पहाड़ों (mountains) में क्यों हो रही है भारी बारिश?
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
जून के दूसरे पखवाड़े से शुरू हुए मानसून में इस वर्ष सामान्य बारिश नहीं, बल्कि सीधे अलर्ट जारी हो रहा है।बेहद कम समय में एक निर्धारित क्षेत्र में अत्यधिक बारिश होने से भूस्खलन व बाढ़ से तबाही जैसे हालात सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिक इसके पीछे वातावरण में कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैस के इजाफे से तापमान में आ रही बढ़ोतरी को मुख्य कारण मान रहे हैं। साथ ही मानसून और पश्चिमी विक्षोभ के एक साथ सक्रिय होना भी अहम कारण है, जिससे पश्चिमी हिमालय से मध्य हिमालय तक का क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित है।
बता दें कि 15 जून से दस सितंबर तक के मानसून काल में साल की सर्वाधिक बारिश रिकॉर्ड की जाती है, जिस पर पहाड़ों की खेती और सामान्य जनजीवन निर्भर करता है। मगर बीते कुछ वर्षों से मानसून में सामान्य बारिश नहीं, बल्कि भारी बारिश का अलर्ट ही जारी हो रहा है। भारी बारिश से पहाड़ों पर भूस्खलन तो मैदानों में जलभराव जैसे परिणाम सामने आ रहे हैं। इसी वर्ष पूरे मानसून सीजन का करीब एक माह से अधिक समय अलर्ट जारी रहा, जिसने कई क्षेत्रों में भारी तबाही भी मचाई।
मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि बीते कुछ वर्षों में पहाड़ों पर बढ़ते निर्माण कार्य, वाहनों का दबाव और अन्य मानवीय हस्तक्षेप का सीधा असर वातावरण पर पड़ रहा है। वायुमंडल की गति तेज हो रही है, जिससे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड में इजाफा हो रहा है, जो कि तापमान बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारक है। पहाड़ों अथवा मैदानों पर अत्यधिक निर्माण कार्य, वाहनों के संचालन और वन क्षेत्र सिकुड़ने के कारण
धरातल के ऊपर वायुमंडल में हीट आइलैंड बन गए हैं, जिस कारण धरातल की नमी तेजी के साथ वाष्प बनकर वायुमंडल की ओर बढ़ती है। उत्प्लावन बल इस नमी को तेजी के साथ ऊपर की ओर उठाता है। धरातल से एक किमी वायुमंडल की ओर जाने पर करीब छह डिग्री तापमान में गिरावट आने लगती है, जिससे जल्दी ही यह नमी बूंदों और बादल में तब्दील हो जाती है। तेजी से वाष्पन होने के कारण बादल बड़ा स्वरूप ले लेता है, जिसे नीचे को खींचने के लिए गुरुत्वाकर्षण बल लगता है।
वह सीमा जहां पर उत्प्लावन बल और गुरुत्वाकर्षण बल का आपसी संतुलन बिगड़ता है तो बड़ी बड़ी बूंदों के रूप में कम समय में बहुत तेज बारिश होती है, जो कि इस समय मानसून के दौरान देखने को मिल रहा है। तापमान बढ़ोतरी के अलावा अतिवृष्टि के लिए मानसूनी हवाओं और पश्चिमी विक्षोभ का भी एक साथ सक्रिय हो जाना बड़ा कारण है, जो कि बड़े भूक्षेत्र को प्रभावित करती है। 1995, 2013 और बीते जुलाई
में हिमाचल मंडी में अतिवृष्टि से मची तबाही इसका ही परिणाम है। पश्चिमी हिमालय से मध्य हिमालय तक इसका असर देखने को मिला। बताया कि दोनों के एक साथ सक्रिय होने से एक घंटे में सौ मिमी से अधिक बारिश हो जाती है, जो बादल फटने जैसे हालत है। यह घटना बड़े भूक्षेत्र पर लंबे समय तक चल सकती है।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)