जंगल आग से हो रहे राख नहीं टूट रही वन विभाग (Forest Department) की नींद - Mukhyadhara

जंगल आग से हो रहे राख नहीं टूट रही वन विभाग (Forest Department) की नींद

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जंगल आग से हो रहे राख नहीं टूट रही वन विभाग (Forest Department) की नींद

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में हर साल बड़े पैमाने पर वन संपदा आग की भेंट चढ़ रही है। वर्ष 2016 से अब तक के आंकड़ों को देखें तो हर वर्ष जंगलों में आग की औसतन 1553 घटनाएं हो रही है, जिनमें 2605 हेक्टेयर वन क्षेत्र झुलस रहा है। जंगलों में आग का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। एक के बाद एक जंगल आग से राख होते जा रहे हैं प्राणवायु ही नहीं, हम तकरीबन हर आवश्यकता की पूर्ति के लिए वनों पर निर्भर हैं। उत्तराखंड के नागरिक इस बात को अच्छी प्रकार समझते हैं। तभी तो बात वनीकरण की हो या जंगल की आग बुझाने की, प्रदेशवासी बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका का निर्वहन करते आए हैं।

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पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वनों की आग धीरे-धीरे भयावह रूप धारण करती जा रही है। फिर बावजूद इसके चिंता भी कम होने का नाम ले रही। जंगल लगातार सुलग रहे हैं और वन महकमा बेबस है। यह ठीक है कि पहाड़ का भूगोल ऐसा है कि आग पर नियंत्रण किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। वनकर्मी भी मुस्तैद हैं और वे ग्रामीणों के सहयोग से जंगल बचाने में जुटे हुए हैं। बावजूद इसके मौसम के मिजाज के हिसाब से रणनीतिक कमी भी झलक रही है। सूरतेहाल, जल्द बारिश न हुई तो दिक्कतें बढ़ सकती हैं। इस प्रकार के धुएं के संपर्क में आने से अस्थमा के पीड़ित लोगों की स्थिति खराब हो सकती हैं और आंखों, नाक तथा गले में जलन से लेकर हृदय प्रणाली में बदलाव तक स्वास्थ्य पर कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं बच्चे कई कारणों से पर्यावरणीय खतरों जैसे कि जंगल की आग के धुएं के प्रति विशिष्ट रूप से संवेदनशील हैं।

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बच्चों के फेफड़े विकसित और परिपक्व हो रहे होते हैं। बच्चों, विशेषकर छोटे बच्चों में वायुमार्ग छोटे होते हैं और ये कण वायुमार्ग की सतहों पर जमा हो जाते हैं।इसके अलावा बच्चों में पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों को उनके शरीर से प्रभावी ढंग से निकलने में अधिक समय लगता है। इस बीच, बच्चों का व्यवहार और आदतें उन्हें वयस्कों की तुलना में अधिक पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों के संपर्क में ला सकती हैं।उदाहरण के लिए, वे अधिक शारीरिक गतिविधि करते हैं और अधिक समय बाहर बिताते हैं।शारीरिक गतिविधि के उच्च स्तर से शरीर के वजन के प्रति किलोग्राम के हिसाब से अधिक हवा अंदर ली जाती है। लगातार जंगलों में धधक रही आग से जंगली जानवरों पर भी खतरा बढ़ गया है‌ वहीं वन संपदा को भी नुकसान होता जा रहा है।जंगलों में लगातार आग की घटनाओं बढ़ती ही जा रही है। जंगलों को बचाना वन विभाग के लिए भी चुनौती साबित हो रहा है।

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क्षेत्रवासियों ने जंगलों को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने तथा जंगलों को आग के हवाले करने वालों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग उठाई है। वन विभाग और सरकार की लापरवाही से जहां जंगलों में बहुमूल्य लकड़ी जलकर खाक हो रही है वहीं जीव जन्तु भी मर रहे हैं।आग से वन संपदा के साथ ही मवेशियों की चारा पत्ती नष्ट होने का अनुमान है। एक के बाद एक जंगलों के आग से खाक होने के बावजूद वन विभाग के कुभंकरणीय नींद नहीं टूट रही। लोगों ने वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए है।आरोप लगाया है वन विभाग दावे तो खूब कर रहा है पर धरातल में दावे खोखले साबित हो रहे हैं। प्रदेश में 11 हजार 300 से अधिक वन पंचायतें हैं। ग्राम पंचायत स्तर पर जंगल की आग प्रबंधन समितियों का गठन कर दिया गया है। इस बार भी जंगल की आग पर काबू पाने के लिए 15 करोड़ रुपये से अधिक का बजट रखा गया है।

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संसाधन जुटाने के साथ ही जागरूकता व प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर भी इसे खर्च किया जा रहा है। रानीखेत खैरना स्टेट हाइवे सटे छाती गांव से सटे जंगल आग से धधकने से हड़कंप मच गया। देखते ही देखते आग की लपटों ने विकराल रुप धारण कर लिया।आग से कई हेक्टेयर वन क्षेत्र में वन संपदा खाक होने का अनुमान है। देर रात तक जंगल से धुएं का गुबार उठता रहा। पर्वतीय क्षेत्रों में जंगलों के आग से खाक होने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। आए दिन जंगल आग की चपेट में आ रहे हैं जिससे वन संपदा को खासा नुकसान पहुंच रहा है। गर्मीयों से पहले ही जंगलों में बेकाबू होती आग भविष्य के लिए चिंता का विषय बन चुकी है।

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अल्मोड़ा हल्द्वानी हाइवे से सटे जंगलों को नुकसान पहुंचाने के बाद बुधवार को रानीखेत खैरना स्टेट हाइवे से सटे छाती गांव का जंगल आग की चपेट में आ गया। कुछ ही देर में आग ने विकराल रुप धारण कर लिया। जंगल से उठी आग की लपटों से गांव के बाशिंदे भी सख्ते में आ गए। गनीमत रही की आग का रुख आबादी की ओर नही हुआ। जंगल में लगी आग ने वन संपदा के साथ ही मवेशियों की चारा पत्ती को भी जलाकर खाक कर दिया। देर रात तक जंगल धू धू कर जलता रहा। गांवों के बाशिंदों ने जंगलों को आग से बचाने को ठोस उपाय किए जाने की मांग उठाई है जंगलों में आग की बड़ी वजह वन क्षेत्रों में नमी कम होना है।इस मर्तबा सर्दियों से जंगलों के सुलगने का क्रम शुरू होने पर वन महकमे ने प्रारंभिक पड़ताल कराई तो उसमें भी यह बात सामने आई। कि जंगलों में नमी बरकरार रखने पर खास फोकस किया जाए।

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इस बार भी भूमि में नमी के अभाव के कारण जंगलों में आग फैल रही है। वजह ये कि पिछले छह माह से बारिश बेहद कम है। ऐसे में जंगलों में बारिश की बूंदों को गंभीरता से कदम उठाने की जरूरत है। इससे जहां जंगलों में नमी बरकरार रहेगी, वहीं जलस्रोत रीचार्ज होंगे। इस मुहिम पर पूरी गंभीरता से धरातल पर उतारने की जरूरत है। आखिर, सवाल वनों को बचाने का है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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