अनुसूचित जातियों-अनुसूचित जनजातियों का सब-कैटेगरी बनाए जाना जायज, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को दिया अधिकार
मुख्यधारा डेस्क
देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एससी, एसटी वर्ग को ‘आरक्षण में आरक्षण’ देने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दलितों और आदिवासियों में पिछड़ी जातियों को राज्य आरक्षण के भीतर अधिक आरक्षण दे सकते हैं। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान बेंच ने किया है।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि राज्य एससी-एसटी को दिए जाने वाले आरक्षण के भीतर ऐसी जातियों को ज्यादा प्राथमिकता दे सकते हैं, जो आर्थिक-सामाजिक रूप से अधिक पिछड़ गई हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्यों को कोटा के भीतर कोटा देने के लिए एससी-एसटी में सब कैटेगिरी बनाने का अधिकार है। अदालत के फैसले के बाद यह तय हो गया कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं। राज्य विधानसभाएं कानून बनाने में समक्ष होंगी।
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चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने फैसला सुनाया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि एससी-एसटी कोई एक एक सजातीय समूह नहीं है और इस बात के सबूत भी हैं। उन्होंने कहा कि आरक्षण के भीतर आरक्षण देने से संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं होता। उन्होंने कहा कि इस मामले में 6 निर्णय पहले भी आ चुके हैं और सभी में इस बात को माना गया है कि आरक्षण के भीतर आरक्षण देना सही है।
कोर्ट ने यह निर्णय सुनाने के साथ ही साफ कर दिया कि किसी एक जाति को 100% आरक्षण ना दिया जाए। साथ ही कोर्ट ने यह साफ किया आरक्षण के भीतर आरक्षण देने के दौरान जातियों को सूची से अंदर-बाहर करने का निर्णय तुष्टिकरण के लिए न लिया जाए।
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने फैसले से जताई असहमति
हालांकि, जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि यह देखा गया कि आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में स्टेटवाइज रिजर्वेशन के कानूनों को हाईकोर्ट्स ने असंवैधानिक बताया है। आर्टिकल 341 को लेकर यह कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि राष्ट्रपति की अधिसूचना अंतिम मानी जाती है। केवल संसद ही कानून बनाकर सूची के भीतर किसी वर्ग को शामिल या बाहर करती है।
अनुसूचित जाति कोई साधारण जाति नहीं है, यह केवल आर्टिकल 341 की अधिसूचना के जरिए अस्तित्व में आई है। अनुसूचित जाति वर्गों, जनजातियों का एक मिश्रण है और एक बार अधिसूचित होने के बाद एक समरूप समूह बन जाती है।राज्यों का सब-क्लासिफिकेशन आर्टिकल 341(2) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के साथ छेड़छाड़ करने जैसा होगा।
बता दें कि कोटा के भीतर कोटा का मतलब है आरक्षण के पहले से आवंटित प्रतिशत के भीतर एक अलग आरक्षण व्यवस्था लागू करना। यह मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि आरक्षण का लाभ समाज के सबसे पिछड़े और जरूरतमंद समूहों तक पहुंचे, जो आरक्षण प्रणाली के तहत भी उपेक्षित रह जाते हैं। इसका उद्देश्य आरक्षण के बड़े समूहों के भीतर छोटे, कमजोर वर्गों का अधिकार सुनिश्चित करना कि वे भी आरक्षण का लाभ उठा सकें। उदाहरण के लिए अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के भीतर अलग-अलग समूहों को आरक्षण दिया जा सकता है, ताकि उन समूहों को ज्यादा प्रतिनिधित्व और लाभ मिल सके, जो सामाजिक या आर्थिक रूप से ज्यादा वंचित हैं।