Header banner

कुदरत का अनमोल उपहार है सफेद बुरांस (White Burans)

admin
white

कुदरत का अनमोल उपहार है सफेद बुरांस (White Burans)

harish

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

मध्य हिमालयी क्षेत्रों में अमूमन लाल बुरांस की लालिमा और अद्भुत छठा बसंत की शुरूआत में देखने को मिलती है। लेकिन इन सब से अलग और अद्भुत है सफेद बुरांस का पहाड़ी जीवन के सामान्य वातावरण में खिलना। सामान्य तौर पर उत्तराखंड में वृक्ष पर खिलने वाला लाल बुरांस का फूल समुद्र तल से 1500 से 2500 मीटर के मध्य खिलता है। उससे ऊपर खिलने वाला बुरांस के सामान प्रजाति वाले पुष्प में सफेदी और गुलाबीपन होता है जिसे जहरीला माना जाता है। लेकिन सफेद बुरांस का सामान्य ऊंचाई पर खिलना अद्भुत तो है ही साथ ही ये शोध का विषय भी है। यह कुदरत का करिश्मा ही है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला सफेद बुरांस का फूल जोशीमठ ब्लॉक में समुद्र- तल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सेलंग गांव में खिल रखा है।

यह भी पढें : देश-दुनिया में छाए उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage of Uttarakhand)

लोग हैरत में हैं कि आखिर यह सफेद बुरांस इतनी कम ऊंचाई पर कैसे खिल रहा, जबकि इस ऊंचाई पर राज्य वृक्ष लाल बुरांस का फूल ही खिलता है। इन दिनों भी इस पेड़ के आसपास का पूरा क्षेत्र लाल बुरांस की लालिमा बिखेर रहा है।सफेद बुरांस समुद्रतल से 2900 मीटर से 3500 मीटर की ऊंचाई तक खिलता है। लेकिन, सेलंग का यह सफेद बुरांस पिछले कई सालों से उत्सुकता जगाता आ रहा है। प्रदेश में इतनी कम ऊंचाई पर सफेद बुरांस कहीं भी नहीं खिलता है। यह ऊंचाई सिर्फ लाल बुरांस के लिए मुफीद है। यही नहीं, हिमालयी क्षेत्र में खिलने
वाले सफेद बुरांस के पेड़ भी इस पेड़ की तुलना में काफी बौने होते हैं। यह पेड़ लगभग 20 मीटर ऊंचा है, जबकि सामान्य पेड़ पांच से छह मीटर ऊंचे होते हैं।

सेलंग निवासी बताते हैं कि पहाड़ के भूगोल से परिचित हर व्यक्ति इस बुरांस को देखकर आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहता। लिहाजा इस दुर्लभ पेड़ को संरक्षित किए जाने की जरूरत है। वन विभाग को इस दिशा में पहल करनी चाहिए।वनस्पति शास्त्री कहते हैं कि कभी-कभी किन्हीं कारणों से सफेद बुरांस का बीज निचले स्थानों पर पहुंच जाता है। अलग एन्वायरनमेंटल सेटअप के कारण इसके पेड़ की प्रथम व द्वितीय पीढ़ी में मॉफरेलॉजिकल बदलाव आ जाता है। यही नहीं, पांचवीं व छठी पीढ़ी में तो आनुवांशिक गुणों के बदलने की भी संभावना रहती है। ऐसे में यह नई प्रजाति या सब प्रजाति बन जाती है।

प्रो. सुमन राणा के अनुसार सफेद बुरांस का यह पेड़ अभी प्रथम पीढ़ी का है। यानी इसमें सिंगल स्टेम है। लिहाजा यह बदलाव अस्थायी बदलाव माना जाएगा।यह सफेद बुरांस रोडोडेंड्रॉन कैम्पेनुलेटम प्रजाति का है। स्थानीय भाषा में सफेद को लोग चिमुल, रातपा जैसे नामों से जानते हैं। छह माह बर्फ की चादर ओढ़े रहने पर मार्च आखिर से जब बर्फ पिघलनी शुरू होती है, तब सफेद बुरांस के तने बाहर निकलते हैं और इन पर फूल खिलने लगते हैं।

यह भी पढें : आपदा (Disaster): उत्तराखंड में पानी के तेज बहाव में फंसी कार, लोगों ने रेस्क्यू अभियान चलाकर सभी को बचाया, राज्य के 7 जिलों में बारिश का अलर्ट

सामान्यतौर पर सफेद बुरांस के फूल एक से दो माह में आठ से दस दिन तक खिले रहते हैं। कई जगह देर से बर्फ पिघलने पर यह देर से भी खिलता है। सामान्यतौर पर सफेद बुरांस के फूल  खिले रहते हैं। कई जगह देर से बर्फ पिघलने पर यह देर से भी खिलता है। एलोपैथिक दवाओं के निर्माण में भी सफेद बुरांश का महत्वपूर्ण योगदान है। बुरांश की पत्तियों व तने में फिनोलिक एसिड होता है, जिस कारण इसका प्रयोग एचआईवी से लड़ने की दवाइयां बनाने में भी किया जाता है। हालांकि सफेद बुरांश जहरीला होता है, इसलिए दवाइयों में इसका प्रयोग पारंपरिक औषधि के रूप में सिर्फ लेप बनाने के लिए ही किया जाता है।

वहीं सफेद बुरांश का एक सांस्कृतिक पक्ष भी है क्योंकि जहां यह फूल पाए जाते हैं, वहां इनका उपयोग फूलदेई त्योहार के समय पूजा के लिए भी किया जाता है। इस तरह यह पेड़ अपने आप में पारंपरिक औषधि, सांस्कृतिक पक्ष और पर्यावरण की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए इनका संरक्षण बेहद जरूरी है।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

Next Post

अच्छी खबर: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (Pradhan Mantri Gram Sadak Yojana) में 83 सड़कों के लिए मिलेगी 685 करोड़ की राशि, प्रदेश में बनेंगी 827 किमी. ग्रामीण सड़कें

अच्छी खबर: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (Pradhan Mantri Gram Sadak Yojana) में 83 सड़कों के लिए मिलेगी 685 करोड़ की राशि, प्रदेश में बनेंगी 827 किमी. ग्रामीण सड़कें केन्द्रीय ग्रामीण विकास और पंचायतीराज मंत्री गिरीराज सिंह से  ग्राम्य विकास मंत्री […]
g 1 3

यह भी पढ़े