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा हुआ था।

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विश्व की सबसे बड़ी ट्रेन दुर्घटना श्रीलंका में 2004 में हुई थी। जब सुनामी की तेज लहरों में ओसियन क्वीन एक्सप्रेस समा गई थी। हादसे में 1700 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।

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