मामचन्द शाह/देहरादून
बीती 13 जून को उत्तराखंड कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद पार्टी यहां प्रदेश अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष के भंवर में घिर गई है। इस बीच प्रदेश भाजपा ने उत्तराखंड में अपना मुख्यमंत्री तक रिप्लेस कर दिया है, किंतु कांग्रेस में इन दो पदों को लेकर सियासी खींचतान जारी है। ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का धैर्य भी अब जवाब देने लगा है। इस बीच पंजाब कांग्रेस में चल रही उठापटक अब सही दिशा की ओर जाने के संकेत मिलने के बाद एक बार फिर उत्तराखंड कांग्रेस पर सभी की नजरें टिक गई हैं।
बताते चलें कि जब से डा. इंदिरा हृदयेश का निधन हुआ, तभी से प्रदेश कांग्रेस के भीतर सियासी घमासान मचा हुआ है। शुरुआती दौर में केवल नेता प्रतिपक्ष की ही तलाश की जा रही थी, किंतु आगामी 2022 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने वक्त रहते उत्तराखंड में अपना प्रदेश अध्यक्ष भी बदलने की जरूरत महसूस की। देहरादून में हुई कई दौर की बैठकों के बीच भी जब सियासी खिचड़ी ठीक तरह से नहीं पक पाई तो फिर कांग्रेस नेताओं को दिल्ली दरबार में पार्टी हाईकमान के सामने हाजिरी लगानी पड़ी।
वर्तमान में उत्तराखंड कांग्रेस के मात्र 10 विधायक हैं। इन्हीं में से नेता प्रतिपक्ष का चुनाव होना है। इस पर सभी विधायकों समेत पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी दिल्ली पहुंचे और आलाकमान के सम्मुख अपनी बात रखी। दिल्ली में कई दिनों तक डेरा डालने के बाद भी जब कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया तो विधायकगण वापस देहरादून लौट आए। इसके बाद पुन: पूर्व सीएम हरीश रावत, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं को कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली बुलाया और अलग-अलग काफी चर्चा की। इसके बाद भी पार्टी कोई फैसला नहीं ले पाई है।
पार्टी के एक शीर्ष नेता बताते हैं कि जब पार्टी हाईकमान के सम्मुख नेता प्रतिपक्ष के नाम पर चर्चा हुई तो यह बात निकलकर आई कि मौजूदा अध्यक्ष प्रीतम सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाए, किंतु ऐन वक्त पर प्रीतम सिंह नए अध्यक्ष के नाम को लेकर अड़ गए। उन्होंने यूथ कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भुवन कापड़ी की पैरवी करते हुए कहा कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए, किंतु हरीश रावत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व विधायक गणेश गोदियाल को अध्यक्ष बनाने की पैरवी कर डाली। इसी में पेच फंस गया। हालांकि कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता यह भी कहते हैं कि अनुसूचित जाति वर्ग से राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा भी प्रदेश अध्यक्ष के लिए पार्टी की पसंद बन सकते हैं।
बताया जा रहा है कि अब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मामले में हस्तक्षेप किया है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि जल्द प्रदेश कांग्रेस को अपना नेता प्रतिपक्ष एवं नया प्रदेश अध्यक्ष मिल जाएगा।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि 2022 के चुनावों को मद्देनजर कांग्रेस सियासी नफा-नुकसान का विश्लेषण करने के बाद ही प्रदेश अध्यक्ष का नाम फाइनल करेगी। पार्टी अब ऐसे नाम फाइनल करने जा रही है जो गुटीय बंधनों में नहीं बंधा हो। साथ ही वह प्रदेशभर में सभी को साथ लेकर चलने की क्षमता रखता हो। ऐसे में इस पद के लिए किसके नाम पर मुहर लगती है, इसके लिए अब इंतजार की घड़ी खत्म होने वाली है।
प्रदेश के आम जनमानस के मुख से चुटकीभरे अंदाज में इन दिनों अक्सर जहां-तहां सुना जा रहा है कि यहां बीजेपी ने तो अपना मुख्यमंत्री तक बदल दिया और कांग्रेस अपना अध्यक्ष ही नहीं बना पा रही है। ऐसे में कैसी होगी पार्टी की नैय्या पार!
इसके अलावा प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने भी अपनी धमाकेदार एंट्री कराई है और वह कांग्रेस को यहां अपना प्रतिद्वंदी नहीं मान रही है, बल्कि सीधे बीजेपी से टक्कर लेने की बात कह रही है। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस को आने वाले समय में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
बहरहाल, अब देखना यह होगा कि अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष पर उलझी उत्तराखंड कांग्रेस की गुत्थी आखिर कब सुलझ पाती है!
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