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उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में औषधीय गुणों से भरपूर एक स्वादिष्ट जंगली फल है ‘तिमला’ Timla

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उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में औषधीय गुणों से भरपूर एक स्वादिष्ट जंगली फल है ‘तिमला’ Timla

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के पारंपरिक खानपान में जितनी विविधता एवं विशिष्टता है, उतनी ही यहां के फल-फूलों में भी है। जो हमारे पहाड़ को प्राकृतिक रूप में संपन्नता प्रदान करती हैं। देवभूमि में बेडू, मेलू, काफल, अमेस, दाड़ि‍म, करौंदा,बेर,जंगली आंवला, खुबानी, हिंसर, किनगोड़, खैणु, तूंग, खड़ीक, भीमल, आमड़ा, कीमू, गूलर, भमोरा,भिनु समेत जंगली फलों की ऐसी सौ से ज्यादा प्रजातियां हैं, जो ना सिर्फ स्वाद में बल्कि सेहत की दृष्टि से भी बेहद अहमियत रखते हैं। इन्हीं में से एक प्रजाति के फल जिसे उत्तराखंड में तिमला कहा जाता है। यह पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर फल है।

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तिमला उत्तराखंड के कई इलाको में पाया जाने वाला जंगली फल हैं। मोरेसी कुल के इस पौधे का वैज्ञानिक नाम फिकस ऑरिकुलेटा है। हिंदी में तिमला को अंजीर कहते हैं और अंग्रेजी में इसे एलिफेंट फिग कहते हैं। जबकि स्थानीय़ भाषा में तिमला को तिमल, तिमलू, तिमली आदि नामों से जाना जाता है। तिमला समुद्रतल से 800 से2000 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है। उत्तराखंड के अलावा यह फल भूटान, नेपाल,हिमाचल,म्यामार, दक्षिण अमेरिका,वियतनाम आदि जगहों में भी पाया जाता है। उत्तराखण्ड में तिमले का ना तो उत्पादन किया जाता है और ना ही खेती की जाती है। यह एग्रो फॉरेस्ट्री के अंतर्गत खुद ही खेतों की मेंड पर उग जाता है। वहीं पक्षी भी इसके बीजों को इधर से उधर ले जाने में सहयोग करते हैं। कई कीट और पक्षी इसके परागकण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। तिमला फल प्रकृति की अनूठी रचना है यह तना भी है और फूल भी है। जिसका खिलना लोगों को दिखाई नही देता है। दरअसल बाहरी आवरण तने का हिस्सा होता है और इसके सूक्ष्म फूल इसके अन्दर होते हैं जो दिखाई नहीं देते।

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वहीं दंतकथाओ के अनुसार कहा जाता हैं की जिसे भी वह फूल दिखाई देता है वह भाग्यशाली माना जाता है। तिमला फल प्रकृति की अनूठी रचना है यह तना भी है और फूल भी है। जिसका खिलना लोगों को दिखाई नही देता है। दरअसल बाहरी आवरण तने का हिस्सा होता है और इसके सूक्ष्म फूल इसके अन्दर होते हैं जो दिखाई नहीं देते। तिमला एक ऐसा फल है, जिसे स्थानीय लोग, पर्यटक और चरवाहा बड़े चाव से खाते हैं। जबकि पहाड़ों में बच्चों की पहली पसंद आज भी इसे माना जाता है। यह फल रसीला और गूदेदार होता है। इसका रंग हल्का पीला, गहरा सुनहरा या गहरा बैंगनी हो सकता है। इसका पूरा फल छिलके और गूदे के साथ खाया जाता है। देवभूमि में तिमला को धार्मिक रूप से विशेष महत्व दिया गया है। ऐसी कोई भी छोटी बड़ी पूजा नहीं है जिसमें तिमले के पत्ते का इस्तेमाल ना होता हो। क्योंकि इस पेड़ को पीपल के पेड़ जैसा पवित्र माना गया है। इसके पेड़ के पत्तों को पूजा पाठ के कार्यो में और पत्तल बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। तिमला एक औषधीय फल है या यूं कह सकते हैं, एक औषधीय पौधा है। इसमें औषधीय गुणों का भरपूर भंडार है। पारंपरिक रूप में तिमले को कई शारीरिक विकारों, जैसे अतिसार, घाव भरने, हैजा और पीलिया जैसी गंभीर बीमारियों की रोकथाम में प्रयोग किया जाता है।

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कई अध्ययनों के अनुसार तिमला का फल खाने से कई सारी बीमारियों के निवारण के साथ-साथ आवश्यक पोषक तत्वों की भी पूर्ति हो जाती है। इसमें पोटेशियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम,कैल्शियम, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन, विटामिन ड्ड और ड्ढ आदि पोषकतत्व पाए जाते हैं। इंटरनेशनल जर्नल फार्मास्युटिकल साइंस रिव्यू रिसर्च के अनुसार तिमला व्यावसायिक रूप से उत्पादित सेब और आम से भी बेहतर गुणवत्ता वाला फल है। पके हुये तिमले का फल ग्लूकोज, फ्रुक्टोज व सुक्रोज का भी बेहतर स्रोत माना गया है, जिसमें वसा और कोलस्ट्रोल नहीं होता है। इसमें अन्य फलों की अपेक्षा काफी मात्रा में फाइबर और फल के वजन के अनुपात में 50 प्रतिशत तक ग्लूकोज पाया जाता है। जिसकी वजह से कैलोरी भी बेहतर मात्रा में पायी जाती है। तिमला ना केवल पौष्टिक और औषधीय महत्व का फल है, बल्कि पर्वतीय क्षेत्रों की
पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। तिमला के पेड से सफ़ेद रंग का दूध जैसा द्रव निकलता है यदि किसी को काँटा चुभ जाये तो इसका दूध उस जगह पर लगा दो तो थोड़ी देर बाद कांटा बड़ी आसानी से बहार निकाल सकते है। इसके अलावा तिमला के पत्ते चारे का काम करती हैं। पहाड़ों में दुधारू पशुओं को इसके पत्ते खिलाया जाता है।

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कहा जाता है कि तिमला के पत्तों से दुधारू पशु ज्यादा दूध देती है। तिमला एक मौसमी फल है। इसके मौसम में इसे फल के रूप में सेवन करते हैं। कच्चे तिमला की लजीज चटपटी सब्जी भी बनाई जाती है। साथ ही इसका अचार भी बनाया जाता है। इसके अलावा जैम ,जैली, फॉर्मास्युटिकल, न्यूट्रास्युटिकल और बेकरी उद्योगों में प्रयोग किया जाता है। तिमला के फल मे लगभग 1.76% तेल पाया जाता है। तिमला के तेल मे चार फैटी एसिड्स (वोसीसिनिक एसिड, अल्फा लाइनोलेनिक एसिड, लाइनोलेनिक एसिड तथा ऑलिक एसिड) पाये जाते है, जो कि कैंसर तथा दिल के विभिन्न बीमारियो के इलाज मे कारगर है। नियमित संतुलित मात्रा मे तिमला के फल का सेवन करने से कोलेस्ट्रोल का स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा तिमला का फल जेम, जेली तथा अचार आदि बनाने मे भी किया जाता है। पारिस्थितिक संतुलन मे तिमला का पौधा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्राचीन समय मे तिमला के पत्तियो का प्रयोग खाना खाने की प्लेट (पत्तल) के रूप मे किया जाता था। किंतु वर्तमान मे प्लास्टिक के प्लेटो का अत्यधिक प्रयोग हो रहा है, जिस कारण प्रतिवर्ष पर्यावरण प्रदूषण मे वृद्धि हो रही है। तिमला के पत्तियो का प्रयोग धार्मिक कार्यों मे भी किया जाता है, जिस कारण इसे पीपल के पेड़ की तरह पवित्र माना जाता है। सरकार यदि इस प्रकार के पौष्टिक एवं औषधिय गुणोयुक्त जंगली फलो के लिए कोई ठोस नीति जैसे मूल्यवर्धन, मार्केटिंग, नेटवर्किंग बनाये तो यह किसानो तथा नौजवानो के लिए स्वरोजगार व आर्थिकी हेतु एक बेहतरीन विकल्प बन सकता है।

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तिमिल एक मौसमी फल होने के कारण कई सारे उद्योगों में इसको सुखा कर लम्बे समय तक प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में तिमले का उपयोग सब्जी, जैम, जैली तथा फार्मास्यूटिकल, न्यूट्रास्यूटिकल एवं बेकरी उद्योग में बहुतायत मात्रा में उपयोग किया जाता है। चीन में तिमिल की ही एक प्रजाति फाईकस करीका औद्योगिक रूप से उगायी जाती है तथा इसका फल बाजार में पिह के नाम से बेचा जाता है। पारम्परिक रूप से चीन में हजारो वर्षो से तिमले का औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है। FAOSTAT के अनुसार विश्व भर में 1.1 मिलियन टन तिमले का उत्पादन पाया गया जिसमें सर्वाधिक टर्की 0.3 , इजिप्ट 0.15 , अल्जीरिया 0.12, मोरेक्को 0.1 तथा ईरान 0.08 मिलियन टन उत्पादन पाया गया। यदि तिमला के तेल से दवाओं का निर्माण किया जाएगा तो बहुत संभव है कि गंभीर रोगों की दवाओं की कीमत भी कम होगी, क्योंकि कच्चे माल के रूप में तिमला पर्वतीय क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। जिस तिमला की फलों में कहीं भी प्रमुखता से गिनती नहीं की जाती, उसके भीतर कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की रोकथाम के गुण मौजूद हैं।

(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं)

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