योग्य कार्यकर्ताओं पर भारी उत्तराखंड मृतक आश्रित नारी
भारत सरकार ने विभिन्न नौकरियों में मृतक आश्रितों के पद समाप्त कर दिए हैं, किंतु नेताओं के लिए यह व्यवस्था शानदार तरीके से चल रही है।
पिथौरागढ़ से उपचुनाव में चंद्रा पंत की जीत के बाद उत्तराखंड में महिला विधायकों की संख्या पहली बार सबसे ज्यादा होने वाली है। मीना गंगोला, इंदिरा हृदयेश, रितु खंडूरी, ममता राकेश, मुन्नी देवी शाह वर्तमान में उत्तराखंड की विधानसभा में है।
देशभर की राजनीति में परिवारवाद पर लंबे-लंबे भाषण देने वाले नेताओं के साथ-साथ सोशल मीडिया के वे क्रांतिकारी भी तब मौन हो जाते हैं, जब किसी विधायक की मृत्यु पर उसके परिजनों को टिकट देने का काम किया जाता है। मजेदार बात तो यह भी रहती कि बरसों से मेहनत करने वाला उसी सीट का कार्यकर्ता भी नतमस्तक हो जाता है। मतलब यह कारोबार एलआईसी की भांति “जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी” चलने वाला है।उत्तराखंड में काबीना मंत्री रहे सुरेंद्र राकेश की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ममता राकेश, विधायक मदन लाल शाह की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी मुन्नी देवी शाह और अब प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत को पिथौरागढ़ विधानसभा उपचुनाव में प्रत्याशी बनाकर एक बात और स्पष्ट हो गई है कि यहां योग्यता नहीं, परिवारवाद के भरोसे और मृत्यु से उपजी सहानुभूति ही नैया पार लगा सकती है।
परिवारवाद की गंदी राजनीति पंचायत चुनाव में भी देखने को मिली, जहां मंत्री विधायकों की कुटुंबदारी ब्लॉक प्रमुख से लेकर जिला पंचायतों में डंके की चोट पर कुर्सी पर आसीन हो रहे हैं। यानि दरी बिछाने वाले पहले नेता जी का झोला बोकते थे, अब उनकी बीवियों के झोले बोकने को मजबूर हैं।
बहरहाल, राजनीत का यह ट्रेंड धरातल पर राजनीति करने वाले अन्य कार्यकर्ताओं की राजनीति को समय-समय पर अंत कर रही है। अब देखना यह होगा कि आखिर कब तक कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर मृतक आश्रितों पर विभिन्न राजनीतिक दल यूं ही मेहरबान होते रहेंगे!!