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उत्तराखंड के इस हादसे का जिम्मेदार कौन?

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उत्तराखंड के इस हादसे का जिम्मेदार कौन?

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

जिस दिन पूरा देश रोशनी में सराबोर था उस दिन इन मजदूरों के घर अंधेरा छा गया जब इनके परिजनों को पता चला कि इनके अपने सिल्क्यारा टनल में फंस गए हैं। आखिर ये हादसा क्यों हुआ? क्या इस हादसे को रोका जा सकता था और इस घटना के पीछे जिम्मेदार कौन है इसी के बारे में बताएंगे दिन था रविवार। तारीख थी 12 नवंबर। सुबह के5.30 बजे थे जब उत्तरकाशी में सिलक्यारा से बड़कोट के बीच बन रही निर्माणाधीन सुरंग धंस गई। यह घटना सुरंग के सिलक्यारा वाले हिस्से में 60 मीटर की दूरी में मलबा गिरने के वजह से हुई। जिसमे 41 मजदूर फंस गए। दरअसल इस टनल को बनाने का मकसद यमुनोत्रीधाम की दूरी कम करना था।अब इससे दो सवाल उठते हैं की पहला ये आपदा आई कैसे ? और दूसरा किसकी लापरवाही के वजह से इतना बड़ा हादसा हुआ ? कुछ विशेषज्ञ चार धाम बारहमासी राजमार्गों को बनाने,
खासकर सड़कों के चौड़ीकरण के लिए अपनाए जा रहे तरीकों को इसका जिम्मेदार मान रहे हैं।

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विशेषज्ञों का कहना है की”ये सभी मौसम के अनुकूल सड़कें उत्तराखंड के लिए एक डिजास्टर हैं, खासकर उनके चौड़ीकरण के लिए इस्तेमाल की जा रही गलत तकनीके,यदि आप ढलानों को परेशान करते हैं, तो भूस्खलन जैसी आपदाएँ अपरिहार्य हैं।”आपदा आने को लेकर प्रख्यात पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा के मुताबिक कि यदि पारिस्थितिक चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया तो उत्तरकाशी के सिल्क्यारा में जो घटना हुई है वैसी घटनाएं होती रहेंगी। रिपोर्ट्स के अनुसार,उत्तराखंड का जब गठन हुआ था उसके बाद पहले दशक में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बहुत कम थी। वहीं 2010 के बाद प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में काफी तेजी से वृद्धि हुई है।इस साल की शुरुआत में, जोशीमठ में भी भूमि धंसने का एक मामला सामने आया था, जहां वहां के कुछ निवासियों ने समस्या के लिए एनटीपीसी की 520 मेगावाट की तपोवन-विष्णुगाड जलविद्युत परियोजनाको जिम्मेदार ठहराया था।

सिलक्यारा में 853.79 करोड़ रुपये की लागत से बन रही 4.5 किमी लंबी सुरंग में गंभीर सुरक्षा खामी सामने आई है। डीपीआर में एस्केप टनल (निकास सुरंग) का प्रविधान होने के बावजूद निर्माण कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग ने यह सुरंग बनाई ही नहीं। यही कारण है कि सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों का जिंदगी खतरे में है। यहां आम आदमी की जिंदगी की कीमत नमक के कीमत से भी कम है तो क्यों कोई उनकी सुरक्षा की परवाह करेगा। नियम के अनुसार ,तीन किलोमीटर या इससे अधिक लंबी सुरंग के साथ अनिवार्य रूप से निकलने का सुरंग बनाई जानी चाहिए, लेकिन यहां नियमों को हवा में उड़ा दिया गया।

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हैरानी की बात ये है कि कागजों में बाकायदा निकलने का  सुरंग का डिजाइन तैयार किया गया है। यह डिजाइन बीते 16 नवंबर को घटनास्थल पर पहुंचे सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल (सेनि) भी देख चुके हैं। इस सुरंग में भी अगर इमरजेंसी एक्जिट की व्यवस्था होती तो फंसे हुए श्रमिक आसानी से बाहर आ सकते थे।इसके साथ ही टनल में आपातकाल में बचाव के लिए ह्यूम पाइप क्यों नहीं था यह कंपनी की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाता है। यह सीधे तौर पर निर्माण करा रही कंपनी की लापरवाही को बताता है। लेकिन, यह लापरवाही तब अपराध बन जाती है जब यह पता चलता है कि पाइप तो था मगर उसे कुछ समय पहले ही निकाल लिया गया था।

दरअसल, सुरंग निर्माण की शुरुआत में ही आपातकाल में बचाव के लिए ह्यूम पाइप बिछाया जाता है। जहां तक टनल की खोदाई हो जाती है वहां तक इस पाइप को बढ़ाया जाता है। इस ह्यूम पाइप को तीन साल पहले सुरंग के संवेदनशील क्षेत्र में बिछाए गए थे, जिन्हें एक महीने पहले अचानक हटा दिया गया। ऐसा क्यों किया गया, इसका निर्माण कंपनी के अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है। फिर शुक्रवार को डेंजर जोन सामने आने के बाद संवेदनशील क्षेत्र में 15 ह्यूम पाइप बिछाए गए, ताकि सुरंग में फंसे श्रमिकों से बातचीत बनाए रखने के साथ उन तक भोजन, आक्सीजन व दवाएं पहुंचाने वाले पानी निकासी के पाइप तक रेस्क्यू टीम सुरक्षित आवाजाही कर सके। बहरहाल, इस हादसे से उत्तराखंड सरकार क्या सबक लेती है और क्या बदलाव करती है जिससे आगे ये हादसा न हो ये देखने वाली बात होगी। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल, राज्य आपदा प्रतिवादन बल, भारत तिब्बत सीमा पुलिस, सीमा सड़क संगठन के 160 बचावकर्मियों का दल दिन रात बचाव कार्यों में जुटा हुआ है। फंसे श्रमिकों की सलामती के लिए एक स्थानीय पुजारी ने मौके पर पूजा भी संपन्न कराई। गंगोत्री मंदिर के कपाट बंद होने के अवसर पर श्रमिकों के सकुशल बाहर आने के लिए प्रार्थना भी की गयी।

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आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सुरंग के अंदर जाकर अधिकारी पाइप के जरिए मजदूरों से बात कर उनका हौसला बढ़ा रहे हैं। प्रशासन एवं पुलिस के अधिकारी मजदूरों के परिजनों को बचाव प्रयासों की जानकारी देते हुए उनकी श्रमिकों से बात करा रहे हैं। उत्तरकाशी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी आरसीएस पंवार ने कहा कि सुरंग के पास एक छह बिस्तरों का अस्थाई चिकित्सालय तैयार कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा मौके पर 10 एंबुलेंस के साथ मेडिकल टीमें भी तैनात हैं जिससे श्रमिकों को बाहर निकलने पर उन्हें तत्काल चिकित्सीय मदद दी जा सके। मुख्यमंत्री सुरंग में फंसे श्रमिकों तथा उन्हें बाहर निकालने के लिए की जा रही कार्रवाई के बारे में अधिकारियों से निरंतर जानकारी ले रहे हैं।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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