सिलक्यार टनल हादसे (Silkyar Tunnel accident) से क्या सीखेंगे सबक!
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तरकाशी की सिलक्यारा टनल पर दुनिया की नजरें टिकी हैं, जहां 12 नवंबर से मजदूरों की सांसें अटकी हुई हैं। इस टनल से मजदूरों को जिंदा निकालने की जद्दोजहद चल रही है। टनल बनाने का मकसद यमुनोत्रीधाम की दूरी कम करना है, लेकिन इस हादसे ने टनल से जुड़े कई बड़े प्रोजेक्ट्स के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बता दें कि ऑल वेदर रोड की सिलक्यारा टनल की बात करें, तो साढ़े 4 किलोमीटर की इस टनल से यमुनोत्री धाम की दूरी 26 किमी कम होगी। इसी तरह ऋषिकेश-कर्णप्रयागा रेल लाइन की लंबाई 125 किमी है जिसमें 105 किमी रेल लाइन टनल के अंदर से गुजरेगी। 17अलग अलग टनल से होकर रेल ऋषिकेश से कर्णप्रयागा पहुंचेगी, इस प्रोजेक्ट पर अभी काम चल रहा है। ऐसा ही प्लान मसूरी में टनल बनाने का है, जाम से छुटकारा दिलाने के लिए बनने वाली, ये टनल 4 किलोमीटर की होगी, जिसमें 2 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे।
वहीं, देहरादून और टिहरी के बीच भी टनल बनाने का प्लान है, इस प्रोजेक्ट में 4 से 5 टनल बनेंगी, जिनकी लंबाई करीब 20 किमी होगी, तो देहरादून और टिहरी की दूरी 100 किमी से घटकर करीब 40 किलोमीटर रह जाएगी। इन बड़ी योजनाओं पर आगे बढ़ना तो सही है, लेकिन सवाल ये कि क्या उत्तराखंड की पहाड़ियां टनल जैसे प्रोजेक्ट्स के लिए कितनी सुरक्षित हैं?
फॉरेस्ट चीफ और जियोलॉजी की मानें, तो उत्तराखंड के नए और कमजोर पहाड़ों में ऐसे प्रोजेक्ट नहीं होने चाहिए, और बहुत जरूरी हो, तो फिर यूरोप की तरह हाई क्वालिटी काम होना चाहिए। उत्तरकाशी के सिलक्यारा में टनल हादसा सामने आ गया। सुरंग के एक हिस्से में भारी मलबा आने से इस हादसे में करीब 41 मजदूर पिछले 13 दिनों से सुरंग के भीतर फंसे हैं। उन्होंने सुरक्षित निकालने की जंग देश-दुनिया की सुर्खियां बनी हैं। बचाव एवं राहत की मुहिम को सुरंग के भीतर पाइप लाइन डालकर अंजाम तक पहुंचाने के प्रयास युद्ध स्तर पर चल रहे हैं। इस हादसे से सबक लेने के बाद सतर्क हुई एनएचएआई ने नई एडवाइजरी जारी की है। कंपनी अब सुरंग की खोदाई को आगे बढ़ाने के साथ-साथ किसी भी संभावित खतरे या हादसे से निपटने के लिए राहत और बचाव कार्यों के लिए पाइप भी डालेगी।अभी प्रस्तावित सुरंग की गहराई ज्यादा नहीं है। लेकिन, जैसे-जैसे सुरंग की ड्रिलिंग गहरी होती जाएगी, उसके साथ डेढ़ सौ एमएम की पाइप बिछाई जाएगी। किसी भी आपात स्थिति में इसके जरिये सुरंग के भीतर खाना या फिर अन्य सामग्री पहुंचाई जा सकेगी। जरूरत पड़ने पर अन्य राहत और बचाव कार्य भी किए जा सकेंगे।
सुरंग के ऊपर एग्जॉशन का भी पूरा प्रबंध किया जाएगा, ताकि आपात स्थिति में घुटन या फिर धूल उड़ने की समस्या से निपटा जा सके। नजदीकी अस्पताल में सभी स्वास्थ्य सुविधाएं और एंबुलेंस को स्टैंड बाय रखने के बारे में भी सूचित कर दिया है।सुरंग निर्माण के लिए एनएचएआई की एडवाइजरी प्राप्त हो गई है। नई गाइडलाइन पर अमल शुरू कर दिया गया है। सिलक्यारा टनल को बनाने में लापरवाही हुई, ये साबित हो चुका है। तमाम कोशिशों के बावजूद अबतक कुछ हाथ नहीं लगा है, ऐसे में उत्तराखंड के कमज़ोर पहाड़ों में टनल प्रोजेक्ट्स
बनाने से पहले, जरूरी है कि सिलक्यारा टनल की घटना से सबक सीखा जाए और आगे के लिए भविष्य की राह को सुगम किया जाए। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों का पालन करने के लिए देशभर में सभी 29 निर्माणाधीन सुरंगों का सुरक्षा आडिट करेगा।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने सात दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी के सिलक्यारा निर्माणाधीन सुरंग के रेस्क्यू को लेकर केंद्र और राज्य की विभिन्न एजेंसियां दिनरात काम कर रही हैं, लेकिन ये एजेंसियां 14 दिन बाद भी श्रमिकों को बाहर निकालने में सफलता नहीं पायी हैं. इसका कारण कभी ऑगर मशीन में ड्रिलिंग के दौरान टेक्निकल फाल्ट आना तो कभी मशीन के रास्ते में सुरंग के सरिया, रॉड और मलबा आने के कारण खराबी पैदा होना है। इसके कारण पिछले तीन दिन से श्रमिकों के बाहर निकालने में आज और कल हो रहा है। अब यही सवाल है कि आखिर कब तक सभी श्रमिक सुरंग से सकुशल बाहर आ सकें फंसे श्रमिकों को बचाने लिए केंद्र व
राज्य की करीब 19 एजेंसियां रेस्क्यू ऑपरेशन चला रही हैं। देशभर से कई बड़ी मशीनें यहां ड्रिलिंग और बोरिंग के लिए पहुंचाई गईं। देश के कई बड़े वैज्ञानिक संस्थानों के विशेषज्ञ भी सिलक्यारा पहुंचे। वहीं, विदेशी एक्सपर्ट भी बुलाए गए।
हादसे के रेस्क्यू ऑपरेशन को कवर करने के लिए देश-विदेश के तमाम बड़े मीडिया संस्थान सिलक्यारा पहुंचे। ऑगर मशीन से ड्रिलिंग के दौरान बार-बार आ रही बाधाओं के कारण बचावकर्ता हाथ से ड्रिलिंग करने के विकल्प पर विचार कर रहे हैं। अधिकारियों ने को यह जानकारी दी।श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए सुरंग के ढहे हिस्से में की जा रही ड्रिलिंग शुक्रवार रात पुन: रोकनी पड़ी, जो बचाव प्रयासों के लिए एक और झटका है। एक अधिकारी ने बताया कि ऑगर मशीन शुक्रवार को ड्रिलिंग बहाल होने के कुछ देर बाद स्पष्ट रूप से किसी धातु की वस्तु के कारण बाधित हो गई।इससे एक दिन पहले अधिकारियों को ऑगर मशीन में तकनीकी गड़बड़ियों के कारण बचाव कार्य को रोकना पड़ा था। उन्होंने कहा कि लगातार आ रही बाधाओं के कारण ऑगर मशीन से ड्रिलिंग और मलबे के बीच इस्पात का पाइप डालने का काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है। श्रमिकों को इस पाइप से बाहर निकालने की योजना है।
अधिकारी ने बताया कि ऐसे में हाथ से ड्रिलिंग करने पर विचार किया जा रहा है लेकिन इसमें समय अधिक लगता है।चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह गया था, जिससे उसमें काम कर रहे श्रमिक मलबे के दूसरी ओर फंस गए थे। तब से विभिन्न एजेंसियां उन्हें बाहर निकालने के लिए युद्धस्तर पर बचाव अभियान चला रही हैं। अंतरराष्ट्रीय सुरंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स ने कुछ दिन पहले कहा था कि लंबवत ड्रिलिंग अधिक समय लेने वाला और जटिल विकल्प है, जिसके लिए सुरंग के ऊपरी हिस्से पर अपेक्षाकृत संकीर्ण जगह के कारण अधिक सटीकता और सावधानी बरतने की आवश्कयता होती है। अर्नाल्ड को भूमिगत सुरंगों में महारत हासिल है। उन्हें भूमिगत अभियानों में आने वाली परेशानियों के तकनीकी हल खोजने वालों में से गिना जाता है। इसके अलावा उनकी पहचान कठिन तकनीकी और इंजीनियरिंग से जुड़े मामलों में खतरों को कम करने वाले विशेषज्ञ और किसी भी घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया के सलाहकार के रूप में भी होती है।
अर्नाल्ड को मार्च 2011 में टनलिंग और फायर सेफ्टी में योगदान के लिए एलन नीलैंड ऑस्ट्रेलियन टनलिंग सोसाइटी अवार्ड दिया गया था। सुरंग में फंसे श्रमिकों के परिजन मशीन से ड्रिलिंग में बार-बार बाधा आने और वांछित प्रगति नहीं मिल पाने के कारण धीरे-धीरे धैर्य खो रहे हैं।नए सिरे से विकास नीति यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार तय हो ,तभी उत्तराखंड राज्य अपने वजूद को कायम रख सकता है।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )